मजलिसे उल्माए हिन्द में आयोजित संगोष्ठी में उल्मा ने जवानों को खिताब किया और कहा कि शिया व सुन्नी मतभेद साम्राज्यवाद की योजना है।
लखनऊ 26 मईः मजलिसे उल्माए हिन्द द्वारा आयोजित और अहलेबैत कौंसिल इंडिया के सहयोग से आज मजलिसे उल्माए हिन्द के कार्यालय में “मारेफ़ते इमामे जमाना अ0स0“ के विषय पर संगोष्ठी का आयोजन हुआ। संगोष्ठी में सप्ताहिक दीनी क्लासेज़ में भाग ले रहे युवकों ने विशेष तौर पर भाग लिया और लखनऊ की वभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्रों, विद्वानों और अन्य गणमान्य अतिथि भी शरीक हुए ।
ईरान से आए मेहमान आलिम मौ0 शेहबाजियान ने संगोष्ठी में युवाओं को संबोधित करते हुये कहा कि “एक मोहम्मदी इस्लाम है और एक अमरिकाई इस्लाम है । मोहम्मदी इस्लाम मानव कल्याण और शांति और एकता की दावत देता और अमरिकाई इस्लाम, इस्लाम के नाम पर अराजकता, अज्ञान, कलह, लड़ाई, दंगे और बिदअतों का प्रचार करता है। उन्होंने अपने संबोधन में आगे कहा कि मस्जिदों को बड़ी संख्या में आबाद करना एहेम नहीं है, इस्लाम के दुश्मनों को उन मुसलमानों से कोई खतरा नहीं है जो केवल मस्जिदों को आबाद करने में जी-जान से लगे हुए है और समाज की समस्याओं से अनभिज्ञ हैं ।दुश्मन को खतरा है उन मुस्लिम युवकों से है जो इबादत और दीनी कर्तव्यों को अंजाम देने के साथ समाज व समाज की समस्याओं पर ध्यान करते हैं। क्योंकि इस्लाम स्वयं को बेहतर बनाने के साथ समाज कल्याण के लिए आया है। इस्लाम का उद्देश्य केवल नमाज़ें पढवाना और मस्जिदें आबाद करना नही है उसका उद्देश्य इन कामों के साथ समाज का उद्वार और इन्सानियत के लिये काम करना है। उन्होंने आगे अपने संबोधन में कहा कि आज युवा पीढ़ी के लिये अपनी जिम्मेदारी को समझना बहुत जरूरी है। इस्लाम और अहलेबैत के नाम पर जिन रस्मों और मिथकों को इस्लाम मै दाखिल किया जा रहा है उनका विरोध करना और समाज को इन बुराइयों से बचाना बेहद जरूरी है। ऐसी रस्में और मिथकों से बचना चाहिए जिन्हें आज पश्चिमी मिडिया इस्लाम के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है। और गैर मुस्लिम इस्लाम से अधिक दूर होते जा रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा कि शिया व सुन्नी एकता हर हाल में जरूरी है। जो अराजकता और कलह की बात करता है वह मुसलमान नहीं बल्कि दुश्मन का सहायक है। इमाम की ग़ैबत के युग में हमें चाहिए कि एकता और शांति के लिए प्रयास करें इमाम ज़ैनुल आबेदीन की एक प्रार्थना है जो आपने सीमा रक्षकों के लिए प्रार्थना की है। यह कौन सा समय है कि जिस ज़माने में इमाम ज़ैनुल आबेदीन सीमा रक्षकों यानी सैनिकों के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। क्या सीमा के सभी रक्षक केवल शिया थे? बल्कि सुन्नी, शिया और संभव है कि गैर मुस्लिम भी शामिल रहे हों। शिया सुन्नी मतभेद साम्राज्यवाद और इस्लाम दुश्मनों की पुरानी योजना है। यह साजिश तभी विफल हो सकती है कि आपसी मेलजोल बढे़ और एकजुट होकर मिल्लत के विकास की कोशिश की जाए।
मजलिसे उल्माए हिन्द के महासचिव मौलाना सैयद कल्बे जवाद नकवी ने मेहमानों का स्वागत करते हुए कहा कि जो बातें अतिथि आलिमों ने यहां प्रस्तुत की हैं उन पर विचार करें। आज शिया व सुन्नी एकता समय की मुख्य आवश्यकता है। ये मतभेद हमारी ताकत को खत्म कर देगा यह समझना चाहिए। मौलाना ने कहा कि अल्लाह ने यह दुनिया विनाश अनैतिकता के लिए नहीं बनाई है और न उसने कहीं विनाश और हिंसा के लिए आमंत्रित किया है। इसके पैगम्बरों और इमामों का उद्देश्य मानवता के कल्याण,विकास और समाज का बेहतर निर्माण था।
ईरानी आलिम मोहम्मद रजा नसुरी ने अपने संबोधन में कहा कि युवाओं के लिए आवश्यक है कि वे कुरान और इतरत की इच्छा के अनुसार कार्य करें और अपनी अनुभूति में जोड़ें। अपने हर काम को बुद्धि और तर्क के पैमाने पर कसें और विचार करे कि क्या हमारा जीवन अनुसार कुरान और इतरत की मरजी के अनुसार है या नहीं। उन्होंने अपने बयान में कहा कि जब मनुष्य के स्तर मानसिक बुलंद होगी तब मनुष्य प्रत्येक संदेह और हर समस्या का जवाब खोज लेगा।
संगोष्ठी के अंत में युवाओं ने अतिथि आलिमों से अलग अलग विषयों पर विभिन्न सवाल किए जिनके संतोषजनक उत्तर दिए गए। फ़ारसी से उर्दू में अनुवाद मौलाना इस्तेफा रजा ने कया मेहमानों का परिचय मौलाना जलाल हैदर नकवी ने पेश किया। विशेष रूप से भाग लेने वालों में मौलाना इब्ने अली वाएज़ मौलाना जलाल हैदर नकवी दिल्ली, मौलाना मोहम्मद तफज़्जुल मौलाना नाज़िश अहमद, और कार्यक्रम के संयोजक आदिल फ़राज मौजूद रहे। आखिर मै आदिल फ़राज ने सभी मेहमानों का शुक्रिया अदा कया।
source : abna24