इमाम गुनाह व ख़ता से मासूम होता है इमाम के लिए ज़रूरी है कि वह ख़ता व गुनाह से मासूम हो,क्यों कि ग़ैरे मासूम न बतौरे कामिल मौरिदे एतेमाद बन सकता है और न ही उस से उसूले दीन व फ़रूए दीन को हासिल किया जा सकता है। इसी वजह से हमारा अक़ीदह है कि इमाम का “क़ौल ” “फ़ेअल ” व “तक़रीर ”हुज्जत है और दलीले शरई शुमार होते हैं। “तक़रीर” से मुराद यह है कि इमाम के सामने कोई काम अंजाम दिया जाये और इमाम उस काम को देखने के बाद उस से मना न करे तो इमाम की यह ख़ामोशी इमाम की ताईद शुमार होती है।