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Friday 27th of December 2024
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माहे रजब की दुआऐं

माहे रजब की दुआऐं

माहे रजब की दुआऐं
रजब के पहले दिन और रात की मख्सूस दुआ

1) हज़ूरे अकरम (स:अ:व:व) की सीरत थी की जब रजब का चाँद देखते थे तो यह दुआ पढ़ते थे:

اَللّٰھُمَّ بَارِکْ لَنٰا فِی رَجَبٍ وَ شَعْبانَ وَ بَلَّغْنَا شَھْرَ رَمَضانَ وَ أَعِنَّا عَلَیٰ الصَّیامِ وَ الْقِیاِم وَ حِفْظِ

(हिन्दी में) अल्लाहुम्मा बारक लना फ़ी रजबिन व श'अबान व बल'लग़ना शहरा रमज़ान व आ-इन्ना अलस-स्यामे वल क़याम व हिफ्ज़े

(तरजुमा)ऐ माबूद! रजब और शाबान में हम पर बरकत नाज़िल फ़रमा और हमें रमज़ान के महीने में दाख़िल फ़रमा और हमारी मदद कर, दिन के रोज़े, रात की क़याम

اللِّسانِ وَ غَضِّ الْبَصَرِ وَ لَاٰ تَجْعَلْ حَظَّنا مِنْہُ الْجُوعَ وَ الْعَطَشَ

(हिन्दी में)अल-लेसान व ग़ज़'ज़ल बसरा वल-तज'अल हज़'ज़ना मिन्हो अल-जू-ओ वल अतश

(तरजुमा)ज़बान क़ो रोकने और निगाहें नीची रखने में और ईस महीने में हमारा हिस्सा महज़ भूक और प्यास क़रार न दे

बिसमिल्लाहिर रहमानिर रहीम.

اَللّٰھُمَّ أَھِلَّہُ عَلَیْنَا بِالْأَمْنِ وَالْاِیْمَانِ وَالسَّلامَةِ وَالْاِسْلَامِ رَبِّی وَرَبُّکَ اللهُ عَزَّ وَجَلَّ

(हिन्दी में)अल्लाहुम्मा अहल-लहू अलैना बिल अम्ने वल इमाने व़स सलामत वल इस्लामे रब्बी व रब्बोकल' लाहो अज़'ज़ा व जल'ला"

(तरजुमा)ऐ माबूद! दुन्या चाँद हम पर अमन, ईमान, सलामती और इस्लाम के साथ तुलु'अ कर (ऐ चाँद) तेरा और मेरा रब वो अल्लाह है जो इज़्ज़त व जलाल वाला है

अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मदीन व आले मोहम्मद, आमीन

2) रजब की पहली रात में ग़ुस्ल करें, जैसा की कुछ उल्माओं ने फ़रमाया है के रसूल (स:अ:व:व) का फ़रमान है की जो शख्स माहे रजब क़ो पाए और उस के अव्वल, औसत और आख़िर में ग़ुस्ल करे तो वो गुनाहों से ईस तरह पाक हो जाएगा, जैसे आज ही शिकमे मादर से निकला हो!

3) हज़रत ईमाम हुसैन (अ:स) की ज़्यारत करे / पढ़े
4) नमाज़े मगरिब के बाद 2-2 रक्'अत करके 20 रक्'अत नमाज़ पढ़े, जिसके हर रक्'अत में सुराः हम्द के साथ सुराः तौहीद की तिलावत करे तो वो खुद, इसके अहलो अयाल, और इसका माल माल महफूज़ रहेगा! और फिर अज़ाबे क़ब्र से बच जाएगा और पुले सेरात से बर्क रफ्तारी (तेज़ी से) निकल जाएगा

5) नमाज़े अशा के बाद 2 रक्'अत नमाज़ पढ़े जिसके पहली रक्'अत में सुराः हम्द के बाद 1 बार अलम-नशरह और 3 बार सुराः तौहीद और दूसरी रक्'अत में सुराः हम्द, सुराः अलम-नशरह, सुराः तौहीद, सूअरः फ़लक, सुराः नास पढ़े! नमाज़ का सलाम देने के बाद 30 मर्तबा ला इलाहा इलल लाह और 30 मर्तबा दरूद शरीफ़ पढ़े तो वो शख्स गुनाहों से ईस तरह पाक हो जाएगा जैसे आज ही शिकामे मादर से पैदा हुआ हो

