Hindi
Thursday 26th of December 2024
0
نفر 0

हज़रते ज़हरा स0 का अक़्द और उसके इम्तेयाज़ात

तमाम हम्द व सिपास है उस ज़ात के लिए कि जिसने तमाम मख़लूक़ात को इंसान के लिए ख़ल्क़ किया और इंसान को ख़ुद अपने लिए ख़ल्क़ करके उसकी ग़रज़े ख़िलक़त को भी वाज़ेह कर दिया। मैंने जिन्नातों और इंसानों को पैदा नहीं किया मगर ये कि अपनी इबादत के लिए , इबादत का दायरा इंतेहाई वसी है, इसी लिए ओलमा ने इबादत को दो हिस्सों में तक़सीम किया हैः 1. इबादते आम  2. इबादते ख़ास

इबादते आम यानी हर वो काम जो रेज़ायते परवरदिगार से तअल्लुक़ रखता हो वो इबादत क़रार पाएगा चाहे वो सोना, जागना, उठना बैठना, सदक़ा देना या और दूसरे मुसतहब्बात, इबादते ख़ास मसलन नमाज़ रोज़े या दूसरे वाजेबात।

इंसान अपनी ज़िन्दगी में बहुत सी इबादाते मुसतहेब्बा अंजाम देता है उन्हीं में से एक अक़्दे इज़देवाज भी है कि जिसका सिलसिला अबूल बशर हज़रते आदम अ0 से शुरु हो कर ता रहती दुनिया क़ाएम व दाएम रहेगा।

अक़्दे इज़देवाज को ख़ुदाए मोताआल ने किस अंदाज़ से अपनी बंदगी का ज़रिआ क़रार दिया है उस का अंदाज़ा इस हदीस से लगाया जा सकता हैः

इस्लाम में ख़ुदा के नज़दीक कोई ऐसी बुनियाद नहीं डाली गयी जो इज़देवाज से ज़्यादा महबूब हो।

जैसा  कि पहले ज़िक्र किया गया कि ख़ुदा की इबादत में से एक इबादत का ज़रिआ अक़्दे इज़देवाज भी है और ये भी वाज़ेह है कि इबादत के मराहिल बहुत सख़्त हैं लेहाज़ा इन मराहिल को किस आसानी से तय किया जाए हमें मासूमीन अ0 की इबादत पर निगाह करनी पड़ेगी।

चूँकि हमारा मौज़ू इमतेयाज़ाते अक़्दे ज़हरा स0 है लेहाज़ा इस जगह पर आप के अक़्द के चंद इम्तेयाज़ात बतौर नमूना पेश किये जाएँगे ताकि समाज आप की सीरत पर अमल करके इस अज़ीम और मुबारक इबादत से सुबुकदोश हो सके।

जनाबे ज़हरा स0 की शादी के हर जुज़ को रसूले अकरम ने इस अंदाज़ से अंजाम दिया है कि ज़माना चाहे भी जो हो हर एक उसे बख़ूबी बा आसानी अंजाम दे सकता है उस पाकीज़ा शादी के इमतेयाज़ात ये हैं


औरत के हुक़ूक़ का तहफ़्फ़ुज़

आज आलमे इस्लाम पर तोहमतों की यलग़ार कुछ कम नहीं है और ये कहा जाता है कि इस्लाम में औरत का कोई पास व लिहाज़ नहीं है लेकिन काश दुनिया हज़रत ज़हरा स0 के तरीक़ए अक़्द पर निगाह करे कि जब हज़रत अली अ0 ने जनाबे ज़हरा स0 से शादी के लिए हज़रत रसूले ख़ुदा स0 के घर तशरीफ़ ले गये और अपनी ख़वाहिश का इज़ाहार किया तो पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़ौरन उसका जवाब नहीं दिया कि मुझे ये रिश्ता मंज़ूर है बल्कि उस हुजरे में गये जहाँ शहज़ादिए कौनैन तशरीफ़ फ़रमा थी और आँहज़रत ने तलबे रेज़ायत के लिए हज़रत अली अ0 की ख़वाहिश बयान की।

इस तरज़े अमल से पैग़म्बर ने रहती दुनिया तक पैग़ाम पहुँचा दिया कि इस्लाम जब्र व तशद्दुद का काएल नहीं है, बग़ैर औरत की मरज़ी के शादी करना ज़ुल्म है।

मेहेर
अगर आज हम अपने मोआशेरे का जाएज़ा लें तो हमें मिलेगा कि लड़की वाले महेर की रक़म को इस दर्जा मोअय्यन करते हैं कि लड़के वालों का इस रक़म का अदा करना दुशवार और मुश्किल हो जाता है, और ज़्यादातर देखने में ये आया है कि लोग लम्बी लम्बी महेर पर राज़ी होने के बाद उसे अदा नहीं करते बल्कि उसे माफ़ कराने की फ़िक्र में रहते हैं।

