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पवित्र रमज़ान पर विशेष कार्यक्रम-१७

ईश्वर से दुआ है कि इस पवित्र महीने में हमारी उपासनाओं और दुआओं को स्वीकार करे और हमें भले काम करने का सामर्थ्य प्रदान करे। पवित्र रमज़ान की अपनी विशेष प्रथाएं और संस्कार हैं जो उसे अन्य महीनों से अलग करते हैं। विभिन्न देशों में विशेषकर इस्लामी देशों में मुसलमान इस पवित्र महीने में अपनी सभ्यता और संस्कृति के अनुसार, हर एक के अपने विशेष संस्कार होते हैं ताकि इस पवित्र महीने की विभूतियों से अच्छे ढंग से लाभ उठाया जा सके। यह संस्कार और प्रथाएं एक देश से दूसरे देश यहां तक कि एक शहर से दूसरे शहर में भ
पवित्र रमज़ान पर विशेष कार्यक्रम-१७

ईश्वर से दुआ है कि इस पवित्र महीने में हमारी उपासनाओं और दुआओं को स्वीकार करे और हमें भले काम करने का सामर्थ्य प्रदान करे। पवित्र रमज़ान की अपनी विशेष प्रथाएं और संस्कार हैं जो उसे अन्य महीनों से अलग करते हैं। विभिन्न देशों में विशेषकर इस्लामी देशों में मुसलमान इस पवित्र महीने में अपनी सभ्यता और संस्कृति के अनुसार, हर एक के अपने विशेष संस्कार होते हैं ताकि इस पवित्र महीने की विभूतियों से अच्छे ढंग से लाभ उठाया जा सके। यह संस्कार और प्रथाएं एक देश से दूसरे देश यहां तक कि एक शहर से दूसरे शहर में भिन्न होती हैं। अलबत्ता इस्लामी और ग़ैर इस्लामी देशों में सार्वजनिक इफ़्तार की पार्टियां और दस्तरख़वान संयुक्त बिन्दु है।
 
 
 
ईरान के लोगों की एक विशेषता, अपने धार्मिक व राष्ट्रीय संस्कारों व परंपराओं पर ध्यान देना और उसकी कटिबद्धता करना है। इस इस्लामी देश में ईरानी परिवार पवित्र रमज़ान में अपनी विशेष परंपराओं को वर्षों से सुरक्षित रखे हुए हैं। इन दिनों लोगों को इफ़्तार देना या उन्हें इफ़्तार के लिए निमंत्रित करना, बहुत ही भला और अच्छा कार्यक्रम है। जो लोग मस्जिदों में एक साथ मिलकर नमाज़ पढ़ते हैं, वह सामान्य रूप से दो नमाज़ों के बीच में अर्थात मग़रिब और इशा की नमाज़ के बीच में मस्जिद में ही इफ़्तार करते हैं और हर दिन एक व्यक्ति की तरफ़ से मस्जिद में नमाज़ियों को इफ़्तार दी जाती है। दर अस्ल ईरान के बहुत से लोगों की यह दिली कामना होती है कि उनके यहां मेहमान हों ताकि उन्हें इफ़्तारी दे सकें और अधिक पुण्य प्राप्त कर सकें।
 
 
 
पवित्र रमज़ान के महीने में मस्जिदों और विशेष स्थानों पर पवित्र क़ुरआन समाप्त करने का कार्यक्रम रखा जाता है। इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पुरुष मस्जिदों में जाते हैं और नमाज़ समाप्त होने के बाद एक साथ बैठक कर बारी बारी से हर व्यक्ति क़ुरआन का थोड़ा अंश पढ़ता है। महिलाओं के लिए बारी बारी से महिलाएं अपने घरों में यह कार्यक्रम रखती हैं और इस प्रकार वे भी बारी बारी से पवित्र क़ुरआन का कुछ अंश पढ़ती हैं। इसी प्रकार पवित्र क़ुरआन की व्याख्या का कार्यक्रम सुबह के समय रखा जाता है क्योंकि महिलाएं सुबह के समय व्यस्त नहीं रहती हैं।
 
 
 
मलेशिया उन देशों में से एक है जहां मुसलमानों की अधिकतर आबादी है अर्थात इस देश में लगभग साठ प्रतिशत मुसलमान रहते हैं। जैसे ही पवित्र रमज़ान का महीना निकट आने लगता है मलेशिया के मुसलमान इस पवित्र महीने के स्वागत के लिए स्वयं को तैयार करते हैं और अपने घरों व मस्जिदों को साफ़ सुथरा करते हैं।
 
 
 