6) 30 रक्'अत नमाज़ पढ़े जिसके हर रक्'अत में अल-हम्द के बाद 1 बार सुराः काफेरून और 3 बार सुराः इख्लास पढ़े
7) रजब की पहली रात के बारे में शेख़ में मिसबाहुल मुत्ताजिद में नक़ल किया है (यानी ज़िक्रे शबे अव्वल -रजब) की अबुल-तजरी वहब बिन वहब ने ईमाम जाफ़र अल-सादीक़ (अ:स) से, आप अपने वालिदे माजिद और इन्होंने अपने जददे अमजद अमीरुल मोमिनीन (अ:स) से रिवायत करते हैं की आप (अ:स) फ़रमाया करते थे : मुझे ख़ुशी महसूस होती है की इंसान पुरे साल के दौरान ईन चार रातों में खुद क़ो तमाम कामों से फारिग करके बेदार रहे और ख़ुदा की ईबादत करे, वो चार राते यह हैं : रजब की पहली रात, शबे नीमा शाबान, शबे ईद-उल-फ़ित्र, और शबे ईदे-क़ुर्बान! अबू जाफ़र सानी ईमाम मोहम्मद तक़ी अल-जवाद (अ:स) से रिवायत है की रजब की पहली रात में नमाज़े अशा के बाद ईस दुआ का पढ़ना मुस्तहब है!

اَللّٰھُمَّ إِنِّی أَسْأَلُک بِأَنَّکَ مَلِکٌ وَأَنَّکَ عَلَی کُلِّ شَیْءٍ مُقْتَدِرٌ وَأَنَّکَ مَا تَشاءُ مِنْ أَمْریَکُونُ ٍ

(हिन्दी में)अल्लाहुम्मा इन्नी अस-अलोका बे-इन्नका मालिका व-इन्नका अला कुल्ले शै'ईन मुक़द'दिरो व इन्नका मा तशा-ओ मिन अमरिन यकूनो

(तरजुमा)ऐ! माबूद मै तुझ से माँगता हूँ के तू बादशाह है और बे शक तो हर चीज़ पर ईक़'तदार रखता है, और तू जो कुछ भी चाहता है वो हो जाता है

اَللّٰھُمَّ إِنِّی أَتَوَجَّہُ إِلَیْکَ بِنَبِیِّکَ مُحَمَّدٍ نَبِیِّ الرَّحْمَةِ صَلَّی اللهُ عَلَیْہِ وَآلِہِ یَا مُحَمَّدُ یَا رَسُولَ اللهِ

(हिन्दी में)अल्लाहुम्मा इन्नी अता-वज'जहो इलैका बे-नबि'यका मोहम्मदीन नबिय्या-र रहमते सल'लल लाहो अलैहे व आलेही या मोहम्मादो या रसूल-अल्लाहे

(तरजुमा)ऐ माबूद! मै तेरे हुज़ूर आया हूँ तेरे नबी मोहम्मद के वास्ते जो नबीये रहमत हैं, ख़ुदा की रहमत हो ईनपर और ईन की आल (अ:स) पर या मोहम्मद, ऐ ख़ुदा के रसूल मै आपके

إِنِّی أَتَوَجَّہُ بِکَ إِلَی اللهِ رَبِّکَ وَرَبِّی لِیُنْجِحَ لِی بِکَ طَلِبَتِی اَللّٰھُمَّ بِنَبِیِّکَ مُحَمَّدٍ

(हिन्दी में)इन्नी अता'वज-जहो बिका इलल लाहे रब'बका व रब'बेया ले युन-हीहा ली बेका तले-बती, अल्लाहुम्मा बे नबी'यका मोहम्मदीन

(तरजुमा)वास्ते से ख़ुदा के हुज़ूर आया हूँ जो आपका और मेरा रब है ताकि आपकी ख़ातिर वो मेरी हाजत पूरी फ़रमाये! ऐ माबूद ब-वास्ता अपने नबी मोहम्मद (स:अ:व:व) और इनके अहलेबैत (अ:स)

وَالْاَئِمَّةِ مِنْ أَھْلِ بَیْتِہِ صَلَّی اللهُ عَلَیْہِ وَعَلَیْھِمْ أَ نْجِحْ طَلِبَتِی

