इन्तेज़ार के विभिन्न अर्थ व मअनी वर्णन किये गए हैं, लेकिन इस शब्द पर गौर व फिक्र के ज़रिये इसके अर्थ की वास्तविक्ता तक पहुँचा जा सकता है। इन्तेज़ार का अर्त किसी के लिए आँखे बिछाना है। यह इन्तेज़ार शर्तें पूरी करने व रास्ता तैयार करने के लिहाज़ से महत्व पैदा करता है और इस से बहुत से नतीजे ज़ाहिर होते हैं। इन्तेज़ार सिर्फ़ रुह से संबंधित और आंतरिक हालत का नाम नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी हालत होती है जो अन्दर से बाहर की तरफ़ असर करती है और इस के नतीजे में इंसान अपने अन्दर के एहसास के अनुसार काम करता है। इसी वजह से रिवायतों में इन्तेज़ार को एक बेहतरीन अमल बल्कि तमाम आमाल में बेहतरीन अमल की शक्ल में याद किया गया है। इन्तेज़ार, इन्तेज़ार करने वाले को एक हैसियत देता है और उसके कामों व कोशिशों की एक खास तरफ़ हिदायत करता है। इन्तेज़ार वह रास्ता है जो उसी चीज़ पर जा कर खत्म होता है जिस का इंसान को इन्तेज़ार होता है।
अतः इन्तेज़ार का अर्थ हाथ पर हाथ रख कर बैठना नही है, इंसान दरवाज़े पर आँखें जमाए रखे और हसरत लिए बैठा रहे, इसे इन्तेज़ार नहीं कहते, बल्कि हक़ीक़त तो यह है कि इन्तेज़ार में ख़ुशी, शौक व जज़्बा छुपा होता है।
जो लोग किसी अपने महबूब मेहमान का इन्तेज़ार करते हैं, वह ख़ुद को और अपने चारों ओर मौजूद चीज़ों को उस मेहमान के लिए तैयार करते हैं और उसके रास्ते में मौजूद रुकावटों को दूर करते हैं।
हमारी बात उस ला जवाब घटना के इन्तेज़ार के बारे में है जिसकी खूबसूरती और कमाल की कोई हद नहीं है। इन्तेज़ार उस ज़माने का है जिसकी खुशी और मज़े की मिसाल पिछले ज़माने में नहीं मिलती और इस दुनिया में अब तक ऐसा ज़माना नहीं आया है। हमें हज़रत इमामे ज़माना (अ. स.) की उस विश्वव्यापी हुकूमत के स्थापित होने का इन्तेज़ार है जिसे रिवायतों में इन्तेज़ारे फर्ज के नाम से याद किया गया है और जिसको आमाल व इबादत में बेहतरीन अमल बताया गया है, बल्कि जिसे तमाम ही आमाल क़बूल होने का वसीला क़रार दिया गया है।
हज़रत पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :
मेरी उम्मत का सब से बेहतरीन अमल (इन्तेज़ारे फरज) है...
हज़रत इमाम सादिक (अ. स.) ने अपने असहाब से फरमाया :
क्या मैं तुम लोगों को उस चीज़ के बारे में बताऊँ जिसके बग़ैर ख़ुदा वन्दे आलम अपने बन्दों से कोई भी अमल क़बूल नहीं करता ?! सब ने कहा : जी हाँ। इमाम (अ. स.) ने फरमाया :
ख़ुदा के एक होने का इक़रार, पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की नबूव्वत की गवाही, ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से नाज़िल होने वाली चीज़ों का इकरार, हमारी विलायत और हमारे दुशमनों से नफ़रत व दूरी (यानी ख़ास तौर पर हम इमामों के दुशमनों से दूरी), अइम्मा (अ. स.) की इताअत (आज्ञापालन) करना, तक़वा व परहेज़गारी को अपनाना, कोशिश करना व बुर्दबारी व सयंम से काम करना और क़ाइम आले मुहम्मद (अ. स.) का इन्तेज़ार...[2]
बस इन्तेज़ारे फरज, ऐसा इन्तेज़ार है जिसकी कुछ विशेषताएं है और कुछ अपने तरीक़े के अलग ही एहसास हैं और उनको पूर्ण रूप से पहचानना ज़रुरी है ताकि उसके बारे में बयान किये जाने वाले तमाम फज़ाइल का राज़ मालूम हो सके।
[1] . बिहार उल अनवार, जिल्द न. 52, पेज न. 122 ।
[2] . गैबते नोमानी, बाब 11, हदीस 16, पेज न. 207 ।