Hindi
Friday 17th of May 2024
0
نفر 0

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत

इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम की बहुत उपाधियां हैं जिनमें सबसे प्रसिद्ध रज़ा है जिसका अर्थ है राज़ी व प्रसन्न रहने वाला। इस उपाधि का बहुत बड़ा कारण यह है कि इमाम महान ईश्वर की हर इच्छा पर प्रसन्न रहते थे और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के साथी एवं अनुयाई भी आप से प्रसन्न रहते थे और इमाम के दुश्मन उनकी अप्रसन्नता का कोई कारण नहीं ढूढ पाते थे।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत



इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम की बहुत उपाधियां हैं जिनमें सबसे प्रसिद्ध रज़ा है जिसका अर्थ है राज़ी व प्रसन्न रहने वाला। इस उपाधि का बहुत बड़ा कारण यह है कि इमाम महान ईश्वर की हर इच्छा पर प्रसन्न रहते थे और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के साथी एवं अनुयाई भी आप से प्रसन्न रहते थे और इमाम के दुश्मन उनकी अप्रसन्नता का कोई कारण नहीं ढूढ पाते थे।

 

इसी प्रकार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की एक उपाधि ग़रीब भी है जिसका अर्थ है अपने देश से दूर। क्योंकि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को अब्बासी शासक मामून ने विवश करके उनकी मातृभूमि मदीना से अपनी सरकार की राजधानी मर्व बुलाया था और वहीं पर उन्हें शहीद कर दिया था।

 

अत्याचारी शासक मामून यह सोचता था कि जब वह इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी बना देगा तो इस प्रकार वह अपनी अवैध सरकार के विरुद्ध पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के चाहने वालों के आंदोलन को रोक सकेगा और साथ ही वह इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम पर पूर्ण निगरानी रख सकेगा और सबसे महत्वपूर्ण यह कि वह अपनी अवैध सरकार को वैध दर्शा सकेगा परंतु इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपनी दूरगामी सोच से इस खतरे को इस्लाम को जीवित करने और मुसलमानों के मार्गदर्शन के अवसर में परिवर्तित कर दिया।

 

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जब अपने पैतृक नगर मदीना से खुरासान के मर्व नगर के लिए रवाना होने वाले थे तब वे इस प्रकार मदीना से निकले हुए कि लगभग समस्त लोग इस बात से अवगत हो गये कि इमाम विवशतः मदीना छोड़कर मर्व जा रहे हैं। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जब पवित्र नगर मदीना छोड़ रहे थे तब उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम की पावन समाधि पर इस प्रकार विलाप किया और दुआ की जिससे वहां मौजूद लोगों ने समझ लिया कि यह उनके जीवन की अंतिम यात्रा है और इसके बाद फिर कभी वे पवित्र नगर मदीना लौटकर नहीं आयेंगे। इसी तरह इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने उस समय तक उत्तराधिकारी के पद को स्वीकार नहीं किया जब तक उन्हें जान से मार देने की धमकी नहीं दी गयी। जब इमाम को उत्तराधिकारी बनने का प्रस्ताव दिया गया तो उन्होंने पहले तो उसे स्वीकार नहीं किया और जब स्वीकार करने के लिए बार बार कहा गया तो उन्होंने स्वीकार न करने पर इतना आग्रह किया कि सब लोग इस बात को समझ गये कि मामून उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाने पर आग्रह कर रहा है। काफी आग्रह के बाद इमाम ने कुछ शर्तों के साथ मामून का उत्तराधिकारी बनना स्वीकार कर लिया। इमाम ने इसके लिए एक शर्त यह रखी कि सरकारी पद पर किसी को रखने और उसे बर्खास्त करने, युद्ध का आदेश देने और शांति जैसे किसी भी मामले में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। इस प्रकार जब इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने मामून का उत्तराधिकारी बनना स्वीकार कर लिया तब भी मामून अपने अवैध कार्यों का औचित्य नहीं दर्शा सकता था।

 