(हिन्दी में)वल अ-इम्मते मिन अहलेबैतेही सल-लल लाहो अलैहे व अलैहुम अन-हीहो तले-बती
(तरजुमा)में से अ-ईम्मा (अ:स) के, आँ'हज़रत पर और ईन सब की आल पर ख़ुदा की रहमत हो, मेरी हाजत पूरी फ़रमा दे

इसके बाद अपनी हाजतें तलब करे! अली इब्ने हदीद ने रिवायत की है की हज़रत ईमाम मूसा अल-काज़िम (अ:स) नमाज़े तहज्जुद से फारिग़ होने के बाद सजदे में जाकर यह दुआ पढ़ते थे

لَکَ الْمَحْمَدَةُ إِنْ أَطَعْتُکَ، وَلَکَ الْحُجَّةُ إِنْ عَصَیْتُکَ، لاَ صُنْعَ لِی وَلاَ لِغَیْرِی فِی إِحْسانٍ

(हिन्दी में)लकल मोहम्म'द्तो ईन ईन अत-अतोका, व लकल हुज्जतो ईन असा'यतोका, ला सुन'आ ली वला ले'गैरी फ़ी एह्साने

(तरजुमा)हम्द तेरे ही लिये है अगर मै तेरी अता'अत करूँ और अगर में तेरी ना फ़रमानी करूँ तेरे लिये मुझ पर हक़ है, तो न मै नेकी कर सकता हूँ

إِلاَّ بِکَ، یَا کائِناً قَبْلَ کُلِّ شَیْءٍ، وَیَا مُکَوِّنَ کُلِّ شَیْءٍ، إِنَّکَ عَلَی کُلِّ شَیْءٍ قَدِیرٌ۔اَللّٰھُمَّ إِنِّی

(हिन्दी में)इल्ला बका, या का'येना क़बला कुल्ला शै'ईन, व या मोकाव'वना कुल्ला शै'ईन, इन्नका अला कुल्ले शै'ईन क़दीर, अल्लाहुम्मा इन्नी

(तरजुमा)न कोई और नेकी कर सकता है, सिवाए तेरे वसीले के ऐ वो की जो हर चीज़ से पहले मौजूद था और तुने हर चीज़ क़ो पैदा फ़रमाया है बेशक तू हर चीज़ पर

أَعُوذُ بِکَ مِنَ الْعَدِیلَةِ عِنْدَ الْمَوْتِ، وَمِنْ شَرِّ الْمَرْجِعِ فِی الْقُبُورِ، وَمِنَ النَّدامَةِ یَوْمَ الْاَزِفَةِ

(हिन्दी में)अ'उज़ो बेका मेनल'अदीलते इंदल मौते व मिन शर'रल मर'जा'अ फ़िल'क़बूर व मिनन'नेदामते यौमल नाज़'फ़ते

(तरजुमा)क़ुदरत रखता है, ऐ माबूद! मै तेरी पनाह लेता हूँ मौत के वक़्त हक़ से फिर जाने से और क़ब्र में जाने पर होने वाले अज़ाबसे और क़यामत की दिन शर्मिंदगी से तेरी पनाह लेता हूँ

فَأَسْأَ لُکَ أَنْ تُصَلِّیَ عَلَی مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ وَأَنْ تَجْعَلَ عَیْشِی عِیشَةً نَقِیَّةً وَمِیْتَتِی مِیتَةً سَوِیَّةً

(हिन्दी में)फ़'अस'अलोका अनतो सल्ले अला मोहम्मदीन व आले मोहम्मदीन व अन तज'अल ऐ-शी इ-शतन नक़ी'यतो व मी'तती मी'ततो सवाई'यतो

(तरजुमा)बस सवाल करता हूँ तुझ से के मोहम्मद व आले मोहम्मद पर रहमत नाज़िल फ़रमा और यह के मेरी

وَمُنْقَلَبِی مُنْقَلَباً کَرِیماً غَیْرَ مُخْزٍ وَلاَ فاضِحٍ اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلَی مُحَمَّدٍ وَآلِہِ الْاَئِمَّةِ یَنابِیعِ الْحِکْمَةِ،

(हिन्दी में)व मून'क़ल्बी मून'क़ल'बन करीमन गैरा मुख़'ज़े वला फ़ा'ज़ेह, अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मदीन व आलेही अल-अ'इम्मते य'नाबीहिल हिकमते

