इमाम यानी ज़मीन पर ख़ुदा का ख़लीफ़ा, सारे मौजूदात की हयात और पूरी कायनात का सुकून वुजूदे इमाम से बर क़रार है। वह ज़ैनब (स) जो ख़ानदाने इमामत में पली हो और मकतबे अली (अ) में तरबीयत पाई हो, वह इमामत की बुलंदी और मंसब की अज़मत से ख़ूब वाक़िफ़ और इमाम के बारे में अपने फ़रायज़ से कमा हक़्क़हू बा ख़बर है। इन बातों पर तारीख़ गवाह है। आप अपने वालिद हज़रत अली (अ) की ज़िन्दगी में कतए नज़र इस से कि आप अली (अ) की बेटी हैं, बाप के अहकाम व दस्तूर पर अमल करना अपना फ़र्ज़ समझती थीं बल्कि इमाम हसन (अ) के ज़माने में आप की यही रविश और तरीक़ ए कार था और तारीख़े करबला में हज़रत ज़ैनब (स) ने अपने भाई जो हामिले मंसबे इमामत थे। किस तरह उन की इताअत की है यह बिल्कुल वाज़ेह है। भाई की शहादत के बाद मंसबे इमामत भाई की यादगार हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) को मिला और हज़रत ज़ैनब उस मौक़े पर बच्चों और हरमे हुसैनी की सर परस्त भी हैं। हज़रत सज्जाद (अ) आप के इमाम और पेशवा हैं। हज़रत ज़ैनब इमाम की इज़ाज़त के बग़ैर कोई काम अंजाम नही देतीं। अब आप की ज़िम्मेदारी पहले से ज़्यादा संगीन और मुश्किल है। अब हज़रत ज़ैनब इमाम की हिफ़ाज़त की भी ज़िम्मेदार हैं और इसी तरह इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) को मौत से निजात दिलाने में ज़ैनबे कुबरा (स) की जाफ़ेशानी मक़ातिल में मौजूद है।
करबला के ख़ूनीन क़याम का मरहला इमाम हुसैन (अ) की शहादत पर ख़त्म हो गया। अब करबला के सहरा में इमाम हुसैन (अ) और उन के आईज़्ज़ा व अक़रबा के बदन टुकड़े टुकड़े पड़े हैं। ख़ैमों में आग लगा दी गई है ग़मज़दा और शिकस्ता दिल औरतों और बच्चों को खु़दा के अलावा किसी से तवक़्क़ों नही है, अगर कुछ सहारा है तो इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) से हैं।
शिमरे लईन अपनी पियादा फ़ौज के साथ आया और आने के बाद वह चाह रहा था कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) को शहीद कर दे कि इतने में हज़रत ज़ैनब (स) ने बढ़ कर कहा कि यह मेरे दम से ज़िन्दा है, पहले मुझे क़त्ल करो, उस के बाद इन्हे क़त्ल करना। अज़्मे हज़रत ज़ैनब (स) देख कर शिम्र को अपना इरादा बदलना पड़ा।
(नफ़सुल महमूम पेज 379)
गयारहवी मुहर्रम को तमाम असीरों को ऊटों की नंगी पीठ पर सवार किया गया और उस क़ाफ़िले को मक़तल की तरफ़ ले जाने लगे। जब क़ाफ़िला क़त्लगाह में पहुचा तो सवारियों ने बे इख़्तियार ख़ुद को ज़मीने करबला पर गिरा दिया। जैनब (स) ने लाशे हुसैन (अ) पर पहुच कर इस दर्द भरे अंदाज़ में गिरया व नाला किया कि दोस्त व दुश्मन सब मुँह फेर कर रोने लगे। उसके बावजूद हज़रत ज़ैनब (स) अपने फ़रायज़ से ग़ाफ़िल नही रहीं। एक मर्तबा जनाबे ज़ैनब (स) की नज़र इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) पर पड़ी तो आप इमाम सज्जाद (अ) के पास आयीं और फ़रमाया कि मैं आप को किस हालत में देख रही हूँ?। कहीं ऐसा न हो कि रूह कफ़से उन्सुरी से परवाज़ कर जाये। इमाम (अ) ने आवाज़ दी: ऐ फ़ूफ़ी जान, मैं क्यूँ कर बेताब न हूँ जब कि मैं अपने बाबा, भाईयों, चचाओं और चचाज़ाद भाईयों को ख़ाक़ व खून में ग़लताँ ज़मीन पर पड़ा देख रहा हूँ। उन्हे न किसी ने कफ़न दिया है और न ही दफ़्न किया है, क्या यह मुसलमान नही है?।
(दमउस सुजूम पेज 210)
जनाबे ज़ैनब (स) करबला के मैदान में शहीदों की लाशों के दरमियान इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) से एक रिवायत बयान करती हैं कि ऐ मेरे भतीजे, इसी जगह जहाँ तुम अपने बाबा हुसैन (अ) की लाश को बे कफ़न देख रहे हो। यह भी एक दिन दफ़्न होगें और इसी मक़ाम पर इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र का तवाफ़ होगा।
