Hindi
Thursday 28th of November 2024
0
نفر 0

हज़रत मासूमा स. का एक संक्षिप्त परिचय।

हज़रत मासूमा स. का एक संक्षिप्त परिचय।

अहलेबैत न्यूज़ एजेंसी अबना: हज़रत मासूमा स. (अ) शियों के सातवें इमाम मूसा काज़िम (अ) की बेटी हैं, उनकी माँ हज़रत नजमा ख़ातून हैं, हज़रत मासूमा स. (अ) पहली ज़ीकाद 173 हिजरी में मदीना मुनव्वरा में पैदा हुईं।
200 हिजरी में मामून अब्बासी के आग्रह और धमकियों की वजह से इमाम रज़ा (अ) ने मर्व का सफ़र किया और आप अपने परिवार में से किसी को लिए बिना खुरासान की ओर रवाना हुए।
हज़रत इमाम रज़ा (अ) की मर्व की ओर यात्रा के एक साल बाद 201 हिजरी में हज़रत मासूमा स. (अ) ने अपने भाई की ज़ियारत के शौक और दीन व विलायत के संदेश को पहुंचाने के उद्देश्य से अपने कुछ भाइयों और भतीजों के साथ खुरासान का सफ़र शुरू किया और हर शहर और क्षेत्र में लोगों की ओर से उनका भव्य स्वागत किया, ईरान के सावह शहर में कुछ अहलेबैत (अ) के दुश्मन थे और उन्हें सरकारी गुर्गों का समर्थन प्राप्त था, उन्होंने ने इस कारवाँ को रोका और हज़रत मासूमा स. (अ) के साथियों से लड़ाई की, इस लड़ाई के परिणाम में इस क़ाफ़िले के लगभग सभी मर्द शहीद कर दिए गए और एक रिवायत के अनुसार हज़रत मासूमा स. (अ) को भी ज़हर दे दिया गया।
यहाँ तक कि हज़रत फातिमा मासूमा स. (अ) या दुखः दर्द के कारण या ज़हर के असर की वजह से बीमार हुईं और उस समय खुरासान जाना संभव नहीं था इसलिए उन्होंने कुम जाने का इरादा किया लगभग 23 रबीउल अव्वल 201 हिजरी में क़ुम में प्रवेश किया और आज के «मैदान मीर» नामक मोहल्ले में «मूसा बिन खज़रह» के घर में रुक कर उन्हें अपनी मेजबानी का सौभाग्य दिया।
हज़रत मासूमा (स.) अ (17 दिन तक उस मुहल्ले में रहीं, आपकी इबादतगाह «बैतुन्नूर» नामक जगह थी और यह जगह अब भी हज़रत मासूमा स. के चाहने वालों के लिए ज़ियारतगाह बनी हुई है।
आख़िरकार 10 रबीउस्सानी या एक रिवायत के अनुसार 12 रबीउस्सानी 201 हि. को अपने भाई के दर्शन करने से पहले अपने मालिक से जा मिलीं हज़रत मासूमा स. (अ) के देहान्त के बाद मूसा बिन खज़रह नें आपकी कब्र पर टाट का एक शामियाना खड़ा किया और फिर इमाम जवाद अलैहिस्सलाम की बेटी ज़ैनब ने 256 हिजरी में अपनी फुफी की मुबारक कब्र पर पहला गुंबद बनाया। वर्षों से हज़रत मासूमा स. (अ) की क़ब्र शियों और अहले बैत (अ) के चाहने वालों के लिए ज़ियारत का केंद्र है और कई बार जिसका पुनर्निर्माण हुआ है और इसे विस्तार देकर पूरा किया जाता रहा है आज इस कब्र पर सुंदर ज़रीह और गुंबद के अलावा कई दरवाज़े, बरामदे, आंगन, और कई गुलदस्ते हैं।
क़ब्रे मुतहर
ऑले मुजफ्फर ख़ानदान के सरपरस्त «अमीर मुजफ्फर अहमद बिन इस्माइल» के आदेश से 605 हिजरी में उस युग के सबसे बड़े टाइल्स का काम करने वाले उस्ताद «मुहम्मद बिन अबी ताहिर काशी क़ुम्मी» के हाथों रंगीन टाइल्स के काम अंजाम पाया इस क़ब्र के पुनर्निर्माण और काम को पूरा करने में आठ साल लग गए, इसके बाद 1377 हि 1998 ई. में उस क़ब्र का टाइल्स और पत्थरों से पुनर्निर्माण किया गया और इसकी आंतरिक दीवारों को हरे रंग के संगमरमर से सजाया गया।
ज़रीह
965 हिजरी में शाह तहमासब सफ़वी ने क़ब्र के चारों ओर एक ज़रीह बनाई जो सात रंग के टाइल्स से सजी थी और इसमें क़तबे लगे हुए थे उसके आसपास में जाली लगाई गई था जिनके सूराखों से क़ब्र दिखाई देती थी और ज़ायरीन अपनी नज़्र और नियाज़ को उस जाली से ज़रीह के अंदर डालते थे।
1230 हिजरी में फतेह अली शाह ने उस ज़रीह पर चांदी लगा दी लेकिन समय बीतने के साथ यह ज़रीह पुरानी हो गई और 1280 हिजरी में ज़रीह की पूर्व चांदी और ख़ज़ाने में मौजूद चांदी से एक नई ज़रीह बनाई गई और उसे पुरानी ज़रीह की जगह पर स्थापित किया गया।
इस ज़रीह को कई बार पुनर्निर्माण और मरम्मत की गई और कई साल तक मरकद पर बाक़ी रही, यहां तक कि 1368 हिजरी सौर उस ज़माने के मुतवल्ली के आदेश से ज़रीह के आकार को बदल दिया गया और उसकी जगह पर एक अति सुंदर और नक़्शो निगार वाली ज़रीह को स्थापित किया गया जो अब तक बाकी है, और 1380 हिजरी, में उसकी मरम्मत की गई।

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

दुआए तवस्सुल
क्यों मारी गयी हज़रत अली पर तलवार
वहाबियों और सुन्नियों में ...
नमाज.की अज़मत
नक़ली खलीफा 3
दुआ ऐ सहर
क़ुरआन
आदर्श जीवन शैली-६
चेहलुम के दिन की अहमियत और आमाल
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम

 
user comment