(तरजुमा)ज़िंदगी क़ो पाक ज़िंदगी और मौत क़ो इज़्ज़त की मौत क़रार दे और मेरी बाज़-गुज़श्त क़ो आब्रो-मंद बना दे के जिस में ज़िल्लत व रुसवाई न हो, ऐ माबूद! मोहम्मद और इनकी आल (अ:स) में अ'ईम्मा (अ:स) पर रहमत फ़रमा जो हिकमत के चश्मे

وَأُوْ لِی النِّعْمَةِ، وَمَعادِنِ الْعِصْمَةِ، وَاعْصِمْنِی بِھِمْ مِنْ کُلِّ سُوءٍ، وَلاَ تَأْخُذْنِی عَلَی غِرَّةٍ وَلاَ

(हिन्दी में)व अव्वेली-ईल न'अ-मते व म-आदिनिल इस्मते व अ-सिमनी बहुम मिन कुल्ले सू'ईन व ला ता'अखुज़्नी अला ग़िर'रतीन वला

(तरजुमा)साहिबाने नेमत और पाकबाज़ी की काने हैं इनके वास्ते से मुझे हर बुराई से महफूज़ फ़रमा, बेख़बरी में

عَلَی غَفْلَةٍ،وَلاَ تَجْعَلْ عَواقِبَ أَعْمالِی حَسْرَةً، وَارْضَ عَنِّی، فَإِنَّ مَغْفِرَتَکَ لِلظَّالِمِینَ وَأَنَا مِنَ

(हिन्दी में)अला गफ़'लातीन व ला तज'अल आ-वा'क़ीबा अमाली हसरता, व अर्ज़ा अन्ना, फ़'इन्ना मग़'फ़ेरतेका लील-ज़ालेमीना व अना मेनल

(तरजुमा)अचानक और गफलत में मेरी गिरफ़्त न कर, मेरे अमाल का अंजाम हसरत पर न कर और मुझ से राज़ी हो जा की यक़ीनन तेरी बख्शीश जालिमों के लिये है और मै

الظَّالِمِینَ اَللّٰھُمَّ اغْفِرْ لِی مَا لاَ یَضُرُّکَ وَأَعْطِنِی مَا لاَ یَنْقُصُکَ فَإِنَّکَ الْوَسِیعُ رَحْمَتُہُ الْبَدِیعُ

(हिन्दी में)ज़ालेमीना अल्लाहुम्मा अग़'फ़िर्ली माला यज़ुर'रोका व अ'तेनी ला यन'क़ो-सोका फ़'इन्नाकल वसियो रहमतुल बदी'यो

(तरजुमा)जालिमों से हूँ, ऐ माबूद! मुझे बख्श दे जिस का तुझे ज़रर नहीं और अता कर दे जिसका तुझे नुक़सान नहीं क्योंकि तेरी रहमत वसी'अ

حِکْمَتُہُ وَأَعْطِنِی السَّعَةَ وَالدَّعَةَ وَالْاَمْنَ وَالصِّحَّةَ وَالْنُّجُوعَ وَالْقُنُوعَ وَالشُّکْرَ وَالْمُعافاةَ وَالتَّقْوی

(हिन्दी में)हिक्मतोहू व अ'तेनी सा'अत वद'दा'अत वल अमना व़स-सह'अता वल नजू-अ वल क़नू'अ व़स-शुक्रा वल-मोआ'फ़ाता वत'तक़वा

(तरजुमा)और हिकमत अजीब है और मुझे अता फ़रमा वुस'अत व असा'इश, अमन व तंदुरुस्ती, आज्ज़ी व क़ना'अत, शुक्र और माफ़ी, सब्र व परहेज़गारी, और तू मुझे अपनी ज़ात और अपने औलिया से मूत'अल्लिक़ सच

وَالصَّبْرَ وَالصِّدْقَ عَلَیْکَ وَعَلَی أَوْ لِیائِکَ وَالْیُسْرَ وَالشُّکْرَ، وَأعْمِمْ بِذلِکَ یَا رَبِّ أَھْلِی وَوَلَدِی

(हिन्दी में)व़स-सबरा व़स सिद्क़ा अलीका व अला औलिया'एका वल-यसरा व़स-शुक्रा व अ-अ-मीम बिज़'लेका या रब'बा अहली व-वलादी