(हमास ए हुसैनी जिल्द 1 पेज 335)
जनाबे ज़ैनब (स) की पेशिनगोई, जो आप के जद की पेशिनगोई थी वह पूरी हुई। आज भी मरक़दे इमाम हुसैन (अ) हुर्रियत पसंद और अदालत ख़्वाह इंसानों का मताफ़ और मलाएका के नुज़ूल का मक़ाम है।
जनाबे ज़ैनब (स) को इस लुटे हुए क़ाफ़िले की सर परस्ती करते हुए अपने भतीजे की हिफ़ाज़त का ख़्याल रखना ज़रूरी है और यही ज़ैनब (स) की सब से अहम ज़िम्मेदारी है। जब यह क़ाफ़िला कुफ़े पहुचा तो कुफ़ा तमाशाईयों से पूर था, कूफ़े के बाज़ार में जनाबे ज़ैनब (स) ने इस तरह ख़ुतबा दिया कि सब के अफ़कार में एक अज़ीम इंक़ेलाब पैदा कर दिया। तारीख़ की बाज़ किताबों में नक़्ल हुआ है कि हज़रत ज़ैनब (स) के बाद जनाबे उम्मे कुलसूम (स) ने भी अपने ख़ुतबे में कुफ़े वालों की सरज़निश की।
(मुनतहल आमाल जिल्द 1 पेज 486)
जब असीरों को इब्ने ज़ियाद लईन के दरबार में लाया गया तो सानी ए ज़हरा (स) एक गोशे में बैठ जाती हैं और अहले बैते अतहार की दूसरी औरतें आप के गिर्द जमा हो जाती हैं। इब्ने ज़ियाद मलऊन पूछता है कि यह औरत कौन है जो अपनी कनीज़ों के साथ एक गोशे में बैठी है? हज़रत ज़ैनब (स) ने कोई जवाब व दिया। इब्ने ज़ियाद लईन ने दो तीन बार यही सवाल दोहराया। असीरों में से किसी ने कहा यह रसूल (स) की नवासी, फ़ातेमा ज़हरा (स) की लाडली हज़रत ज़ैनबे उलिया मक़ाम (स) हैं। इब्ने ज़ियाद ने जनाबे ज़ैनब (स) को सताना शुरु किया और मुख़ातब हो कर कहने लगा कि ख़ुदा का शुक्र है कि जिसने तुम्हे रुसवा किया औक तुम्हारे मर्दों और वारिसों को क़त्ल कर के यह साबित कर दिया कि जो कुछ तुम ने कहा वह झूट था। हज़रत ज़ैनब (स) ने इब्ने ज़ियाद लईन के सामने ऐसा फ़सीह व बलीग़ ख़ुतबा दिया कि रावी कहता है कि उस ख़ुतबे से इब्ने ज़ियादा पानी पानी हो गया।
अली (अ) की बेटी ने जुरअत व शुजाअत के साथ अपने ख़ुतबे से इब्ने ज़ियाद के रुसवा कर दिया और अहले बैते रसूल पर रवा रखे जाने वाले मज़ालिम से पर्दा उठा दिया।
जब इब्ने ज़ियाद जनाबे ज़ैनब (स) के मुसकित जवाब से हक्का बक्का रह गया तो इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) की तरफ़ देखते हुए कहता है कि तुम कौन हो? इमाम (अ) ने जवाब दिया कि मैं अली बिन हुसैन हूँ। इब्ने ज़ियाद कहता है कि क्या ख़ुदा ने अली बिन हुसैन को क़त्ल नही किया। इमाम (अ) ख़ामोश रहे। क्यों नही बोलते कि मेरे भाई अली को लोगों ने शहीद कर दिया है, इब्ने ज़ियाद मलऊन ने दोहराते हुए कहा, नही उसे ख़ुदा ने क़त्ल किया है। इमाम (अ) ने ज़ालिम के जवाब में सूर ए ज़ोमर की 42 वी आयत आयत पढ़ी।
इस जवाब को सुन कर इब्ने ज़ियाद लईन आपे से बाहर हो गया और जल्लाद को हुक्म दिया कि इसे ले जा कर क़त्ल कर दो। जनाबे ज़ैनब (स) ने भतीजे के गले में बाहें डाल दीं और कहा पहले मुझे क़त्ल करो। उस के बाद मेरे भाई की यादगार के क़त्ल का इरादा करना। (ख़सायसे ज़ैनबिया पेज 284)
जनाबे ज़ैनब (स) की रविश से यह बात समझ में आती है कि हज़रत ज़ैनब (स) इमाम (अ) की जान की हिफ़ाज़त के सिलसिले ही में कोशाँ थीं। क्या जनाबे ज़ैनब का यह शुजाआना और आलिमाना क़दम उन का इत्तेबा करने वालों के लिये बेहतरीन दर्स नही है? क्या आदमी को अपने विलायत व इमामत जैसे बेहतरीन अक़दार पर ख़ुद को क़ुर्बान नही कर देना चाहिये? क्या राहे ख़ुदा में रंज उठाने वालों और ईसार गरों के हज़रत ज़ैनब (स) को नमून ए अमल क़रार नही देना चाहिये? दर हक़ीक़त हमें राहे खुदा, राहे विलायत व इमामत में उन्ही की तरह हर क़िस्म की मशक़्क़त व मुसीबत बर्दाश्त करने के लिये ख़ुद को तैयार रखना चाहिये ता कि तारीख़ में हमेशा सर बुलंद रहें।
source : alhassanain