इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने कर्बला की महान घटना के बाद लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला। सज्जाद, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को एक प्रसिद्ध उपाधि थी। महान ईश्वर की इच्छा से इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कर्बला में जीवित बच गये था ताकि वह कर्बला की महान घटना के अमर संदेश को लोगों तक पहुंचा सकें।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ज्येष्ठ सुपुत्र हैं और 36 हिजरी क़मरी में उनका जन्म पवित्र नगर मदीने में हुआ और 57 वर्षों तक आप जीवित रहे। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के जीवन का महत्वपूर्ण भाग कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद आरंभ हुआ। कर्बला की महान घटना के समय इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम बीमार थे और इसी कारण वे कर्बला में सत्य व असत्य के युद्ध में भाग न ले सके।
कर्बला की घटना का एक लेखक हमीद बिन मुस्लिम लिखता है “आशूर के दिन इमाम हुसैन अलैहिस्लाम के शहीद हो जाने के बाद यज़ीद के सैनिक इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के पास आये। वह बीमार और बिस्तर पर सोये हुए थे। चूंकि यज़ीद की सैनिकों को यह आदेश दिया गया था कि वे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के परिवार के समस्त पुरुषों की हत्या कर दें इसलिए उन्होंने इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को भी शहीद करना चाहा परंतु उन्होंने इमाम को बीमारी के बिस्तर पर देखकर उन्हें छोड़ दिया।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि आशूर के दिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के बीमार होने में ईश्वरीय रहस्य व तत्वदर्शिता नीहित है ताकि वह अपने पिता के मार्ग को जारी रख सकें। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की इमामत 34 वर्षों तक थी और उनकी ज़िम्मेदारियों का एक महत्वपूर्ण भाग इस्लामी जगत तक कर्बला की महत्वपूर्ण घटना के संदेशों को पहुंचाना था।
कर्बला की घटना और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद इस्लामी समाज की स्थिति बहुत ही संवेदनशील चरण में प्रविष्ट हो गयी थी। एक ओर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन के संदेशों को लोगों के लिए बयान किये जाने और बनी उमय्या के झूठे दावों के प्रचार से मुकाबला किये जाने की आवश्यकता थी और दूसरी ओर इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं को बयान करके उन ग़लत बातों से मुकाबले की ज़रूरत थी जो इस्लाम की शिक्षाओं के लिए ख़तरा बनी हुई थीं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने इस प्रकार की परिस्थिति में अपने कार्यक्रम को एक नियत समय में पूरा किया। आरंभ में कुछ समय तक इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपने खुत्बों व भाषणों के माध्यम से लोगों को सच्चाई से अवगत करके अपने पिता के मार्ग को जारी रखा और अपेक्षाकृत लंबे समय तक इस्लाम धर्म की विशुद्ध शिक्षाओं को बयान करके लोगों की सोच और व्यवहार को बेहतर बनाने का प्रयास किया।
आशूर के बाद की घटनाओं में आया है कि सन 61 हिजरी क़मरी में 12 मोहर्रम को इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम बंदियों के काफिले के साथ कूफा आये। बंदियों का जो काफिला था उसमें कर्बला की घटना में बच जाने वाले बच्चे और महिलाएं थीं। इस काफिले में दो महान हस्तियां एक इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम और दूसरे हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा थीं। इन दो महान हस्तियों की मौजूदगी बंदियों की ढ़ारस और उनकी शक्ति का कारण थी। जब यह काफिला कर्बला से कूफा पहुंचा तो बंदियों को देखने के लिए बहुत बड़ी भीड़ एकत्रित थी। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने उस समय अवसर को उचित समझा और लोगों को संबोधित करके कहा हे लोगो! मैं हुसैन का बेटा अली हूं। मैं उसका बेटा हूं जिसकी प्रतिष्ठा का तुमने अनादर किया। लोगों, ईश्वर ने हम अहलेबैत की परीक्षा ले ली है। सफलता, न्याय और सदाचारिता को हमारे अंदर रख दिया है और गुमराही एवं बर्बादी को हमारे दुश्मनों को दे दिया है। क्या तुम लोगों ने हमारे पिता को पत्र नहीं लिखा था और उनसे बैअत नहीं की थी अर्थात उनकी आज्ञापालन का वचन नहीं दिया था? किन्तु उसके बाद तुम लोगों ने धोखा दिया और उनके विरुद्ध युद्ध करने के लिए खड़े हो गये। कितना बुरा कार्य किये और कितना बुरा सोचे। अगर पैग़म्बरे इस्लाम तुमसे कहें कि मेरे बेटे की हत्या कर दी मेरा अनादर किया और तुम मेरी क़ौम व अनुयाई नहीं हो तो तुम किस मुंह से उन्हें देखोगे?