(तरजुमा)बोलने क़ो तौफीक़ दे और आसूदगी व शुक्र अता फ़रमा और ऐ पालने वाले ईन चीज़ों क़ो आम फ़रमा, मेरे रिश्तेदारों, मेरी औलाद,

وَ إِخْوانِی فِیکَ وَمَنْ أَحْبَبْتُ وَأَحَبَّنِی وَوَلَدْتُ وَوَلَدَنِی مِنَ الْمُسْلِمِینَ وَالْمُؤْمِنِینَ یَا رَبَّ الْعالَمِینَ

(हिन्दी में)मेरे दीनी भाइयों के लिये और जिस से मै मोहब्बत करता हूँ और जो मुझ से मुहब्बत करता है और जो मेरी औलाद हों और तमाम मुसलामानों और मोमिनीन के लिये, ऐ आलमीन के परवरदिगार

(तरजुमा)व इख़'वानी फ़ीका व मन अह्बब्तो व अहिब'बनी व वलादतो व वलादनी मिनल मुस्लेमीना वल मोमेनीना या रब्बुल आलमीन

इब्ने अशीम का कहना है की नीचे लिखी हुई दुआ नमाज़े तहज्जुद की 8 रक्'अत के बाद पढ़े, फिर दो रक्'अत नमाज़े शफ़ा'अ और एक रक्'अत नमाज़े वित्र अदा करे और सलाम के बाद बैठे बैठे यह दुआ पढ़े:

الْحَمْدُ لِلّٰہِ الَّذِی لاَ تَنْفَدُ خَزائِنُہُ وَلاَ یَخافُ آمِنُہُ، رَبِّ إِنِ ارْتَکَبْتُ الْمَعاصِیَ فَذلِکَ ثِقَةٌ

(हिन्दी में)अलहम्दो लील'लाहिल लज़ी ला तन'फ़दो ख़ज़ा'एनाहू व ला यख़ाफ़ो आ'मेनोहू रब'बा ईन अर'तकब्तोल म-आसी फ़'ज़लेका सिकातुन

(तरजुमा)हम्द है ईस ख़ुदा के लिये जिसके खजाने खत्म नहीं होते और जिसे वो अमान दे इसे खौफ़ नहीं, मेरे परवरदिगार अगर मैने ना-फर्मानियाँ की

مِنِّی بِکَرَمِکَ، إِنَّکَ تَقْبَلُ التَّوْبَةَ عَنْ عِبادِکَ، وَتَعْفُو عَنْ سَیِّئاتِھِمْ وَتَغْفِرُ الزَّلَلَوَ إِنَّکَ

(हिन्दी में)मिन्नी बे कर्मेका इन्नका ताक़ब'बलों तौ'बता अन-एबादेका, व त'अफ़ू अन सेया'तेहीम व तग़'फ़ेरो ज़ल'ललू इन्नका

(तरजुमा)हैं तो ईस वास्ते के मुझे तेरे करम पर भरोसा था क्योंकि तू अपने बन्दों की तवज्जह क़बूल फ़रमाता है इनकी बुराइयों से दर गुज़र करता और खताएं माफ़ करता है तो

مُجِیبٌ لِدَاعِیکَ وَمِنْہُ قَرِیبٌ وَأَ نَا تائِبٌ إِلَیْکَ مِنَ الْخَطایا وَراغِبٌ إِلَیْکَ فِی تَوْفِیرِ حَظِّی

(हिन्दी में)मोजीबो ले'दा'ईका व मिन्हो क़रीबो व अना ता'इबो इलय्का मिनल ख़ताया व राग़ेबो इलय्का फ़ी तौफ़ीर हज़'ज़ी

(तरजुमा)पुकारने वाले का जवाब देता है और तू इससे क़रीब होता है और मै तेरे हुज़ूर अपने गुनाहों से तौबा कर रहा हूँ और तुझ से तेरी अताओं में अपने

مِنَ الْعَطایا، یَا خالِقَ الْبَرایا، یَا مُنْقِذِی مِنْ کُلِّ شَدِیدَةٍ، یَامُجِیرِی مِنْ کُلِّ مَحْذُورٍ، وَفِّرْ عَلَیَّ

(हिन्दी में)मिनल अताया, या ख़ालेक़ल बराया, या मूनक़ेज़ी मिन कुल्ले शादी-दतिन या मोजीरी मिन कुल्ले मह'ज़ूरे वफ़'फ़र अलैय्या