पैग़म्बरे अकरम स0 ने इस दुशवारी का भी ख़ातमा इस तरह कर दिया कि हज़रत अली अ0 को हुक्म दिया कि तुम मर्दे शुजा हो तुम्हे ज़िराह की ज़रूरत नहीं है लेहाज़ा उसे फ़रोख़्त करके फ़ातिमा का मेहेर अदा करो, नफ़्से पैग़म्बर ने अपनी ज़िरा को फ़रोख़्त करके मेहेर की रक़म हुज़ूर के हवाले कर दी, और उस रक़म के तीन हिस्से किये गयेः

एक हिस्सा शहज़ादी के घरेलू ज़रूरियात के लिए।

दूसरा हिस्सा शादी के इख़राजात के लिए।

और तीसरा जनाबे उम्मे सलमा के हवाले किया और कहा जब शादी हो जाए तो ये रक़म हज़रत अली अ0 के हवाले कर दी जाए ताकि अली उस रक़म के ज़रिए अपने वलीमे का इंतेज़ाम करें।

काएनात के अज़ीम शख़्स की बेटी की शादी जब इस सादगी से हो तो फिर हमारे लिए सोचने की बात ये है कि हमें किस तरह शादी के उमूर को अंजाम देना चाहिए, लेकिन अफ़सोस के हमारे समाज में सीरते जनाबे फ़ातिमा ज़हरा स0 को नज़र अंदाज़ करके मेहेर के लिए लाखों और करोड़ों का सौदा करके सिर्फ़ हज़रते ज़हरा स0 की ही तकलीफ़ का सबब नहीं बनते बल्कि पैग़म्बरे अकरम स0 को भी अपने इस अमल से अज़ीयत देते हैं।


एक मिसाली शादी

जब अक़्द के सारे मुक़द्देमात अपनी तकमील तक पहुँच गये तो वो वक़्त भी आया कि कौनैन की शहज़ादी लिबासे इस्मत व तहारत में मलबूस हो कर मुख़तसर से जहेज़ के साथ क़सीमे नार व जन्नत के घर तशरीफ़ लायीं, रुख़सती भी बहुस्ने ख़ूबी यूँ अंजाम पायी कि ना ही लड़की वालों को मुशकेलात का सामना करना पड़ा और ना ही लड़के वालों को कोई परेशानी हुई, आँहज़रत ने शादी के फ़ुज़ूल इख़राजात पर तवज्जो देने के बजाए ज़ौजा और शौहर की ज़िंदगी के बारे में ज़्यादा फ़िक्र की, लेकिन आज मुसलमान, रसूले इस्लाम की इन सुन्नतों को बालाए ताक़ रख कर शदी में फ़ुज़ूल की सजावट, मौरेज हाल और बेबुनियाद रूसूमात पर अपना पैसा ख़र्च करके बड़ा फ़ख्र महसूस करते हैं।

हमने अपनी इर मुख्तसर तहरीर में जनाबे फ़ातिमा ज़हरा स0 के अक़्द के इम्तेयाज़ात के चंद नमूने पेश किए उनके अंदर ऐसे शवाहिद मौजूद हैं कि जिन्की रौशनी में मोआशेरा और समाज शादी बियाह के मामेलात को बा हुसने ख़ूबी और सादगी से निपटा सकता है अगरचे ख़ुद बीबीए दो आलम की शादी के इम्तेयाज़ात का मौज़ू अपने आप में एक तहक़ीक़ी काविश का तालिब है जो फ़िलहाल हमारे पेशे नज़र नहीं है और ना ही ज़ेरे नज़र शुमारा इस का मोतहम्मिल हो सकता है लेहाज़ा इन चंद नमूनों के पेश करने पर ही इक्तेफ़ा करते हैं, उम्मीद है कि बीबीए दो आलम की शादी के इन चंद इम्तेयाज़ात की रौशनी में हमारे समाज में होने वाली शादियाँ भी अपने आप में मुम्ताज़ क़रार पाएँगी।

आख़िर में रब्बे करीम से दुआ है कि हमारे समाज को तमाम उमूर में बिलख़ुसूस शादी के मौक़े पर सीरते हज़रते ज़हरा स0 पर अमल करने की तौफ़ीक़ इनायत फ़रमाये।

आमीन..........

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

बहरैन नरेश के आश्वासनों पर जनता ...
हजरत अली (अ.स) का इन्साफ और उनके ...
जन्नतुल बकी मे दफ्न शख्सियात
इस्लामी जीवन शैली में ख़ुशी का ...
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की ...
पैगम्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद ...
हजः संकल्प करना
सबसे बेहतरीन मोमिन भाई कौन हैं?
ग़ीबत
जनाब अब्बास अलैहिस्सलाम का ...

 
user comment