Hindi
Thursday 26th of December 2024
0
نفر 0

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का जन्मदिवस।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का जन्मदिवस।

अहलेबैत न्यूज़ एजेंसी अबना: इमाम अली इब्ने हुसैन अलैहिमुस्सलाम, ज़ैनुल आबेदीन और सज्जाद के नाम से मशहूर हैं और मशहूर रेवायत के अनुसार आपका जन्म वर्ष 38 हिजरी में शाबान के महीने में मदीना शहर में हुआ। कर्बला की घटना में आप 22 या 23 साल के जवान थे और मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार आप उम्र के लिहाज से अपने भाई अली अकबर अलैहिस्सलाम से छोटे थे।
इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की ज़िंदगी की सामाजिक, शैक्षिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संदर्भों से समीक्षा की जा सकती है। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की पाक ज़िंदगी का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि आप कर्बला की घटना में अपने पिता शहीदों के सरदार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ थे और शहीदों की शहादत के बाद अपनी फुफी हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के साथ कर्बला की क्रांति और आशूरा के आंदोलन का संदेश लेकर बनी उमय्या के हाथों बंदी बनाये जाने के दौरान आशूरा के संदेश को प्रभावी तरीके से दुनिया वालों तक और रहती दुनिया तक के आज़ाद इंसानों तक पहुंचा दिया।
आशूरा का आंदोलन एक अमर इस्लामी आंदोलन है जो मुहर्रम सन् 61 हिजरी में अंजाम पाया। यह आंदोलन दो चरणों पर आधारित था। पहला चरण आंदोलन की शुरूआत से जेहाद, त्याग, शहादत और इस्लाम की रक्षा के लिए खून व जान की कुर्बानी देने का चरण था जिसमें न्याय की स्थापना की दावत भी दी गई और मोहम्मद स.अ. के दीन के पुनर्जीवन और नबवी व अल्वी चरित्र को जीवित करने के लिए बलिदान भी दिया गया। पहला चरण वर्ष 60 हिजरी में रजब के महीने से शुरू हुआ और 10 मुहर्रम सन् 61 हिजरी में ख़त्म हुआ। जबकि दूसरा चरण इस आंदोलन व क्रांति को स्थिरता देने, आंदोलन का संदेश पहुंचाने और ज्ञानात्मक व सांस्कृतिक संघर्ष तथा इस आंदोलन के पवित्र उद्देश्य की व्याख्या का चरण था। पहले चरण का नेतृत्व शहीदों के सरदार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने की थी तो दूसरे चरण का नेतृत्व इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के कांधों पर थी।
इमामत और आशूरा के आंदोलन का नेतृत्व इमाम अ. को ऐसे हाल में सौंपा गया था कि अली अलैहिस्सलाम के परिवार के महत्वपूर्ण सदस्य आपके साथ बंदी बनकर अमवियों की राजधानी दमिश्क की ओर स्थानांतरित किए जा रहे थे, अली अ. का परिवार हर प्रकार की आरोपों और तोहमतों के साथ साथ फिज़ीकी और शारीरिक रूप से भी बनी उमय्या के अत्याचार का निशाना बना हुआ था और उनमें से बहुत से महत्वपूर्ण लोग इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथियों के साथ कर्बला में शहादत पा चुके थे और बनी उमय्या के मक्कार शासक अवसर का फायदा उठाकर हर प्रकार का आरोप लगाने में अपने आपको पूरी तरह से स्वतंत्र समझ रहे थे क्योंकि मुसलमान जेहाद की भावना खो चुके थे और हर कोई अपनी सुरक्षा को ज़रूरी समझता था।
