4 शाबान 26 हिजरी को मदीना में हज़रत अमीरूल मोमेनीन और उम्मुल बनीन के नामवर बेटे जनाबे अब्बास अलैहिस्सलाम का शुभजन्म हुआ। आपकी माँ हेज़ाम बिन खालिद की बेटी थीं, उनका परिवार अरब में बहादुरी और साहस में मशहूर था।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने जनाब फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत के दस साल बाद जनाबे उम्मुलबनीन अ. से शादी की।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम और फ़ातिमा बिन्ते हेज़ाम के यहाँ चार बेटे पैदा हुए, अब्बास, औन, जाफ़र और उस्मान कि जिनमें सबसे बड़े हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम थे। यही कारण है कि उनकी मां को उम्मुल बनीन यानी बेटों की माँ कहा जाता है।
जब जनाबे अब्बास अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कानों में अज़ान और इक़ामत कही। आप जनाब अब्बास अलैहिस्सलाम के हाथों को चूमा करते थे और रोया करते थे, एक दिन जनाब उम्मुल बनीन ने इसका कारण पूछा तो इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया यह हाथ हुसैन की मदद में काट दिये जाएंगे।
जनाब अब्बास न केवल कद में लम्बे और लहीम शहीम थे बल्कि समझ व बुद्धिमानी और ख़ूबसूरती में भी मसहूर थे। उन्हें मालूम था कि वह आशूर के लिए इस दुनिया में आए हैं।
जनाब अब्बास अ. ने बारह और चौदह साल की उम्र में उस समय जब हज़रत अली अलैहिस्लाम, दुश्मनों को खत्म करने में व्यस्त थे, कुछ जंगो में हिस्सा लिया और इसके बावजूद कि उन्हें युद्ध में लड़ने की ज़्यादा अनुमति नहीं मिलती थी फिर भी उसी कमसिनी में कुछ नामी अरब लड़ाकों को परास्त करने में सफल रहे।
सिफ़्फ़ीन में एक दिन हज़रत अली अ. की सेना से एक नकाबदार जवान मैदान में आया। मुआविया की सेना में आतंक की लहर दौड़ गई। हर एक दूसरे से पूछ रहा था कि यह युवा कौन है जो इस बहादुरी के साथ मैदान में आया है?
मुआविया का कोई सैनिक मैदान में कदम रखने का साहस नहीं कर पा रहा था। मुआविया ने अपने मशहूर सेनापति इब्ने शअसा को आदेश दिया कि उस जवान से लड़ने जाए।
इब्ने शअसा ने कहाः लड़ाई में मुझे दस हजार लोगों का प्रतिद्वंद्वी माना जाता है, फिर क्यों मुझे एक बच्चे के मुक़ाबले में भेज रहे हो? इब्ने शअसा ने अपने बड़े बेटे को जंग के लिए भेजने की पेशकश की जिसे मुआविया ने स्वीकार कर लिया।
लेकिन जैसे ही वह मैदान में गया पलक झपकते ही उसका काम तमाम हो गया। इब्ने शअसा ने अपने दूसरे बेटे को भेजा है, वह भी मारा गया, इसी तरह उसके सातों के सातों बेटे नरक चले गये। उसके बाद स्वंय उसने क्रोध में भर कर मैदान में कदम रखा और बहादुर जवान से बोलाः तूने मेरे बेटों को मार डाला, ख़ुदा की क़सम तेरे माँ बाप को तेरा गम पहुँचाउंगा। लेकिन बहुत जल्द वह खुद भी नरक पहुंच गया। सभी उस बहादुर जवान को ईर्ष्या भरी निगाहों से देख रहे थे। इमाम अलैहिस्सलाम ने उस युवक को अपने पास बुलाया और उसकी नक़ाब उठाई और माथे को चूमा। तब सबकी आंखें खुली की खुली रह गईं, देखा वह कोई और नहीं बल्कि अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम के नामवर बेटे अब्बास अ. हैं।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद जनाब अब्बास अलैहिस्सलाम ने अपने भाई इमाम हसन अलैहिस्सलाम की इमामत के सख्त दौर को देखा। जिस समय इमाम हसन अलैहिस्सलाम को जहर देकर शहीद गया आपकी उम्र 24 वर्ष थी। जनाबे अबुल फ़ज़्लिल अब्बास उम्र भर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ रहे।
हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम कर्बला की ओर हरकत करने वाले इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कारवान के सेनापति थे। इमाम हुसैन अ. ने कर्बला के मैदान में धैर्य, बहादुरी और वफादारी के वह जौहर दिखाए कि इतिहास में जिसकी मिसाल नहीं मिलती।
अब्बास अमदार ने अमवियों की पेशकश ठुकरा कर मानव इतिहास को वफ़ादारी का पाठ दिया। आशूर के दिन कर्बला के तपते रेगिस्तान में जब अब्बास अ. से बच्चों के सूखे होठों और नम आँखों को न देखा गया तो सूखी हुई मश्क को उठाया और इमामअ. से अनुमति लेकर अपने जीवन का सबसे बड़ा इम्तेहान दिया। दुश्मन की सेना को चीरते हुये घाट पर कब्जा किया और मश्क को पानी से भरा लेकिन खुद एक बूंद भी पानी नहीं पिया। इसलिए कि अब्बास अ. की निगाह में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और आपके साथियों के भूखे प्यासे बच्चों की तस्वीर थी।
दुश्मन को पता था कि जब तक अब्बास के हाथ सलामत हैं कोई उनका रास्ता नहीं रोक सकता। यही वजह थी कि हज़रत अब्बास के हाथों को निशाना बनाया गया। मश्क की रक्षा में जब अब्बास अलमदार के हाथ अलग हो गए और दुश्मन ने पीछे से हमला किया तो हज़रत अब्बास अ. से घोड़े पर संभला नहीं गया और जमीन पर गिर गये। इमाम हुसैन अ. ने खुद को अपने भाई के पास पहुंचाया।
source : abna24