Hindi
Thursday 10th of October 2024
0
نفر 0

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा स. की ज़िंदगी पर एक निगाह।

जनाबे फ़ातिमा ज़हरा स. की श्रेष्ठता दिल और आत्मा को इस तरह अपनी तरफ़ खींचती है कि इन्सान की ज़बान बंद हो जाती है। जो भी उनकी श्रेष्ठता और ख़ुदा और उसके रसूल की नज़र में उनके मरतबे को देखता है वह देखता ही रह जाता है कि यह बीबी कितनी महान बीबी थीं। उन्हें समझने के लिये इन्सान के पास दूरदर्शिता और बसीरत होनी चाहिये। शायद हम जैसे इन्सान न समझ पाएं, हाँ उन्हें जानने के लिये उन आयतों और हदीसों से मदद ली जा सकती है जिनमें उनकी श्रेष्ठता बयान की गई है।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा स. की ज़िंदगी पर एक निगाह।
जनाबे फ़ातिमा ज़हरा स. की श्रेष्ठता दिल और आत्मा को इस तरह अपनी तरफ़ खींचती है कि इन्सान की ज़बान बंद हो जाती है। जो भी उनकी श्रेष्ठता और ख़ुदा और उसके रसूल की नज़र में उनके मरतबे को देखता है वह देखता ही रह जाता है कि यह बीबी कितनी महान बीबी थीं। उन्हें समझने के लिये इन्सान के पास दूरदर्शिता और बसीरत होनी चाहिये। शायद हम जैसे इन्सान न समझ पाएं, हाँ उन्हें जानने के लिये उन आयतों और हदीसों से मदद ली जा सकती है जिनमें उनकी श्रेष्ठता बयान की गई है।