उस युग में धार्मिक मूल्य तब्दील और विकृत किये जा रहे थे, लोगों में धार्मिक कामों के लिये जोश ख़त्म हो चुका था, धार्मिक आदेश अमवी नाकारा शासकों के हाथों का खिलौना बन चुके थे, आरोपों और तोहमों को प्रचलित किया जा रहा था, अमवियों के आतंकवाद और हिंसा, आतंक भय फैलाने के रणनीति के तहत मुसलमानों में शहादत और बहादुरी की भावनाएं जवाब दे चुकी थीं। अगर एक तरफ धार्मिक आदेशों व शिक्षाओं से मुंह फेरने पर कोई रोक-टोक नहीं थी तो दूसरी ओर से समय की हुकूमत की आलोचना के इल्ज़ाम में कड़ी से कड़ी सज़ाएं दी जाती थीं, लोगों को अमानवीय अत्याचार का निशाना बनाय जाता था और उनका घर बार लूट लिया जाता था और उनकी संपत्ति अमवी शासकों के पक्ष में जब्त किर ली जाती थी और उन्हें इस्लामी समाज की सभी सुविधाओं से वंचित कर दिया जाता था और इस संबंध में बनी हाशिम को विशेष रूप से निशाना बनाया जाता था।
उधर ऑले उमय्या की नीति यह थी कि वह लोगों को रसूले इस्लाम स.अ. के परिवार से संपर्क बनाने से रोकते थे और उन्हें रसूल स.अ. के अहलेबैत अ. के खिलाफ कार्रवाई करने पर आमादा करते थे वह लोगों को अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की बातें सुनने तक से रोक देते थे जैसा कि यज़ीद का दादा और मुआविया का बाप सख़्र इब्ने हर्ब (अबू सुफ़यान) अबूजहल और अबूलहब आदि के साथ मिलकर बेसत के बाद के दिनों में लोगों को पैगम्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम की बातें सुनने से रोकते थे और उनसे कहते थे कि आपकी बातों में जादू है, सुनोगे तो जादू का शिकार हो जाओगे।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने ऐसे हालात में इमामत की ज़िम्मेदाकी संभाली जबकि केवल तीन लोग आपके वास्तविक पैरोकार थे और आपने ऐसे ही हाल में ज्ञान व सांस्कृतिक व शैक्षणिक संघर्ष और इल्मी और सांस्कृतिक हस्तियों का प्रशिक्षण शुरू किया और एक गहन और व्यापक आंदोलन के माध्यम इमामत की भूमिका अदा करना शुरू की और इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम का यही शैक्षिक और प्रशैक्षिणिक आंदोलन, इमाम मुहम्मद बाक़िर और इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिमुस्सलाम के महान इल्मी क्रांति का आधार साबित हुई। इसी आधार पर कुछ लेखकों ने इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम को नए सिरे से इस्लाम को गति देने और सक्रिय करने वाले का नाम दिया है।
करबला की घटना के गवाह
इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम कर्बला में हुसैनी आंदोलन में शरीक थे इसमें किसी को कोई मतभेद नहीं है लेकिन हुसैनी आंदोलन की शुरुआत के दिनों से इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की सामाजिक और राजनीतिक भूमिका के बारे में इतिहास हमें कुछ अधिक जानकारी देने में असमर्थ नजर आता है । यानी हमारे पास रजब के महीने से जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम मदीना से मक्का की ओर रवाना हुए, मक्का में रूके और फिर कूफ़ा रवाना हुए और 10 मुहर्रम सन् 61 हिजरी को शहीद हुए लेकिन इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की भूमिका के बारे में इतिहास कुछ अधिक सूचना हम तक पहुंचाने में असमर्थ है और इतिहास में हमें इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम आशूर की रात दिखाई देते हैं और आशूरा की रात इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की पहली राजनीतिक और सामाजिक भूमिका दर्ज हुई है।
इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं: आशूर की रात मेरे बाबा (इमाम हुसैन इब्ने अली अलैहिस्सलाम) ने अपने साथियों को बुलवाया। मैं बीमारी की हालत में अपने बाबा की सेवा में उपस्थित हुआ ताकि आपकी बातें सुनूं। मेरे बाबा ने कहा: मैं अल्लाह तआला की तारीफ़ करता हूँ और हर खुशी और दुख में उसका शुक्र अदा करता हूँ ... मैंने अपने साथियों से ज़्यादा वफ़ादार और बेहतर साथी नहीं देखे और अपने परिवार से ज़्यादा आज्ञाकारी, आज्ञाकारी परिवार नहीं देखा।
