Hindi
Tuesday 26th of November 2024
0
نفر 0

झूठ क्यों नहीं बोलना चाहिए

झूठ क्यों नहीं बोलना चाहिए

आम तौर पर झूठ किसी एक रूहानी कमज़ोरी की वजह से पैदा होता है यानी कभी ऐसा भी होता है कि इंसान ग़ुरबत और लाचारी से घबरा कर, दूसरे लोगों के उसको अकेले छोड़ देने की बुनियाद पर या फिर अपने ओहदे और मंसब की हिफ़ाज़त के लिए झूठ बोल देते हैं।
कभी माल व दौलत, मुक़ाम और दूसरी ख़्वाहिशों से उसकी सख़्त मुसीबत उसको झूठ बोलने पर मजबूर कर देती है। इन जगहों पर झूठ का सहारा लेकर वह अपनी ख़्वाहिशों को पूरा करना चाहता है।

ऐसा भी होता है कि इंसान की किसी शख़्स या ग्रुप से मुहब्बत या नफ़रत भी उसे मजबूर करती है कि इंसान हक़ीक़तों के ख़िलाफ़ अपने सामने वाले शख़्स या ग्रुप की हिमायत या मुख़ालिफ़त में कोई बात कहे। अगर सामने वाला शख़्स या ग्रुप उसका मेहबूब होत है तो यह झूठा शख़्स उसको फ़ायदा और अगर दुश्मन होता है तो ज़ाहिर है कि उसको नुक़सान पहुंचाना चाहता है।

इंसान कभी इस लिए भी झूठ बोलता है कि दूसरों के सामने ख़ुद को बड़ा बनाकर पेश कर सके और उनके सामने इल्मी, समाजी, सियासी, कारोबारी वग़ैरा किसी भी नज़र से अपनी धाक बिठा सके।

वैसे हक़ीक़त यह है कि यह सारी बुराईयाँ जो झूठ की वजह से पैदा होती हैं, इंसान की रूहानी कमज़ोरी, शख़्सियत की कमज़ोरी और ईमान की कमज़ोरी की वजह से ही पैदा होती हैं। जिन लोगों को अपने आप पर भरोसा नहीं होता है या रूहानी एतेबार से कमज़ोर होते हैं ऐसे लोग अपने मक़सद को पाने और होने वाले नुक़सान से बचने के लिए हर तरह का झूठ और बहाने बनाने को अपना पहला और आख़िरी हथियार मानते हैं जबकि इन के उलट वह लोग जिनको अपनी शख़्सियत पर यक़ीन और भरोसा होता है वह ख़ुद अपनी ज़ात के सहारे आगे बढ़ते हैं और किसी ग़लत काम या तरीक़े से फ़ाएदा नहीं उठाते।

इसी तरह वह लोग जिनको ख़ुदा की अज़ीम क़ुदरत पर भरोसा होता है, वह भी हर तरह की कामयाबी, जीत और बुलन्दी को अपने इरादे में तलाश करते हैं और ख़ुदा की क़ुदरत को हर तरह की क़ुदरत से ऊँचा और अज़ीम मानते हैं। इस लिए ऐसे लोग किसी भी हालत में झूठ या ग़लतबयानी का सहारा नहीं लेते कि अपने मक़सद तक पहुंच सकें या होने वाले नुक़सानों से अपने आप को बचा सकें। हाँ! कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कुछ लोग झूठ के नुक़सानों और सच की अहमियत से अंजान होने या माहौल की ख़राबी से इस बहुत ही ख़तरनाक बुराई का शिकार हो जाते हैं। एक दूसरी अहम वजह यह भी होती है कि इंसान काम्पलेक्स की वजह से भी झूठ को अपनी आदच बना लेता है। जो लोग काम्पलेक्स का शिकार होते हैं उनकी कोशिश होती है कि किसी भी झूठ या ग़लत बयानी के ज़रिए काम्पलेक्स को ख़्तम कर सकें।

झूठ का इलाज

इस बुराई के पैदा होने और जड़ पकड़ लेने की वजह को बयान करने के बाद इस रूहानी बीमारी का इलाज आसान नज़र आता है। इस अख़्लाक़ी बीमारी से बचने के लिए नीचे दी हुई बातों पर अमल करना ज़रूरी हैः-

1-    सबसे पहले ज़रूरी है कि इस ख़तरनाक बीमारी में फंसे लोगों को इसके ख़तरनाक रूहानी, दुनियावी और इंडिविजुअल व समाजी नुक़सानों और असर के बारे में बताया जाए। इसके बाद क़ुरआनी आयतों और रिवायतों से साबित किया जाए कि झूठ बोलने वाले शख़्स के मन-घड़त फ़ाएदे उसके झूठ से पैदा होने वाले इंडिविजुअल समाजी और अख़लाक़ी नुक़सानों और गुमराही का बिल्कुल मुक़ाबला नहीं कर सकते।