पवित्र रमज़ान के आते ही नगर की गलियों और कूचों को लाइटों से सजाया जाता है और दुकानों पर ऐसे ध्वज लगाये जाते हैं जिन पर पवित्र रमज़ान की बधाई के संदेश लिखे होते हैं। मलेशिया की मस्जिदें पवित्र रमज़ान में चौबीस घंटे खुली रहती हैं जबकि संभव है कि बाक़ी दिनो में कुछ घंटे के लिए मस्जिद को बंद किया जाता हो। मलेशिया के मुसलमान पवित्र रमज़ान में पवित्र क़ुरआन की तिलावत करते हैं। और इस पूरे महीने वे अपने स्थानीय वस्त्र पहनते हैं और विशेष प्रकार की टोपी लगाते हैं। महिलाएं भी विशेष प्रकार का वस्त्र पहनती है और अपने सिरों पर विशेष स्कार्फ़ लगाती हैं। मलेशिया के लोग पवित्र रमज़ान में एक दूसरे को उपहार, खाने और मीठाइयां देते हैं जिससे लोगों के बीच व प्यार बढ़ता है।
 
 
 
 
 
रमज़ान का पवित्र महीना, आत्मनिर्माण और भले व सदकर्मों के अभ्यास का महीना है। इस महीने में महापुरुषों के हवाले से जिन विषयों पर विशेष बलदिया गया है उनमें से एक अच्छा शिष्टाचार है। पैग़म्बरे इस्लाम का कहना है कि हे लोगो तुम से जो भी इस महीने, अपने शिष्टाचार को अच्छा करे तो उस दिन जब लोगों के पैर सेरात नामक पुल पर फिसलेंगे, ईश्वर उसकी सहायता करेगा और वह सिरलता से उस पुल से गुज़र जाएगा। इस बात का महत्व उस समय सामने आता है जब कभी भूख और प्यास के कारण रोज़ेदार की शक्ति समाप्त हो जाती है और वह सामाजिक व आत्मिक बुराईयों के मुक़ाबले में स्वयं को कमज़ोर समझता है। निश्चित रूप से गर्मी के लंबे दिनों में रोज़े रखे और रात में ईश्वर की उपासना में लीन रहे, उस समय वह बुराइयों के मुक़ाबले में उचित कार्यवाही करता है और अपने इस शिष्टाचार का पुण्य स्वयं पाता है।
 
 
 
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का कथन है कि अच्छा आचरण, पापों को धो देता है जैसा कि सूरज बर्फ़ को पिघला देता है। उसके बाद इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से पूछा गया कि शिष्टाचार की क्या परिभाषा है? उन्होंने कहा शिष्टाचार वह है जिसमें अजनबियों के साथ नर्म व्यवहार और अच्छे ढंग से पेश आए और तुम्हारी बातचीत पवित्र हो और लोगों को पसंद आए और इसके साथ अपने मोमिन भाई के साथ खुले दिल से मिलना चाहिए।
 
 
 
इसी प्रकार दूसरी हदीस में आया है कि शिष्टाचार, कार्यों की सरलता का कारण बनता है। एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम मस्जिद में बैठे हुए थे, अंसार की एक बच्ची आई और उसने पीछे से पैग़म्बरे इस्लाम का कपड़ा पकड़ लिया और खींचा। पैग़म्बरे इस्लाम यह समझे कि उसे शायद कुछ काम है इसीलिए वह अपनी जगह से उठे किन्तु उस बच्ची ने कुछ भी नहीं कहा। पैग़म्बरे इस्लाम ने उस बच्ची से कुछ भी नहीं कहा, उस बच्ची ने दूसरी और तीसरी बार यही काम किया, पैग़म्बरे इस्लाम भी उतनी ही बार उठे और फिर अपनी जगह पर बैठे, यहां तक कि उक्त बच्ची ने पीछे से चौथी बार पैग़म्बरे इस्लाम का कपड़ा पकड़कर खींचकर फाड़ दिया और एक टुकड़ा हाथ में ले लिया। वहां मौजूद लोगों ने उक्त लड़की को डांटा और कहा कि ईश्वर तुझे ऐसा कर दे, वैसा कर दे, तीन बार पैग़म्बरे इस्लाम को अपने स्थान से उठने पर विवश किया और तुमने कुछ भी नहीं कहा, तुम क्या करना चाहती थी? उसने कहा कि मेरे घर में एक मरीज़ है और किसी ने मुझसे कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम के कपड़े का एक टुकड़ा लेकर आओ ताकि उसकी बरकत से बीमार ठीक हो सके, मुझे भी शर्म आई, पैग़म्बरे इस्लाम भी समझ गये किन्तु उन्होंने कुछ भी नहीं कहा यहां तक कि मैंने अपना काम अंजाम दिया।
 
 
 
 
 