(तरजुमा)हिस्से में फरावानी चाहता हूँ, ऐ मख्लूक़ के पैदा करने वाले, ऐ मुझे हर मुश्किल से निकालने वाले, ऐ मुझ क़ो हर बदी से बचाने वाले मुझ पर

السُّرُورَ، وَاکْفِنِی شَرَّ عَواقِبِ الاَُْمُورِ، فَأَ نْتَ اللهُ عَلَی نَعْمائِکَ وَجَزِیلِ عَطائِکَ مَشْکُورٌ،

(हिन्दी में)सरूरा, व इक'फ़ेनी शर'रा आ'वा'क़ेबेल अमूर. फ़'अन्ता अल'लाहो अला ने'मायेका व जज़ीला अता'एका मश्कूरो

(तरजुमा)मुसर्रत की फ़रावानी फ़रमा, मुझे सब मामलों के बुरे अंजाम से महफूज़ रख, की तुही वो ख़ुदा है की कसीर नेमतों और अताओं पर जिसका शुक्र किया जाता है

وَ لِکُلِّ خَیْرٍ مَذْخُورٌ ۔

(हिन्दी में)व ले कुल्ले खैरे मद'ख़ुरो

(तरजुमा)और हर भलाई तेरे यहाँ ज़खीरा है

याद रहे की उल्माए कराम ने रजब की हर रात के लिये एक मख्सूस नमाज़ ज़िक्र फ़रमाई है, लेकिन ईस मुख़्तसर जगह पर इनके ब्यान की गुंजाईश नही है

पहली रजब का दिन यह बड़ी अज़्मत वाला दिन है और इसमें चंद एक अमाल हैं :
1) रोज़ा रखना, रिवायत है की हज़रत नूह (अ:स) इसी दिन किश्ती पर सवार हुए और आप (स:अ) ने अपने साथियों क़ो रोज़ा रखने का हुक्म दिया!, बस जो शख्स ईस दिन का रोज़ा रखे तो जहन्नम की आग इससे एक साल की मुसाफत पर रहेगी!

2) ईस रोज़ ग़ुस्ल करे
3) हज़रत ईमाम हुसैन (अ:स) की ज़्यारत करे/पढ़े, जैसा की शेख़ ने बशीर द'हान से और इन्होने ईमाम जाफ़र अल-सादीक़ (अ:स) से रिवायत की है, फ़रमाया : पहली रजब के दिन ईमाम हुसैन (अ:स) की ज़्यारत करने वाले क़ो खुदाए त'आला ज़रूर बख्श देगा!


4) वो तवील दुआ पढ़े, जो सैय्यद ने किताब में नक़ल की है!
5) नमाज़े हज़रत सुलेमान पढ़े जो 10 रक्'अत है, 2-2 रक्'अत करके पढ़े के जिसके हर रक्'अत में सुराः हम्द के बाद 3 मर्तबा सुराः तौहीद और 3 मर्तबा सुराः काफेरून की तिलावत करे, नमाज़ का सलाम देने के बाद हाथों क़ो बुलंद करके कहे :
لَا اِلٰہَ اِلَّا الله وَحْدَہ لَا شَرِیْکَ لَہُ لَہُ الْمُلکُ وَ لَہُ الْحَمْدُ یُحْیِیْ وَ یُمِیْتُ وَھُوَ حَیٌّ لَا یَموتُ بِیَدھِ الْخَیْرُ وَ ھُوَ عَلٰی کُلِّ شیٴٍ قَدِیرٌ
(हिन्दी में)ला इलाहा इलल'लाह वह'दहू ला शरीका लहू, लहुल मुल्को व लहुल हम्दो युह'यी व योंमीतो व हुवा ला यमूतो बैदेहिल खैरो व हुवा अला कुल्ले शै'ईन क़दीर

(तरजुमा)अल्लाह की सिवा और कोई माबूद नहीं, जो यगाना है, इसका कोई सानी नहीं, हुकूमत इसकी और हम्द इसकी है वो ज़िंदा करता और मौत देता है, वो ऐसा ज़िंदा है जिसे मौत नैन, भलाई इसके पास है और वो हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है