इस तरह इस बीमारी में फंसे लोगों को यह भी याद दिलाया जाए कि अगर कुछ जगहों पर कुछ फ़ाएदे भी हों तो यह फ़ाएदे वक़्ती और गुज़र जाने वाले हैं क्यों कि तमाम हालात में किसी इंसानी समाज की सबसे बड़ी ताक़त एक दूसरे पर भरोसा और इत्मिनान होती है। अगर समाज में झूठ रिवाज पा जाए तो समाज में पाया जाने वाला आपसी भरोसा भी ख़त्म हो जाता है।

यह बात भी ध्यान देने वाली है कि हो सकता है कि कुछ लोग यह सोचें कि अगर ऐसे झूठ बोले जाएं जो कभी खुल ही नहीं सकते हों तो क्या नुक़सान है। ज़ाहिर है कि इस सूरत में समाज का आपसी भरोसा भी बाक़ी रहेगा।

हक़ीक़त यह है कि यह ख़याल एक बहुत बड़ी ग़लती है क्यों कि तजुर्बे से साबित हो चुका है कि अक्सर झूठ छुप नहीं पाते हैं। इस की वजह यह है कि जब भी समाज में कोई वाक़िआ पेश आता है तो कहीं न कहीं, किसी न किसी तरह से वह वाक़िआ दूसरे लोगों से जुड़ा होता है। अगर कोई शख़्स अपनी ज़बान के ज़रिए ऐसा वाक़िआ या कां अंजाम देना चाहे जो हक़ीक़त में समाज में मौजूद नहीं है तो ऐसा शख़्स ऐसा काम करना चाहता है जो दूसरे सारे वाक़िआत और चीज़ों से नहीं जुड़ा है। और अगर यह शख़्स बहुत ज़्यादा ज़हीन और चालाक होता है तो पहले से ही कुछ दूसरे झूठ और ग़लत बातें गढ़ लेता है ताकि दूसरे वाक़िआत और कामों को अपने इस नए वाक़िए या काम से जोड़ सके। लेकिन हक़ीक़त यह है कि वह किसी भी तरह पहले ही दूसरे वाक़िआत के बारे में सभी मुमकिना रवाबित की पेशीनगोई नहीं कर सकता। यही वजह है कि कुछ सवालों के जवाब देने के बाद हार जाता है और नज़रें झुका लेता है।

जैसे हज़रत अली (अ.) के ज़माने में एक शख़्स बहुत बड़ी दौलत के साथ तिजारत पर गया था। साथ में उसके कुछ दोस्त भी थे। वापस आने पर उसके दोस्तों ने उसके इंतेक़ाल की ख़बर दी। ध्यान देने की बात यह है कि यही लोग हक़ीक़त में उस शख़्स के क़ातिल थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उस शख़्स की बीमारी, इंतेक़ाल, कफ़न, व दफ़न वग़ैरा के बारे में सवाल करना शरु किए। बहुत जल्द ही वह लोग चुप हो गए और अपना जुर्म क़बूल कर लिया। इसकी वजह यह है कि उन लोगों ने आपस में सिर्फ़ यह फ़ैसला कर लिया था कि वापसी पर कह देंगे कि वह मरीज़ हो गया और मर गया। लेकिन कहाँ, कैसे, किस वक़्त, किसने ग़ुस्ल दिया, किसने कफ़्न दिया, कहाँ दफ़्न किया गया वग़ैरा जैसे सवालों पर कोई ग़ैर नहीं किया और न ही इस बारे में किसी आपसी फ़ैसले पर पहुंच सके। हक़ीक़त यह है कि वह इस हद तक छोटे-छोटे सवालों पर कोई एक फ़ैसला कर भी नहीं सकते थे। इस लिए हो सकता है कि ज़हीन से ज़हीन और चालाक से चालाक शख़्स का झूठ भी थोड़ी सी तहक़ीक़ व सवालों के बाद खुल जाए और उसे झूठ को क़बूल करना पड़ जाए।

ख़ासकर यह कि अपने झूठ के बारे में इंसान जो ताने-बाने बुनता है वह उसकी मेमोरी में बाक़ी नहीं रह पाते क्यों कि उन की कोई हक़ीक़त नहीं होती। इस लिए अगर किसी झूठे शख़्स से कुछ वक़्त के बाद सवाल किए जाएं तो उसके जवाब में कई ग़लत बयानियाँ पैदा हो जाती हैं और वह परेशान हो जाता है उसके पिछले और मौजूदा जवाबों में फ़र्क़ पाया जाता है और यह फ़र्क़ उसके झूठ को ज़ाहिर करने की एक वजह बन जाता है इसी लिए कहा जाता है कि झूठे शख़्स का हाफ़्ज़ा कमज़ोर होता है।

