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क़ुरआन और अहकाम

क़ुरआन और अहकाम

तहारत

يا ايها الذين امنوا كلوا من طيبات ما رزقناكم

1. ऐ मोमिनों हमारे दिये हुए पाक रिज़्क़ को खाओ।(बक़रह 172)

وَلاَ تَقْرَبُوهُنَّ حَتَّىَ يَطْهُرْنَ

1. औरतों से उस वक़्त नज़दीकी न करो जब तक वह हैज़ से पाक न हो जायें। (बक़रह 222)

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إِذَا قُمْتُمْ إِلَى الصَّلوةِ فاغْسِلُواْ وُجُوهَكُمْ وَأَيْدِيَكُمْ إِلَى الْمَرَافِقِ وَامْسَحُواْ بِرُؤُوسِكُمْ وَأَرْجُلَكُمْ إِلَى الْكَعْبَينِ وَإِن كُنتُمْ جُنُبًا فَاطَّهَّرُواْ وَإِن كُنتُم مَّرْضَى أَوْ عَلَى سَفَرٍ أَوْ جَاء أَحَدٌ مَّنكُم مِّنَ الْغَائِطِ أَوْ لاَمَسْتُمُ النِّسَاء فَلَمْ تَجِدُواْ مَاء فَتَيَمَّمُواْ صَعِيدًا طَيِّبًا فَامْسَحُواْ بِوُجُوهِكُمْ وَأَيْدِيكُم مِّنْهُ مَا يُرِيدُ اللّهُ لِيَجْعَلَ عَلَيْكُم مِّنْ حَرَجٍ وَلَكِن يُرِيدُ لِيُطَهَّرَكُمْ وَلِيُتِمَّ نِعْمَتَهُ عَلَيْكُمْ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ

1. ऐ ईमान वालो जब भी नमाज़ के लिए खड़े हो तो पहले अपने चेहरों को और कोहिनियों तक हाथों को धोओ और अपने सिर और गट्टे तक पैरों का मसह करो और अगर जनाबत की हालत में हों तो ग़ुस्ल करो और अगर मरीज़ हो या सफ़र में हों या पख़ाना वग़ैरह किया हो या औरतों के साथ हमबिस्तर हुए हो और पानी न मिले तो पाक मिट्टी से तयम्मुम कर लो, इस तरह कि अपने चेहरे व हाथों का मसह कर लो कि ख़ुदा तुम्हारे लिए किसी तरह की ज़हमत नही चाहता, बल्कि यह चाहता है कि तुम्हें पाक व पाकीज़ा बना दे और तुम पर अपनी नेअमतों को तमाम कर दे। शायद तुम इस तरह उसके शुक्र गुज़ार बंदे बनजाओ। ।(मायदह 6)

وَيُنَزِّلُ عَلَيْكُم مِّن السَّمَاء مَاء لِّيُطَهِّرَكُم بِهِ

1. अल्लाह ने आसमान से पानी नाज़िल किया ताकि तुम उससे तहारत हासिल करो। (अनफ़ाल11)

وَأَنزَلْنَا مِنَ السَّمَاءِ مَاءً طَهُورًا

1. हम ने आसमान से पाक करने वाला पानी नाज़िल किया। (फ़ुरक़ान 48)

وَثِيَابَكَ فَطَهِّرْ وَالرُّجْزَ فَاهْجُرْ

1. ऐ पैग़म्बर अपने लिबास को पाक रखें व कसाफ़त सके दजूर रहें। (मद्दस्सिर 4-5)

नमाज़

إِنَّ الصّلوةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ كِتَابًا مَّوْقُوتًا

1. नमाज़ मोमिनों पर वक़्त की पाबंदी के साथ वाजिब कर दी गई है।(निसा103)

حَافِظُواْ عَلَى الصَّلَوَاتِ والصَّلوةِ الْوُسْطَى

2. तमाम नमाज़ों की और ख़ुसूसन दरमियानी नमाज़ की पाबंदी करो। (बक़रह 238)

وَأْمُرْ أَهْلَكَ بِالصَّلوةِ وَاصْطَبِرْ عَلَيْهَا

3. अपने अहल को नमाज़ का हुक्म दो और फिर सब्र करो। (ताहा 132)

أَقِمِ الصَّلاَةَ لِدُلُوكِ الشَّمْسِ إِلَى غَسَقِ اللَّيْلِ وَقُرْآنَ الْفَجْرِ إِنَّ قُرْآنَ الْفَجْرِ كَانَ مَشْهُودًا

4. ज़वाले आफ़ताब, तारीकिये शब और फ़ज्र के वक़्त नमाज़ क़ाइम करो। (इसरा 78)

