मुबाहिला का वाकया हिजरी कैलन्डर के 9वें साल में हुआ। इस घटना में 14 ईसाई विद्वानों (नजरान) का एक दल इस्लाम की सत्यता पर तर्क करने हज़रत मोहम्मद (स:अ:व:व) के पास आया ! दोनों पक्षों ने अपने अपने तर्क रखे लेकिन कुछ दिन बीत जाने के बाद भी इसाईओं के दल ने तर्क नहीं माना, तभी अल्लाह ने यह आयत नाजिल की :
"ये आयतें है और हिकमत (तत्वज्ञान) से परिपूर्ण अनुस्मारक, जो हम तुम्हें सुना रहे हैं (कुरान 3:58), निस्संदेह अल्लाह की दृष्टि में ईसा की मिसाल आदम जैसी है कि उसे मिट्टी से बनाया, फिर उससे कहा, "हो जा", तो वह हो जाता है (कुरान 3:59), यह हक़ तुम्हारे रब की ओर से हैं, तो तुम संदेह में न पड़ना (कुरान 3:60), अब इसके पश्चात कि तुम्हारे पास ज्ञान आ चुका है, कोई तुमसे इस विषय में कुतर्क करे तो कह दो, "आओ, हम अपने बेटों को बुला लें और तुम भी अपने बेटों को बुला लो, और हम अपनी स्त्रियों को बुला लें और तुम भी अपनी स्त्रियों को बुला लो, और हम अपने को और तुम अपने को ले आओ, फिर मिलकर प्रार्थना करें और झूठों पर अल्लाह की लानत भेजे।" (कुरान 3:61)"
मशहूर रिवायत के मुताबिक 24 ज़िलहिज्ज ईद मुबाहिला का दिन है! इस दिन पवित्र पैगंबर (स:अ:व:व) ने नजरान के नसारा (ईसाईयों) से मुबाहिला किया था! घटना इस प्रकार है की हजरत रसूल अल्लाह (स:अ:व:व) ने अपनी अबा (चादर) ओढ़ी फिर अमीर-अल मोमिनीन अली इब्न अबी तालिब (अ:स) जनाब फ़ातिमा (स:अ) हज़रत हसन (अ:स) व हज़रत हुसैन (अ:स) को अपनी अबा में ले लिया और फरमाया की "या अल्लाह, हर नबी के अहलेबैत होते हैं और यह मेरे अहलेबैत (अ:स) हैं, इनसे हर क़िस्म की जाहिरी और बातिनी बुराई को दूर रख और इनको इस तरह पाक रख जैसे पाक रखने का हक है, इस वक़्त जिब्राइल अमीन (अ:स) ततहीर की आयत लेकर नाजिल हुए और इसके बाद हज़रत रसूल ख़ुदा (स:अ:व:व) ने इन चार हस्तियों को अपने साथ लिया और मुबाहिला के लिए निकले! नजरान के नुसार ने जब आपको इस शान से आते देखा और अज़ाब की अलामत को सोचा तो मुबाहिला से हट कर सुलह कर ली और जज़िया देने पर राज़ी हो गए! आज ही के दिन अमीरल मोमिनीन हज़रात अली (अ:स) ने एक मांगने वाले को रुकू'अ की हालत में अंगूठी दी थी, और आपकी शान में "इन्नमा वली यकुमुल'लाह----(आयत मुबारकः ) नाजिल हुई थी ! आज का दिन बहुत बड़ी अज़मत और खुसूसियत का है और इस दिन के कुछ अमाल इस प्रकार हैं :
अमाल
1. गुसल करें और हो सके तो नया या फिर साफ़ कपड़े पहनें
2. रोज़ा रखें और सदका दें
3. 2 रक्'अत नमाज़ पढ़ें जिसका वक़्त (ज़वाल) तरतीब और सवाब ईद गदीर की तरह ही है अलबत्ता इसमें आयत अल-कुर्सी को "हुम् फ़ीहा खालिदून" तक पढ़ें (यानि हर रक्'अत में सुराः अल-फातिहा के बाद (1) सुराः इख्लास 10 मर्तबा (2) आयत अल-कुर्सी 10 मर्तबा (3) सुराः अल-क़द्र 10 मर्तबा
4. ज़्यारत जामिया कबीर और ज़्यारत जामिया सगीर को पढने की भी ताकीद की गयी है!
source : alhassanain