एक दूसरे अवसर पर जब इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम काफिले के साथ शाम पहुंचे तो उन्होंने अत्याचारी व भ्रष्ट शासक यज़ीक के सामने अदम्य साहस का परिचय देते हुए कहा हे लोगो जो मुझे पहचानता है वह पहचानता है और जो नहीं जानता उसके लिए मैं अपना परिचय कर रहा हूं ताकि वह पहचान जाये। मैं उसका बेटा हूं जो बेहतरीन हज करने वाला था यानी मैं पैग़म्बरे इस्लाम का बेटा हूं जो जिब्राईल के साथ मेराज अर्थात आसमान पर गये और वहां उसने आसमान के फरिश्तों के साथ नमाज़ पढ़ी। वह ईश्वरीय संदेश प्राप्त करने वाला था मैं लोक-परलोक की महिला फातेमा का बेटा हूं और कर्बला की भूमि में ख़ून से रंगीन व लतपथ होने वाले का बेटा हूं।“
जब इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का भाषण यहां तक पहुंचा जो यज़ीद के दरबार में मौजूद लोग बहुत प्रभावित हुए और कुछ लोगों ने रोना शुरू कर दिया। अत्याचारी शासक यज़ीद की सरकार के आधार हिल गये। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के अलावा हज़रत ज़ैनब ने भी यज़ीद के दरबार में जो भाषण दिया था वह लोगों की जागरुकता का कारण बना इस प्रकार से कि कुछ लोगों ने यज़ीद के दरबार में ही आपत्ति जताई। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम और हज़रत ज़ैनब के वास्तविकता प्रेमी भाषणों ने बनी उमय्या की सरकार के प्रति लोगों की घृणा में वृद्धि कर दी। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के भाषण से यज़ीद बहुत चिंतित हो गया। उसने इमाम को चुप कराने और परिस्थिति को बदलने के लिए मोअज़्ज़िन को अज़ान देने के लिए कहा। इमाम अज़ान की आवाज़ सुनकर चुप हो गये और अज़ान देने वाला जब इस वाक्य पर पहुंचा कि मैं गवाही देता हूं कि मोहम्मद ईश्वर के दूत हैं तो इमाम ने यज़ीद से कहा क्या यह पैग़म्बर मेरे पूर्वज का नाम है या तेरे? अगर तू यह कहे कि मेरे पूर्वज का नाम है तो सब जान जायेंगे कि तू झूठ बोल रहा है और अगर तू यह कहे कि मेरे पूर्वज का नाम है तो तुमने किस दोष में मेरे पिता की हत्या की और उनके माल को लूट लिया और उनकी महिलाओं को बंदी बनाया? प्रलय के दिन तुझ पर धिक्कार हो।“
इतिहास में आया है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के परिजनों ने यज़ीद की उसी सभा में इमाम हुसैन और दूसरे शहीदों के साथ कर्बला में जो कुछ हुआ था उसे बयान करना आरंभ कर दिया। यज़ीद इस सभा के माध्यम से अपनी प्रतिष्ठा व रोब में वृद्धि की कुचेष्टा में था परंतु स्थिति उसकी अपेक्षा के बिल्कुल विपरीत हो गयी जिससे वह बहुत चिंतित हो गया। जब शाम के लोग कर्बला में शहीद होने वाली हस्तियों और उनके अतीत से अवगत हो गये और बनी उमय्या के अपराधों से पर्दा उठ गया तो भ्रष्ट शासक यज़ीद जनमत को गुमराह करने की सोच में पड़ गया। उसने बंदियों के साथ अपने अत्याचारपूर्ण व्यवहार को परिवर्तित और उनके साथ सम्मान पूर्वक व्यवहार करने का प्रयास किया। वह इस बात से भयभीत था कि कहीं लोग उसकी सरकार के विरुद्ध आंदोलन न कर दें इसीलिए उसने कर्बला के बंदियों को ढ़ारस बधाने का प्रयास किया और इस तरीक़े से उसने अपने पापों पर पर्दा डालने की चेष्टा की।