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का यह व्यवहार न केवल इस बात का कारण बना कि मामून की चालों व षडयंत्रों पर पानी फिर जाये बल्कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों और उनके अनुयाइयों के लिए वह अवसर उत्पन्न हो गया जो उससे पहले नहीं था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम द्वारा मामून का उत्तराधिकारी बन जाने से पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के चाहने वालों का मनोबल ऊंचा हो गया और उन पर डाले गये दबावों में कमी हो गयी। पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों को सरकारें सदैव खतरे के रूप में देखती और उन्हें प्रताड़ित करती थीं परंतु इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के मामून का उत्तराधिकारी बन जाने से सभी स्थानों पर उन्हें अच्छे नामों के साथ याद किया गया और जो लोग पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की विशेषताओं एवं उनके सदगुणों से अवगत नहीं थे वे परिचित हो गये और शत्रुओं ने अपनी कमज़ोरी एवं पराजय का आभास कर लिया।

 

लोगों की दृष्टि में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की जो गरिमा व महत्व था मामून ने उसे खत्म करने के लिए एक चाल चली और वह चाल धार्मिक सभाओं एवं शास्त्राथों का आयोजन था।

 

मामून ऐसे लोगों को शास्त्रार्थ में आमंत्रित करता था जिससे थोड़ी से भी उम्मीद होती थी कि वह शास्त्रार्थ में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को हरा देगा। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इन शास्त्रार्थों में विभिन्न धर्मों के लोगों को हरा देते थे और दिन- प्रतिदिन इमाम की प्रसिद्धि चारों ओर फैलती जा रही थी। ऐसे समय में मामून को अपनी पराजय और घाटे का आभास हुआ और उसने सोचा कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से मुकाबले के लिए मुझे भी वही रास्ता अपनाना होगा जो अतीत के अत्याचारी शासकों ने अपनाया है। यानी इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को शहीद कर देने का। इस प्रकार मामून का उत्तराधिकारी बने हुए इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को एक वर्ष का समय ही हुआ था कि उसने एक षडयंत्र रचकर उन्हें शहीद करवा दिया।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम यद्यपि अपनी मातृभूमि से दूर शहीद हुए परंतु महान ईश्वर ने उनके पावन अस्तित्व से मार्गदर्शन का जो चेराग़ प्रज्वलित किया था वह कभी भी बुझने वाला नहीं है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने कथन के रूप में जो अनमोल मोती छोड़े हैं वह बहुत ही मूल्यवान हैं और आज के कार्यक्रम में हम इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के एक कथन की व्याख्या करेंगे जिसमें इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अच्छे बंदों की पांच विशेषताएं बयान की हैं।

 

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की दृष्टि में अच्छे इंसानों की पहली विशेषता यह है कि जब वे अच्छा कार्य अंजाम देते हैं तो खुश होते हैं। इतिहास में आया है कि एक व्यक्ति ने पैग़म्बरे इस्लाम से कहा कि मैं अपने अमल को गोपनीय रखता हूं और इस बात को पसंद नहीं करता हूं कि कोई उससे अवगत हो परंतु लोग मेरे गोपनीय कार्य को जान जाते हैं और जब मुझे पता चलता है कि लोग मेरे अमल से अवगत हो गये हैं तो यह जानकर मुझे खुशी होती है। इस पर पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया इसके तुम्हें दो पुण्य मिलेंगे एक गुप्त रखने का और दूसरे स्पष्ट होने का”

 

हां अगर यह खुशहाली दिखावे के कारण हो तो अमल अकारय है और यह भी संभव है कि यह अच्छा कार्य कभी भी स्पष्ट न हो परंतु यदि मोमिन की प्रसन्नता का कारण ईश्वर की प्रसन्नता के कारण है तो प्रसन्नता न तो दिखावा है और न ही अहं बल्कि एक आध्यात्मिक स्थिति है जो अच्छा कार्य करने के बाद इंसान में पैदा होती है।

अच्छे इंसानों की दूसरी विशेषता इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की दृष्टि में यह है कि जब भी उनसे कोई बुरा कार्य हो जाता है तो वे ईश्वर से क्षमा याचना करते हैं। महान ईश्वर पवित्र कुरआन में फरमाता है “ और जिन लोगों से पाप हो जाते हैं या वे स्वयं पर अत्याचार कर बैठते हैं तो उन्हें ईश्वर की याद आ जाती है और वे अपने पापों के लिए क्षमा याचना करते हैं और ईश्वर के अतिरिक्त कौन है जो पापों को क्षमा करे वे पाप करने पर आग्रह नहीं करते हैं जबकि वे जानते भी हैं”

 

