Hindi
Tuesday 23rd of April 2024
0
نفر 0

क़ुरआन नहजुल बलाग़ा के आईने में-1

क़ुरआन नहजुल बलाग़ा के आईने में-1

(यह मक़ाला हज़रत आयतुल्लाह मिस्बाह यज़दी और "क़ुरआन और आईन ए नहजुल बलाग़ा ”से एक इन्तेख़ाब है)

(1) क़ुरआने करीम की अहमियत व मौक़ेईयत:

इस वक्त क़ुरआन करीम ही एक आसमानी किताब है जो इन्सान की दस्तरस में है।

नहजुल बलाग़ा में बीस (20)से ज़ियादा ख़ुतबात हैं जिन में क़ुरआने मजीद का तआर्रुफ़ और उस की अहमियत व मौक़ेईयत बयान हुई है बाज़ औक़ात आधे से ज़्यादा खु़त्बे में क़ुरआने करीम की अहमियत, मुसलमानों की ज़िन्दगी में इस की मौक़ेईयत और उस के मुक़ाबिल मुसलमानों के फ़राइज़ बयान हुए हैं। यहां हम सिर्फ़ बाज़ जुमलों को तौज़ी व तशरीह पर इकतेफ़ा करेंगे।

अमीरुल मोमिनीन (अ) ख़ुत्बा 133 में इर्शाद फ़रमाते हैं (व किताबल्लाहे बेना अज़्हरोकुम नातिक़ ला याई लिसानहो)
तर्जुमा
: और अल्लाह की किताब तुम्हारी दस्तरस में है जो क़ुव्वते गोयाई रखती है और उस की ज़बान गुंग नहीं।

क़ुरआन आसमानी किताबों तौरात व इन्जील व ज़बूर के बरखिलाफ़ तुम्हारी दस्तरस में है। यह बात तवज्जोह तलब है उम्मतों ख़ुसुसन यहूद व बनी इसराईल के अवाम के पास न थी बल्कि इस के कुछ नुस्ख़े उलामा ए यहूद के पास थे यानी आम्मतुन नास के लिये तौरात की तरफ़ रुजू करने का इम्कान न था। इन्जील के बारे में तो वज़ईयत इस से ज़्यादा परेशान कुनिन्दा है क्यों कि वह इन्जील जो आज ईसाईयों के पास है यह वह इन्जील नहीं जो हज़रत ईसा (अ) पर नाज़िल हुई थी बल्कि मुख़्तलिफ़ अफ़राद के जमा शुदा मतालिब हैं और चार अनाजील के तौर पर मअरूफ़ हैं। पस गुज़िश्ता उम्मतें आसमानी किताबों तक दस्तरसी न रखती थीं। लेकिन क़ुरआने करीम को ख़ुदा वन्दे मुतआल ने ऐसे नाज़िल फ़रमाया और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने उसे इन्सानों तक ऐसे पहुंचाया कि आज लोग बड़ी आसानी से उसे सीख और हिफ़्ज़ कर सकते हैं।

इस आसमानी किताब की एक दूसरी ख़ुसूसियत यह है कि ख़ुदा वन्दे मुतआल ने उम्मते मुस्लेमा पर यह अहसान फ़रमाया है कि इस की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी ख़ुद अपने ज़िम्मे ली है कि यह किताब हर तरह के इन्हेराफ़ या मुक़ाबिला आराई से महफ़ूज़ रहे। ख़ुद आँ हज़रत (स.) ने इस के सीख़ने और इसकी आयात के हिफ़्ज़ करने की मुसलमानों को इस क़द्र ताकीद फ़रमाई कि बहुत सारे मुसलमान आपके ज़माने में ही हाफ़िज़े क़ुरआन थे जो आयत तद्रीजन नाज़िल हुई थीं तो हज़रत (स) मुसलमानों के लिये बयान फ़रमाते थे इस तरह मुसलमान उन को हिफ़्ज़ करते, लिखते, और उन को आगे बयान करते। इस तरिक़े से क़ुरआन पूरी दुनिया में फ़ैलता गया। मौला ए कायनात फ़रमाते हैं : अल्लाह की किताब तुम्हारे दरमियान और तुम्हारे इख़्तियार में है, ज़रूरत है कि हम इस जुम्ले में ज़्यादा ग़ौर करें “नातेक़ुन ला यअई लिसानहू” यह किताब बोलने वाली है और इस की ज़बान कभी गुंग या कुन्द नहीं हुई। यह बोलने से ख़स्तगी का अहसास नहीं करती और न कभी इस में लुक्नत पैदा हुई है इस के बाद आप इर्शाद फ़रमाते हैं “व बयता ला तह्दमो अर्कानहु व अज़्ज़ा ला तह्ज़मो अअवानहु”यह एक ऐसा घर है जिसके सुतून कभी मुन्हदिम होने वाले नहीं हैं और ऐसी इज़्ज़त व सर बलन्दी है जिस के यार व अन्सार कभी शिकस्त नहीं खाते।

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

हदीसे किसा
नहजुल बलाग़ा में इमाम अली के ...
दुआ फरज
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का ...
सम्मोहन एवं बुद्धिमत्ता
मुसलमानो के बीच इख़्तिलाफ़
नहजुल बलाग़ा में हज़रत अली के ...
इमाम महदी अलैहिस्सलाम का वुजूद, ...
हुसैन(अ)के बा वफ़ा असहाब
कुमैल को अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) की ...

 
user comment