अतः वह कर्बला के बंदियों की उस इच्छा के समक्ष घुटने टेक देने पर बाध्य हो गया कि वे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाना चाहते हैं और उसने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाने के लिए “दारूल हिजारह” नामक स्थान को विशेष कर दिया और बंदियों ने सात दिनों तक इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाया। धीरे-2 इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम शहादत व कर्बला की घटना की ख़बर पूरे शहर में फैल गयी। यज़ीद ने जब स्थिति को ख़राब होते देखा तो उसने कारवां को मदीने भेजने का निर्णय किया। जब यह कारवां शाम से मदीना पहुंचा तो नगर के लोग उनके स्वागत के लिए उमड़ पड़े। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम शोकाकुल लोगों के मध्य मिम्बर पर गये और ईश्वर की प्रशंसा करने के बाद फरमाया हे लोगो! ईश्वर ने बहुत बड़ी विपत्ति से हमारी परीक्षा ली है। इस विपत्ति का कोई उदाहरण नहीं है। हे लोगो! कौन है जो इस महा त्रासदी को सुनकर प्रसन्न होगा? कौन दिल है जो हुसैन बिन अली की शहादत की ख़बर सुनकर दुःखी नहीं होगा? कौन आंख है जो आंसू नहीं बहायेगी? हम ईश्वर की ओर से आये हैं और ईश्वर की ही ओर पलट कर जायेंगे। इस हृदयविदारक मुसीबत में हम ईश्वर की ओर ध्यान देते हैं और उसके मार्ग में समस्त मुसीबतों को सहन करने के लिए तैयार हैं और हम जानते हैं कि ईश्वर प्रतिशोध लेने वाला है।“
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने पवित्र नगर मदीना में कर्बला की घटना की याद को जीवित रखा और वास्तविकताओं को बयान करके कर्बला के बाद के आंदोलनों की भूमि तैयार कर दी। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपने प्रयास से अमवी शासकों के चेहरों पर पड़ी नक़ाब को हटा दिया। साथ ही उन्होंने इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं के प्रचार-प्रचार के लिए काफी प्रयास किया। इस प्रकार इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपनी इमामत के 34 वर्षों के दौरान उस समय के समाज में विभिन्न रूपों में जागरूकता की लहर पैदा कर दी। जब अमवी शासक वलीद बिन अब्दुल मलिक ने स्वयं को इस जागरूकता की लहर के मुक़ाबले में अक्षम देखा तो उसने जागरूकता के स्रोत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को शहीद करने का षडयंत्र रचा परंतु वह इस बात से अचेत था कि सच्चाई का दीप कभी बुझता नहीं है और वह हमेशा प्रज्वलित व प्रकाशमयी रहेगा। अंततः अमवी शासक वलीद ने एक षडयंत्र रचकर इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को वर्ष 94 हिजरी क़मरी में शहीद करवा दिया।
source : irib