पवित्र कुरआन की इस आयत में जो बात कही गयी है उससे स्पष्ट होता है कि भले आदमी से भी पाप हो जाता है और जब वह पाप कर बैठता है तो उसे महान ईश्वर की याद आ जाती है और अपने किये हुए पापों से ईश्वर से क्षमा याचना करता है और महान ईश्वर के अतिरिक्त कोई भी इंसान के पापों को क्षमा नहीं कर सकता।

 

हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के अनुसार भले इंसानों की तीसरी विशेषता यह है कि जब उन्हें कोई नेअमत दी जाती है तो वे ईश्वर का आभार करते हैं। वास्तव में महान ईश्वर के वास्तविक सच्चे बंदे वे हैं जो ज़बान के अतिरिक्त दिल से भी उसके आभारी होते हैं यानी दिल से वे उसके शुक्रगुजार होते हैं और उन्हें इस बात का विश्वास होता है कि उन्हें जो भी नेअमत प्रदान की जाती है वह महान ईश्वर की ओर से है। जब उन्हें इस बात का विश्वास होता है कि उन्हें जो कुछ प्रदान किया जा रहा है वह महान ईश्वर की ओर से है तो वे अपनी समस्त शक्ति व संभावना का प्रयोग ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए करते हैं जो महान व सर्वसमर्थ ईश्वर का आभार व्यक्त करने का एक उच्च चरण यह है कि इंसान नेअमतों को केवल महान ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के मार्ग में खर्च करे। उदाहरण स्वरूप अपने शरीर के अंगों का प्रयोग जिसे महान ईश्वर ने ही प्रदान किया है, उसकी उपासना में और पापों से दूरी में करना चाहिये।

हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की दृष्टि में भले इंसान की चौथी विशेषता यह है कि वह दुनिया की कठिनाइयों पर धैर्य करता है। महान ईश्वर पवित्र कुरआन में कहता है कि निश्चित रूप से हम तुम सबकी भूख, जानी व माली नुकसान और कम पैदावार के माध्यम से परीक्षा लेंगे और हे पैग़म्बर आप धैर्य करने वालों को शुभ सूचना दे दीजिये कि जो मुसीबत पड़ने पर कहते हैं कि हम ईश्वर की ओर से हैं और उसी की ओर पलट कर जायेंगे। यह वही लोग हैं जिन पर ईश्वर की कृपा हुई है और वे सही मार्ग पाने वाले हैं।

 

हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की दृष्टि में भले लोगों की एक अन्य विशेषता यह है कि वे क्रोध के समय दूसरों को क्षमा कर देते हैं। इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कोई बंदा नहीं है कि जो अपने क्रोध को पी जाये मगर यह कि ईश्वर लोक- परलोक में उसकी प्रतिष्ठा में वृद्धि कर देगा”

 

दूसरों को माफ कर देना क्षमा का चरम शिखर है क्योंकि माफ कर देने से शांति की सुरक्षा होती है और माफ कर देने वाला व्यक्ति उस मामले को महान ईश्वर के हवाले कर देता है कि इसका जो भी दंड होगा उसे ईश्वर देगा परंतु दूसरे की ग़लती को इस प्रकार माफ कर देना कि ईश्वर भी उसे माफ कर देगा और परलोक में उसे दंडित नहीं करेगा यह क्षमा का चरम शिखर है।

 

हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ज्ञान के अथाह सागर के यह कुछ मोती हैं जिन्हें पेश किया गया। महान व सर्वसमर्थ ईश्वर से हम प्रार्थना करते हैं कि हमारी गणना पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के अनुयाइयों में करे और हमारी आत्मा को उनके ज्ञान के अथाह सागर से तृप्त करे। पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है” हमारे शरीर का एक टुकड़ा खुरासान में दफ्न होगा, कोई दुःखी और पापी उसका दर्शन नहीं करेगा मगर यह कि ईश्वर उसके दुःख को दूर कर देगा”

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

क्या क़ुरआन दस्तूर है?
जनाबे ज़ैद शहीद
सलाह व मशवरा
सबसे बड़ी ईद,ईदे ग़दीर।
हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. का ...
वा ख़ज़ाआलहा कुल्लो शैइन वज़ल्ला ...
आयतल कुर्सी का तर्जमा
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की ...
क्यों मारी गयी हज़रत अली पर तलवार
हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का ...

 
user comment