वे एक ऐसी महान हस्ती थीं जिन्होंने इतिहास के एक कालखंड में अपने ऐतिहासिक पलायन से मुसलमानों के लिए एक बहुत बड़े गौरव का मार्ग प्रशस्त किया। ये हस्ती इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की सुपुत्री और हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की वफ़ादार बहन हज़रत फ़ातेमा मासूमा (अ) हैं। इमाम रज़ा के बाद, इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की संतान में हज़रत मासूमा (अ) का स्थान सबसे उच्च है। इस चयनित महिला की महानता के लिए इतना कहना ही पर्याप्त है कि वे सदैव ही इमामों और इस्लाम धर्म के नेताओं के आदर का पात्र रही हैं और उनकी विशेषताओं, प्रतिष्ठाओं तथा चमत्कारों के बारे में पैग़म्बर के परिजनों के बहुत अधिक कथन मौजूद हैं। हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपनी सम्मानीय बहन को मासूमा की उपाधि दी थी जिससे पता चलता है कि वे हर प्रकार की बुराई व पथभ्रष्टता से दूर हैं।
वर्ष 201 हिजरी क़मरी में ईरानी जनता को यह गौरव प्राप्त हुआ कि वह क़ुम नगर में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिवार की इस सम्मानीय महिला का स्वागत करे। हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा, जो अपने भाई इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से मिलने के लिए मदीना नगर से तत्कालीन ईरान के मर्व नगर जा रही थीं, बीमारी के कारण अपनी यात्रा जारी न रख सकीं और मार्ग में पड़ने वाले क़ुम नगर में ही रुक गईं तथा कुछ दिनों के पश्चात इसी नगर में उनका निधन हो गया।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों की प्रतिष्ठाएं व सद्गुण केवल इस परिवार के पुरुषों तक सीमित नहीं थे। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा, हज़रत ज़ैनब अलैहस्सलाम तथा हज़रत मासूमा जैसे महान महिलाएं भी उपासना, पवित्रता, ज्ञान, ईश्वरीय भय तथा प्रतिरोध में इस्लामी इतिहास के अमर आदर्शों में शामिल हैं। हज़रत फ़ातेमा मासूमा का प्रशिक्षण एक ऐसे परिवार में हुआ जो ज्ञान, ईश्वरीय भय तथा नैतिक गुणों का स्रोत था। वे ज्ञान तथा अध्यात्म की दृष्टि से अत्यंत उच्च स्थान की स्वामी थीं क्योंकि उनका प्रशिक्षण इमाम मूसा काज़िम और इमाम रज़ा अलैहिमस्सलाम ने किया था। इसी कारण अल्पावधि में ही उन्होंने प्रगति व विकास के चरण एक के बाद एक पूरे किए। ज्ञान व ईश्वरीय पहचान के क्षेत्र में उन्होंने उल्लेखनीय ढंग से प्रगति की। हज़रत मासूमा अलैहस्सलाम अपनी आश्चर्यजनक बुद्धि के कारण बाल्यावस्था से ही धार्मिक मामलों में लोगों के प्रश्नों का उत्तर देती थीं। उनके व्यक्तित्व के विकास का एक प्रभावी कारक उस काल की राजनैतिक व सामाजिक स्थिति थी। उस समय बनी अब्बास के शासन द्वारा अत्याचार व घुटन का वातावरण हर ओर फैला हुआ था। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम और हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा भी बनी अब्बास के शासकों तथा उनकी नीतियों से पूर्ण रूप से अवगत थे और जानते थे कि उनकी नीतियों के विरोध के क्या परिणाम हो सकते हैं। इस महान महिला ने अपने पूज्य पिता व भाई से अत्याचार से संघर्ष की शैली तथा उसके मुक़ाबले में खड़े होने के मार्गों को भली भांति सीखा था। यही कारण था कि वे सत्य की रक्षा के मार्ग में पूरी दूरदर्शिता व समझ-बूझ के साथ आगे बढ़ती रहीं।
ऐतिहासिक दस्तावेज़ों में हज़रत मासूमा अलैहस्सलाम की जो विशेषताएं वर्णित हैं उनमें से एक पैग़म्बर के परिजनों के कथनों का उद्धरण या हदीस बयान करना है। इसी आधार पर उन्हें मुहद्देसा भी कहा जाता था। जिन महिलाओं से हदीसें उद्धरित की गई हैं उनमें हज़रत मासूमा अपने काल की सबसे प्रमुख तथा इमामों की सबसे विश्वस्त महिला थीं। इमामत के पद का बचाव उनके चरित्र की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता है। उनकी यह विशेषता, उनके द्वारा समय की सही पहचान को दर्शाती है क्योंकि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की इमामत के काल में अत्याचारी शासकों ने अत्यंत कड़ा व घुटन भरा वातावरण बना रखा था। उस काल में भयावह कारावासों और उनमें दी जाने वाली यातनाओं के कारण इमाम मूसा काज़िम अपने अनुयाइयों से दूर हो गए थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की इमामत के काल में भी इस पद के महत्व के वर्णन के संबंध में हज़रत मासूमा द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण क़दमों की अनदेखी नहीं की जा सकती। उन्होंने इस काल में कुछ हदीसों का उद्धरण करके इमामत और नेतृत्व के पद के आधारों को समाज में सुदृढ़ किया। उदाहरण स्वरूप उन्होंने उस हदीस को उद्धरित किया जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को संबोधित करते हुए कहा है कि हे अली! क्या तुम इस बात से प्रसन्न नहीं हो कि मुझसे तुम्हारा संबंध वही है जो मूसा से हारून का था। उल्लेखनीय है कि हज़रत हारून, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के भाई व उत्तराधिकारी थे।