2-    एक दूसरा अहम इलाज यह है कि मरीज़ को यह एहसास दिलाया जाए कि वह एक शख़्सियत का मालिक है, उसकी अपनी भी एक शख़्सियत है, उसका दुनिया में एक विक़ार है। क्यों कि बयान किया जा चुका है कि झूठ की पैदाइश की एक एहम वजह काम्पलेक्स का होना है और हक़ीक़त में इंसान झूठ का सहारा लेकर अपने इस एहसास से छुटकारा हासिल करना चाहता है। अगर झूठे जैसे ख़तरनाक मरीज़ों के अन्दर यह अहसास पैदा हो जाए कि वह भी बहुत सी सलाहियतों के मालिक हैं साथ ही यह कि अपनी उन सलाहियतों के ज़रिए खोई हुई अपनी शख़्सियत, अपना किरदार, अपना विक़ार वापस ला सकते हैं तो वह ख़ुद ही झूठ की बैसाख़ी का सहारा लेकर आगे बढ़ने की अपनी आदत को ख़त्म कर देंगे। इसके अलावा ऐसे लोगों को यह भी समझाया जाए और यक़ीन दिलाया जाए कि एक ऐसे सच्चे इंसान की समाजी पर्सनालिटी दूसरी तमाम वेल्यूज़ से कहीं ज़्यादा है जिसने अपनी सच्चाई के ज़रिए लोगों का भरोसा पाया है। सच्चे इंसानों के पास पाए जाने वाली "सोशल पर्सनालिटी" जैसी दौलत का किसी दूसरी दौलत से मुक़ाबला ही नहीं किया जा सकता और अपनी इस दौलत के ज़रिए यह अपने कामों को भी अच्छी तरह पूरा कर सकते हैं।

ऐसा सच्चा इंसान न सिर्फ़ यह कि लोगों की नज़र में एक जगह बना लेता है बल्कि ख़ुदा की बारगाह में भी शहीदों व नबियों का दर्जा मिलता है जिकसी गवाह यह आयत हैः-

"जो भी अल्लाह और उसके रसूल (स.) की इताअत करेगा वह उन लोगों के साथ रहेगा जिन पर ख़ुदा ने नेमतें नाज़िल की हैं। अम्बिया, सिद्दीक़ीन, शोहदा और सालेहीन और यही बेहतरीन रुफ़क़ा है।"

मशहूर अरबी स्कॉलर राग़िब ने अपनी किताब "मुफ़रदात" में सिद्दीक़ के कई मायने बयान किये हैं जो सब के सब इसी हक़ीक़त की तरफ़ इशारा करते हैं.-

A- वह शख़्स जो बहुत ज़्यादा सच्चा है।

B- ऐसा शख़्स जो बिल्कुल झूठ नहीं बोलता।

C- ऐसा शख़्स जो अपनी बातचीत और अक़ीदों में सच्चा है और जिसका काम उसकी सच्चाई की गवाही देता है।

3-    कोशिश की जानी चाहिए कि इस बीमारी के शिकार लोगों के ईमान को मज़बूत किया जाए साथ ही उन्हें इस बात का यक़ीन भी दिलाया जाए कि ख़ुदा की क़ुदरत दूसरी तमाम क़ुदरतों और ताक़तों से बढ़ कर है। ख़ुदा की क़ुदरत इतनी फैली हुई है कि वह हर तरह की मुश्किलों को हल कर सकता है कि इन्हीं मुश्किलों का हल तलाश करने के लिए कमज़ोर ईमान वाले लोग झूठ का सहारा लेते हैं और सच्चे इंसान मुश्किलों और मुसीबतों का सामना करते वक़्त ख़ुदा पर भरोसा करते हैं जबकि झूठे लोग ऐसे मौक़ों पर सिर्फ़ व सिर्फ़ तन्हा होते हैं यानी वह होते हैं और उनके झूठ।

4-    झूठ की वजहों जैसे लालच, डर, ख़ुदपरस्ती और बहुत ज़्यादा मुहब्बत व नफ़रत वग़ैरा को दूर किया जाना चाहिए ताकि यह ख़तरनाक बुराई इंसान में पैदा न हो सके।

5-    ऐसे लोगों के साथ उठने बैठने से परहेज़ किया जाए इन लोगों को यक़ीनन दूर किया जाना चाहिए जिन के अन्दर यह बुराई पाई जाती है। यह मसला इतना अहम है कि इस्लाम के तरबियती सिस्टम में इस पर बहुत ताकीद की गई है। इस बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं किः- "झूठ बोलना अच्छी बात नहीं है चाहे संजीदगी में या ग़ैर संजीदगी में और न ही तुम में से कोई अपने बच्चे से वादा करे और उसे पूरा न करे।"

ज़ाहिर है कि अगर माँ-बाप सच बोलने के आदी हों, यहाँ तक कि उन छोटे-छोटे वादों में जो वह अपने बच्चों से करते हैं तो कभी भी उनके बच्चे झूठ बोलने के आदी नहीं होंगे।

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

सूर –ए- माएदा की तफसीर 2
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत
कुमैल के लिए ज़िक्र की हक़ीक़त 2
सफ़र के महीने की बीस तारीख़
हदीसे किसा
यज़ीद के दरबार में हज़रत ज़ैनब का ...
इमाम हसन (अ) के दान देने और क्षमा ...
बदकारी
हज़रत यूसुफ और जुलैख़ा के इश्क़ ...
15 शाबान

 
user comment