: फिर कहे

اَللّٰھُمَّ لَا مَانِعَ لِمَا اَعطَیْتَ وَلَا مُعْطِیْ لِمَا مُنِعَتْ وَ لَا یُنْفَعُ ذَا الْجَدِّ مِنْکَ الْجَدِّ

(हिन्दी में)अल्लाहुम्मा ल माने'अ लेमा अतो'यता वला मोतेयी लेमा मोने'अत वला युन'फ़'ओ ज़ुल'जद'दा मिन्कल जद'दा

(तरजुमा)ऐ माबूद! जो कुछ तू दे इसे कोई रोकने वाला नहीं और जो कुछ तो रोके उसे कोई दे नहीं सकता और नफ़ा नहीं देता किसी का बख्त सिवाए तेरे दी हुई ख़ुश'बख्ती के

: इसके बाद हाथों क़ो मुंह पर फेर ले - 15 रजब के दिन भी यही नमाज़ बजा लाये, लेकिन ईस दुआ के बदले में "अला कुल्ले शै'ईन क़दीर" के बाद यह कहे

اِلَھاً وَّاحداً اَحَدًا فَرْدًا صَمَدًا لَّمْ یَتَّخِذْ صَاحِبَةً وَّ لَا وَلَدًا

(हिन्दी में)इलाहन वाहेदन अहादन फ़र्दन समदन, लम यत्ता'खिज़ साहेबतन वला वलादन

(तरजुमा)वो माबूद यगाना, यकता, तन्हा और बे नेयाज़ है, न इसकी कोई ज़ौजा है न इसकी कोई औलाद है!

और फिर रजब के आखरी दिन में भी यही नमाज़ अदा करे लेकिन "अला कुल्ले शै'ईन क़दीर" के बाद यह कहे

وَصَلَی لله عَلی مُحمَّدٍ وَآلِہِ الطَاھِرِیْنَ وَلاَحَوْلَ وَلاَقُوَّةَ اِلاَّبِااللهِ الْعَلِیِّ الْعَظِیْمِ۔

(हिन्दी में)व सल'लल'लाहो आला मोहम्मदीन व आलेही'त ताहेरीन व ला होवला क़ुव्वाता इल्ला बिल्लाहिल अलियुल अज़ीम

(तरजुमा)और ख़ुदा की रहमत हो हज़रत मोहम्मद (स:अ:अ:व:व) और इनकी पाकीज़ा आल (अ:स) पर और नहीं कोई ताक़त व क़ुव्वत मगर वो जो बुलंद व बुज़ुर्ग ख़ुदा से है

फिर अपने हाथों क़ो मुंह पर फेरे और अपनी हाजत तलब करे,
ईस नमाज़ के फ़ायेदे और बरकात बहुत ज़्यादा हैं, बस इससे गफलत न बरती जाए. वाज़े हो की पहली रजब के दिन में हज़रत सुलेमान की एक और नमाज़ भी मनकूल है जो 10 रक्'अत है, 2-2 रक्'अत करके पढ़ी जाती है, इसकी हर रक्'अत में सुराः हम्द के बाद सुराः तौहीद पढ़े - ईस नमाज़ की भी बहुत सारी फ़ज़ीलतें हैं, जीने सबसे कमतर फ़ज़ीलत यह है की जो शख्स यह नमाज़ बजा लाये इसके गुनाह बख्श दिए जायेंगे, वो बरस, जेजाम और निमोनिया से महफूज़ रहेगा और अज़ाबे क़ब्र और क़यामत की सख्तियों से बचा रहेगा! सैय्यद (अ:र) ने भी ईस दिन के लिये 4 रक्'अत नमाज़ नक़ल की है! बस वो नमाज़ अदा करने की ख़्वाहिश रखने वाले इनकी किताब "इक़बाल" की तरफ़ रुजू करें! ईस कौल के मुताबिक़ 57 हिजरी में ईस रोज़ ईमाम मोहम्मद बाक़र (अ:स) की विलादत ब-स'आदत हुई, लेकिन मो'अल्लिफ़ का ख़्याल है की आप की विलादत 3 सफ़र क़ो हुई है! इसी तरह एक कौल है की 2 रजब 212 हिजरी में ईमाम अली नक़ी (अ:स) की विलादत और 3 रजब

254हिजरी में आप की शहादत सामरा में हुई! फिर इब्ने अयाश के ब'कौल 10 रजब ईमाम मोहम्मद तक़ी (अ:स) की विलादत का दिन है

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