जनाबे फ़ातिमा ज़हरा स. की श्रेष्ठता दिल और आत्मा को इस तरह अपनी तरफ़ खींचती है कि इन्सान की ज़बान बंद हो जाती है। जो भी उनकी श्रेष्ठता और ख़ुदा और उसके रसूल की नज़र में उनके मरतबे को देखता है वह देखता ही रह जाता है कि यह बीबी कितनी महान बीबी थीं। उन्हें समझने के लिये इन्सान के पास दूरदर्शिता और बसीरत होनी चाहिये। शायद हम जैसे इन्सान न समझ पाएं, हाँ उन्हें जानने के लिये उन आयतों और हदीसों से मदद ली जा सकती है जिनमें उनकी श्रेष्ठता बयान की गई है। क़ुरआने मजीद में भी बहुत सी आयतें हैं जिनमें आपका स्थान बयान हुआ है और हदीसें भी बहुत सी हैं जिनमें आपकी श्रेष्ठता को बताया गया है। हालांकि इनके अलावा एक रास्ता भी है जिससे हम बीबी की सीरत और कैरेक्टर को जान सकते हैं और वह है उनकी ज़िन्दगी का चरित्र। इसलिये हम एक नज़र उनकी ज़िन्दगी के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर डालते हैं और देखते हैं कि उनका चरित्र क्या था और क्योंकि ख़ुदा नें उनको हमारे लिये आईडियल बनाया है इसलिये हम उनसे कुछ सीख कर अपने जीवन में लागू करें। 1. शक्ल में, बात करने में और चरित्र में आप रसूले ख़ुदा के जैसी थीं, उन्हें देखने वाले को रसूले ख़ुदा याद आ जाते थे। (हालांकि याद रहे उन्हें किसी नामहरम नें नहीं देखा बल्कि केवल महरम ही उन्हें देखते थे)। 2. ख़ुदा की इबादत और उसके साथ राज़ो नयाज़ से आपको बहुत ज़्यादा मोहब्बत थी। आप इतनी ज़्यादा इबादत करतीं थीं कि आपके पैरों में सूजन आ जाती थी और नमाज़ों में अल्लाह के डर से बहुत रोया करती थीं। 3. सप्ताह के सारे दिनों में अलग अलग दुआ पढ़ा करती थीं। नमाज़ के बाद भी विशेष दुआएं पढ़तीं थीं। आपकी दुआएं हदीस और दुआ की किताबों में आईं हैं। 4. एक दिन आप काम से बहुत ज़्यादा थक गईं तो रसूले ख़ुदा स. के पास गईं ताकि घर के कामों में सहायता के लिये एक दासी के लिये कहें। रसूले ख़ुदा स. नें दासी से भी अच्छी चीज़ उन्हें दी और वह थी एक तसबीह जिसे आप हमेशा पढ़ा करती थीं जो बाद में तसबीहे फ़ातिमा के नाम से मशहूर हुई जिसका पढ़ना हर नमाज़ के बाद मुस्तहेब है। यह तसबीह जनाबे जिबरईल ख़ुदा की तरफ़ से रसूलल्लाह के लिये लेकर आये थे। 5. शुरू शुरू में यह तसबीह एक धागे की शक्ल में थी लेकिन जनाबे हमज़ा की शहादत के बाद आप नें उनकी क़ब्र की मिट्टी से एक तसबीह बनवाई। उसके बाद लोगों नें भी ऐसा ही किया यानी जनाबे हमज़ा की मिट्टी से तसबीह बनाई। इस काम का यह असर हुआ कि शहादत की मान्यता और शहीद की श्रेष्ठता भी लोगों को मालूम हुई। 6. जनाबे फ़ातिमा स. अपनी ज़बान से भी दूसरों के लिये हेजाब की ज़रूरत और मान्यता को बयान करती थीं और अमल से भी उसे कर के दिखाती थीं बल्कि पवित्रता की सबसे बड़ी आईडियल हैं। आप फ़रमाती थीं कि औरत का सबसे बड़ा गहना यह है कि ना कोई नामहरम मर्द उसे देखे और न उसकी नज़र नामहरम मर्दों की तरफ़ जाए। एक दिन रसूले ख़ुदा स. अपने एक सहाबी के साथ आपके घर आये जोकि देख नहीं सकते थे। जनाबे फ़ातिमा फ़ौरन परदे के पीछे चली गईं। 7. कभी कभी आप पूरी रात नमाज़ पढ़ती और इबादत करती थीं और दूसरों के लिये दुआएं किया करती थीं। जब बच्चे आपसे पूछते थे कि आप केवल दूसरों के लिये क्यों दुआ करती हैं तो आप जवाब देतीं: मेरे बच्चों! पहले पड़ोसी फिर घर वाले। 8. रसूले ख़ुदा स. आपको बहुत ज़्यादा चाहते थे क्योंकि आपको ख़ुदा से बहुत मोहब्बत थी और दूसरी बात यह थी कि आपको देख कर रसूले ख़ुदा स. को हज़रत ख़दीजा की याद आती थी। 9. आप अपने पिता का बहुत आदर करती थीं, जब भी अल्लाह के रसूल आपके घर आते तो आप उनके एहतेराम के लिये खड़ी हो जातीं, उन्हें चूमतीं और उन्हें उस जगह बैठातीं जो आपने उनके लिये रखी थी। 