इसी प्रकार हज़रत मासूमा अलैहस्सलाम ने ग़दीर की महत्वपूर्ण घटना का वर्णन करके पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के उच्च स्थान को स्पष्ट किया ताकि लोग उस अमानत की ओर से निश्चेत होकर पथभ्रष्ट न हो जाएं जो पैग़म्बर ने उनके हवाले की थी। उन्होंने उत्तराधिकार के संबंध में अब्बासी शासक मामून के प्रस्ताव के उत्तर में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के तत्वदर्शितापूर्ण उत्तर को अनेक बार लोगों के मन में जीवित किया। मामून ने लोगों को धोखा देने के लिए, उत्तराधिकार की बात से पूर्व इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को ख़लीफ़ा बनने का प्रस्ताव दिया किंतु उन्होंने उसके उत्तर में कहा कि यदि ख़िलाफ़त तुम्हारा अधिकार है तो तुम्हें उसे किसी को नहीं देना चाहिए और यदि यह तुम्हारा अधिकार नहीं है तो तुमने अपने आपको क्यों ख़लीफ़ा बना रखा है और मुझे अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते हो? हज़रत मासूमा अलैहस्सलाम इस घटना का वर्णन करके लोगों को यह समझाना चाहती थीं कि इस्लामी समाज का नेतृत्व केवल पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पवित्र परिजनों को ही शोभा देता है। इस प्रकार इतिहास, हज़रत मासूमा द्वारा उस काल में इमामत के पद व स्थान को सुदृढ़ बनाने हेतु निरंतर प्रयासों का साक्षी है जब समाज में नेतृत्व का मामला शत्रुओं के षड्यंत्रों का निशाना बन रहा था।
जैसा कि हमने कहा, हज़रत फ़ातेमा मासूमा सलामुल्लाह अलैहा के जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग, उनकी मदीने से मर्व की ओर यात्रा है। यद्यपि यह यात्रा अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच सकी किंतु इसमें पैग़म्बर के परिजनों के इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं। जब अब्बासी शासक मामून द्वारा विवश किए जाने के कारण हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को मदीना नगर को छोड़ कर मर्व में रहना पड़ा तो हज़रत मासूमा ने भी अपने भाई और उस समय के इमाम हज़रत अली रज़ा अलैहिस्सलाम से प्रेम व श्रद्धा के कारण उनके पास मर्व जाने का निर्णय किया। अलबत्ता यह भी कहा जाना चाहिए कि मदीने में शासकों की ओर से जिस प्रकार का वातावरण उत्पन्न कर दिया गया था उसमें भी पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की जान को ख़तरा था। इसी कारण इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपनी बहन हज़रत मासूमा को पत्र लिखा कि वे मर्व आ जाएं। वे अपने परिवार के बीस से अधिक लोगों के साथ मदीने से बाहर निकलीं। उनका कारवां जिस नगर व जिस स्थान से गुज़रता, लोग उसका भव्य स्वागत करते थे। यात्रा के दौरान हज़रत फ़ातेमा मासूमा सलामुल्लाह अलैहा, अवसरों से भरपूर लाभ उठाती थीं और निरंतर लोगों को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों के स्थान और दर्जे के बारे में बताती रहती थीं। यही कारण था कि जब उनका कारवां, सावे नामक स्थान पर पहुंचा तो पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के कुछ विरोधियों ने उसका मार्ग रोक दिया। उन लोगों ने हज़रत मासूमा के कारवां में शामिल कई लोगों को शहीद कर दिया जिसके कारण वे अत्यंत दुखी हुईं और बीमार पड़ गईं और फिर यात्रा जारी रखना उनके लिए संभव न रहा।
हज़रत मासूमा अलैहस्सलाम की इच्छा के आधार पर उन्हें क़ुम नगर ले जाया गया। उन्होंने कहा कि मैंने अपने पिता से सुना है कि क़ुम हमारे अनुयाइयों का केंद्र है। क़ुम के प्रतिष्ठित लोगों ने हज़रत मासूमा के उस नगर में आगमन का समाचार सुना तो उनका हृदय की गहराइयों से स्वागत किया। पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों में शामिल ये प्रतिष्ठित महिला, क़ुम में सत्रह दिनों से अधिक जीवित न रह सकीं और रोग बढ़ जाने का कारण उनका स्वर्गवास हो गया किंतु इस अल्पावधि में ही उनके अस्तित्व की विभूति से क़ुम नगर को अनेक भलाइयां व अनुकंपाएं प्राप्त हो गईं। उनके स्वर्गवास को कई शताब्दियां बीत जाने के बावजूद उनकी इस मूल्यवान उपस्थिति से क़ुम नगर लाभान्वित हो रहा है। हज़रत मासूमा के मज़ार के साथ ही एक विशाल धार्मिक शिक्षा केंद्र अस्तित्व में आ गया है जहां ज्ञान व सद्गगुणों से संपन्न लोग धार्मिक शिक्षाओं का प्रसार-प्रचार करते हैं। उस काल में किसी को भी इस बात का विश्वास नहीं था कि इस सुदूर एवं शुष्क व मरुस्थलीय नगर में ज्ञान का सागर ठाठें मारने लगेगा तथा पैग़म्बर के परिजनों की एक हस्ती के मज़ार के निकट ज्ञान व ईश्वरीय पहचान के फूल खिलने लगेंगे जो पूरे संसार को पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पवित्र परिजनों की शिक्षाओं की सुगंध से महका देंगे।
source : alhassanain