एक मोमिन की सबसे बड़ी कामना यह है कि परलोक में कृपालु ईश्वर उस पर कृपा करे और पैग़म्बरे इस्लाम के साथ रहने की अनुकंपा प्रदान करे। इन अनुकंपाओं से लाभान्वित होने के मार्गों में से एक शिष्टाचार और अच्छे व्यवहार से संपन्न होना है। पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम इस संबंध में कहते हैं कि प्रलय में तुम में से मेरे लिए सबसे लोकप्रिय और तुम से मेरे सबसे निकट वह है जो सबसे अधिक विनम्र हो और नैतिक शिष्टाचार से संपन्न हो।
 
 
 
पैग़म्बरे इस्लाम (स) और समस्त इमामों ने सभी लोगों को शिष्टाचार का निमंत्रण दिया और स्वयं भी नैतिक गुणों से संपन्न थे। बताया जाता है कि एक व्यक्ति इमाम अली अलैहिस्सलाम के पास आया और उनसे विनती की कि पैग़म्बरे इस्लाम के शिष्टाचार उसे बताएं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि आरंभ में तुम हमारे लिए संसारिक अनुकंपाओं को बयान करो, ताकि मैं पैग़म्बरे इस्लाम के शिष्टाचार तुमसे बयान करूं। उसने कहा कि यह कैसे संभव है कि मैं सांसरिक अनुकंपाओं को बयान करूं, जिसका कोई अंत ही नहीं है, जवाब में हज़रत अली ने कहा कि ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन में सांसारिक विभूतियों को कम और तुच्छ बताया है किन्तु पैग़म्बरे इस्लाम के शिष्टाचार के बारे में महान शब्द प्रयोग किए और कहा कि जी हां आप शिष्टाचार और अच्छाई के स्वामी हैं, तुम अब सांसारिक विभूतियों को बयान नहीं कर सकते और अब मुझसे कह रहे हो कि वह उस चीज़ को बयान करूं जो महान व महत्वपूर्ण है।
 
 
 
 
 
पवित्र रमज़ान का एक अश्चर्यजनक परिणाम, पूरब से पश्चिम तक फैले हुए पूरी दुनिया के मसलमानों की एकता है। दुनिया के समस्त मुसलमान इस बात का अभास करते हैं कि पवित्र रमज़ान ने उनको एक ईश्वरीय दायित्व के निर्वाह, एक कर्तव्य को अंजाम देने के लिए एक दूसरे के साथ किया और उनको एकजुट बनाया है।
 
 
 
 इस विभूतिपूर्ण महीने में समस्त मुसलमान स्वयं को एक समुदाय समझते हैं और एकेश्वर की उपासना और उससे निष्ठा को साक्षात करते हैं। इस पवित्र महीने में मस्जिदें और नमाज़ अदा करने के स्थान नमाज़ियों और रोज़ेदारों से भरे हुए होते हैं और इस महीने की विशेष नमाज़ें और विशेष कर्म, मुसलमानों के जीवन को एक अन्य सुन्दरता प्रदान करते हैं और हर एक इस प्रफुल्लता और सुन्दरता का आभास करता है। जर्मनी की इस्लाम धर्म स्वीकार करने वाली कैरीन इस्लामी शिक्षाओं की सुन्दरता व अध्यात्म को अपने कर्मों में आभास करती हैं। वह कहती हैं कि पवित्र रमज़ान के दिनों में मुसलमानों के मध्य एकता और एकजुटता ने मुझे आकर्ष्टि किया। मैंने अपने भीतर ईश्वर की उपासना और उससे निकट होने का आभास किया यहां तक कि तपती गर्मी में मैंने रोज़े रखे और भूख प्यास का तनिक भी आभास नहीं हुआ, मैं पूरी तरह संतुष्ट थी कि मेरे रोज़े ईश्वर के दरबार में स्वीकार हो रहे हैं, क्योंकि मैं अपने अस्तित्व से इसका आभास कर रही थी। पवित्र रमज़ान में रोज़ा रखना और एक निर्धारित समयावधि तक खान पान से दूर रहना और एक निर्धारित समय पर रोज़े को खोलने की प्रक्रिया बहुत ही सुन्दर दृश्य पेश करती है। इस पवित्र महीने में मस्जिदें रोज़ेदारों से भरी हुई होती हैं और इस महीने में मुसलमानों की एकता अधिक दिखाई देती है। दुनिया के समस्त मुसलमान इस बात की आस्था रखते हैं कि इस महीने पवित्र क़ुरआन उतरा है। यह एक ऐसी आसमानी पुस्तक है जो हर समय और हर स्थान पर मुसलमानों का जीवन कार्यक्रम है। दुनिया के मुसलमान पवित्र क़ुरआन पर अमल करते हुए अपने जीवन को संवारते हैं और यह इस्लाम धर्म के सदैव बाक़ी रहने की निशानी है। यह एक ऐसा धर्म है जिसने समस्त मुसलमानों को एक जुट कर दिया और उनके मध्य श्रेष्ठता का मापदंड ईश्वरीय भय और पवित्रता बताया है। (AK)


source : irib.ir
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