10. आपके पास जो भी होता था चाहे पैसे हों या दूसरी चीज़ें वह ग़रीबों और उन लोगों को दिया करती थीं जिनको ज़रूरत होती थी। एक बार आपने रसूले ख़ुदा स. के पास बहुत सारा कपड़ा भेजा जिससे अल्लाह के रसूल नें बहुत से बच्चों के लिये कपड़े बनवाये। 11. आपकी ज़िन्दगी बड़ी सादा थी। दुनिया की कठिनाइयों को बर्दाश्त करती थीं ताकि आख़ेरत की नेमतों को पाएं। 12. आप ज़्यादातर घर में पति की सेवा और बच्चों की ट्रेनिंग (पालन-पोषण) में व्यस्त रहती थीं लेकिन जब दीन के लिये ज़रूरत होती तो घर से बाहर निकलतीं और दीन का डिफ़ेंस करती थीं, जैसे आपने ओहद की जंग में शिरकत की और आपका काम ज़ख़्मियों को मरहम पट्टी कराना था। 13. आप ग़ुलामों को आज़ाद करने पर बहुत ज़्यादा ज़ोर देती थीं और उसे ख़ुदा के लिये एक बहुत नेक काम समझती थीं। हज़रत अली अ. नें एक बार आपके लिये एक हार ख़रीदा उसे आपने बेचकर उसके पैसों से एक ग़ुलाम ख़रीदा और उसे आज़ाद कर दिया। रसूले ख़ुदा स. अपनी बेटी के इस काम से बहुत ख़ुश हुए और उन्होंने आपकी सराहना की। 14. आपके घर जो भी आता ख़ाली हाथ वापस नहीं जाता था। एक बार हज़रत अली अ., जनाबे ज़हरा और आपके बच्चों नें तीन दिन तक रोज़ा रखा। जब अफ़्तार का समय होता तो कोई मांगने के लिये आ जाता और सारे लोग उसको अपना खाना दे देते थे। ख़ुदा को उनका यह अमल इतना अच्छा लगा कि उसनें आपके लिये एक सूरा भेजा जिसका नाम सूरए इन्सान (हलअता) है। 15. हज़रत अली अ. और जनाबे ज़हरा स. नें घर के कामों को बाँट लिया था। पानी, ईंधन, सौदा लाना और घर से बाहर के काम हज़रत अली अ. के ज़िम्मे थे और खाना बनाना, घर की सफ़ाई और घर के अन्दर के के दूसरे काम जनाबे ज़हरा के ज़िम्मे थे। हज़रत अली अ. घर के अन्दर के कामों में भी आपकी सहायता किया करते थे। 16. आप अपने पति का बहुत ज़्यादा ख़्याल रखती थीं और उन पर पड़ने वाली मुसीबतों में उनका साथ देती थीं और उनके दुख को कम करने की कोशिश करती थीं। हज़रत अली अ. फ़रमाते थे: जब मैं घर आता था और ज़हरा को देखता था तो मेरे सारे दुख दूर हो जाते थे। हम दोनों कभी ऐसा काम नहीं करते थे जिससे एक दूसरे को दुख हो। 17. आप जनाबे हमज़ा के मज़ार पर उनकी ज़ियारत के लिये जाया करती थीं जिसका मक़सद यह था कि ख़ुदा के लिये जान देने और शहीद होने वालों का नाम हमेशा ज़िन्दा रहे और लोग उन्हें भूल न जाएं। 18. जब आप के पति और मुसलमानों के इमाम हज़रत अली अ. का हक़ छीन लिया गया और दूसरे लोग उनकी जगह आकर बैठ गए तो आप उनके हक़ के लिये घर से बाहर निकलीं और अपने इमाम का डिफ़ेंस किया और मुसलमानों को यह याद दिलाया कि उनका असली इमाम कौन है और वह किसके पीछे चल पड़े हैं। 19. शहादत से पहले आप नें जनाबे असमा से वसीयत की कि उनका जनाज़ा ताबूत में रख कर ले जाया जाए जबकि उस ज़माने में ताबूत की रस्म नहीं थी इससे पता चलता है कि आपके अन्दर कितनी पवित्रता थी और आप को अपने परदे का कितना ख़्याल था। 20. आप नें हज़रत अली अ. से वसीयत की थी कि आपको रात में ग़ुस्ल दें, रात में कफ़न पहनाएं और रात ही में दफ़्न करें और जिन लोगों नें उन्हें दुख पहुँचाया था उनको जनाज़े में (अंतिम संस्कार) न आने दें इस तरह आप नें सारी दुनिया को बता दिया कि किन लोगों नें उन पर ज़ुल्म किया है और किन लोगों से वह नाराज़ रही हैं।

source : wilayat.in
0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

अल्लाह के इंसाफ़ का डर
हज़रत फातेमा मासूमा का शुभ जन्म ...
हज़रत इमाम हसन अस्करी (स) के उपदेश
शब्दकोष में शिया के अर्थः
इमाम हसन अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म ...
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ ...
बाज़ार और मछली की कहानी
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ)
हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर ...
सबसे अच्छा भाई

 
user comment