मैं जानता हूँ कि कल (आशूरा के दिन) हमें इन सज़ीदियों के साथ जंग करनी होगी। मैं तुम सभी को इजाज़त देता हूँ और अपनी बैअत तुम पर से उठा लेता हूँ ताकि तुम दूरी तय करने और ख़तरे से दूर रहने के लिए रात के अंधेरे का फायदा उठा लो और तुम में से हर आदमी मेरे परिवार के एक व्यक्ति का हाथ पकड़ ले और सब विभिन्न शहरों में फैल जाओ ताकि अल्लाह तुम पर अपनी रहमत नाज़िल करे। क्योंकि यह लोग सिर्फ मुझे मारना चाहते हैं और अगर मुझे पा लेंगे तो तुमसे कोई सरोकार नहीं रखेंगे।
उस रात इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम बीमार थे और यह तथ्य भी देख रहे थे तो आपके लिए वह रात बहुत अजीब रात थी। आपने उस रात इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की आत्मा की गरिमा और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथियों की बहादुरी और वफादारी के उच्चतम स्थान को देखा, जब आप अपने आपको बाद के दिनों के लिए तैयार कर रहे थे।
हज़रत अली इब्ने हुसैन . कहते हैं: आशूर की रात में मैं बैठा था और मेरी फुफी ज़ैनब मेरी तीमारदारी कर रही थीं। इसी बीच में मेरे बाबा अस्हाब से अलग होकर अपने खैमे में आए। आपके खौमे में अबुज़र के गुलाम “जौन” भी थे जो आपकी तलवार को चमका रहे थे और उसकी धार सही कर रहे थे जबकि मेरे बाबा यह पंक्तियां पढ़ रहे थे:
يا دهر افٍّ لک من خليل
کَمْ لَکَ في الاشراق و الأَصيل
من طالبٍ و صاحبٍ قتيل
و الدّهر لايقَنُع بالبديل
و انّما الأمر الي الجليل
و کلُّ حيٍّ سالکُ سبيلا
ऐ दुनिया और ऐ जमाने! उफ़ है तेरी दोस्ती पर कि तू अपने बहुत से दोस्तों को सुबह और शाम मौत के सुपुर्द करती है और मारते हुए किसी का बदला भी स्वीकार नहीं करती। और निसंदेह सभी कुछ ख़ुदा की क़ुदरत में हैं और संदेह नहीं है कि हर ज़िंदा और आत्मा रखने वाली हर चीज़ को इस दुनिया से जाना है। (बिहारूल अनवार भाग 45 पेज 2)
लगभग सभी इतिहासकार सहमत हैं कि इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम कर्बला में बीमार थे और यह बीमारी उम्मत के लिए अल्लाह की एक मसलहत थी और उद्देश्य यह था कि इमाम ज़मीन पर बाक़ी रहे और उसे कोई नुक़सान न पहुचे और अल्लाह की विलायत और पैगम्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम की विलायत और उनके उत्तराधिकारियों का सिलसिला न टूटने पाय। इसलिए इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम इसी बीमारी के कारण जंग के मैदान में उपस्थित नहीं हुए। करबला में मर्दों में इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम और इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ही थे जो जीवित रहे और उम्मत की लीडरशिप का परचम संभाले रहे। इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम उस समय 4 साल या उससे भी कम उम्र के थे।

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

बहरैन नरेश के आश्वासनों पर जनता ...
हजरत अली (अ.स) का इन्साफ और उनके ...
जन्नतुल बकी मे दफ्न शख्सियात
इस्लामी जीवन शैली में ख़ुशी का ...
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की ...
पैगम्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद ...
हजः संकल्प करना
सबसे बेहतरीन मोमिन भाई कौन हैं?
ग़ीबत
जनाब अब्बास अलैहिस्सलाम का ...

 
user comment