فَوَلِّ وَجْهَكَ شَطْرَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ

5. नमाज़ के वक़्त अपना रुख़ मस्जिदुल हराम की तरफ़ कर लिया करो। (बक़रह 144)

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا ارْكَعُوا وَاسْجُدُوا وَاعْبُدُوا رَبَّكُمْ

6. ईमान वालो! रुकूअ, सजदह और इबादते परवर दिगार करो।(हज77)

وَلاَ تَجْهَرْ بِصَلاَتِكَ وَلاَ تُخَافِتْ بِهَا

7. तमाम नमाज़ें न बलन्द आवाज़ से पढ़ो न आहिस्ता। (इसरा 110)

وَأَقِمِ الصَّلوةَ لِذِكْرِي

8. मेरे ज़िक्र के लिए नमाज़ क़ाइम करो। (ताहा14)

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا نُودِي لِلصَّلوةِ مِن يَوْمِ الْجُمُعَةِ فَاسْعَوْا إِلَى ذِكْرِ اللَّهِ

9. ऐ ईमान लाने वालों ! जब जुमे के दिन नमाज़ के लिए बुलाया जाये तो तो अल्लाह के ज़िक्र के लिए दौड़ पड़ो। (जुमुआ 9)

وَإِذَا ضَرَبْتُمْ فِي الأَرْضِ فَلَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَن تَقْصُرُواْ مِنَ الصَّلوةِ

10. जब तुम सफ़र करो तो नमाज़ें कस्र कर दो। (निसा101)

فَإنْ خِفْتُمْ فَرِجَالاً أَوْ رُكْبَانًا

11. खौफ़ की मंज़िल में हो तो पयादा या सवारी पर ही नमाज़ पढ़लो। (बक़रह239)

وَأَقِيمُواْ الصَّلوةَ وَآتُواْ الزَّكَوةَ وَارْكَعُواْ مَعَ الرَّاكِعِينَ

12. नमाज़ क़ाईम करो, ज़कात दो और जमाअत के साथ रुकूअ करो। (बक़रह 43)
रोज़ा

أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ

1. ईमान वालों तुम पर रोज़े वाजिब कर दिये गये हैं। (बक़रह 183)

شَهْرُ رَمَضَانَ الَّذِيَ أُنزِلَ فِيهِ الْقُرْآنُ هُدًى لِّلنَّاسِ وَبَيِّنَاتٍ مِّنَ الْهُدَى وَالْفُرْقَانِ فَمَن شَهِدَ مِنكُمُ الشَّهْرَ فَلْيَصُمْهُ وَمَن كَانَ مَرِيضًا أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِّنْ أَيَّامٍ أُخَرَ

1. जो रमज़ान के महीने में हाज़िर रहे उसका फ़र्ज़ है कि रोज़े रखे। (बक़रह185)

أُحِلَّ لَكُمْ لَيْلَةَ الصِّيَامِ الرَّفَثُ إِلَى نِسَآئِكُمْ

1. तुम्हारे लिए रोज़े की रात में औरते से नज़दीकी जाइज़ है। (बक़रह187)

हज

وَلِلّهِ عَلَى النَّاسِ حِجُّ الْبَيْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ إِلَيْهِ سَبِيلاً

1. बैतुल्लाह के सफ़र की इसतेताअत रखने वालों पर हज्जे बैतुल्लाह वाजिब है। (आलि इमरान97)

وَأَتِمُّواْ الْحَجَّ وَالْعُمْرَةَ لِلّهِ فَإِن أُحْصِرْتُمْ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِ

2. हज व उमरह को अल्लाह के लिए तमाम करो और मजबूर हो जाओ तो क़ुरबानी दे कर आज़ाद हो जाओ। (बक़रह 196)

الْحَجُّ أَشْهُرٌ مَّعْلُومَاتٌ فَمَن فَرَضَ فِيهِنّ الْحَجَّ فَلاَ رَفَثَ وَلاَ فُسُوقَ وَلاَ جِدَالَ فِي الْحَجِّ

3. हज मुऐय्यन महीनों का अमल है और इसके दौरान जिमाअ, झ़ूट और जिदाल जाइज़ नही है।(बक़रह 197)

فَإِذَا أَفَضْتُم مِّنْ عَرَفَاتٍ فَاذْكُرُواْ اللّهَ عِندَ الْمَشْعَرِ الْحَرَامِ

4. अराफ़ात से आगे बढ़ो तो मशअरल हराम में अल्लाह का ज़िक्र करो।(बक़रह 198)

وَاتَّخِذُواْ مِن مَّقَامِ إِبْرَاهِيمَ مُصَلًّى

5. मक़ामे इब्रहीम को मुसल्ला बना कर नमाज़ अदा करो।(बक़रह125)

َ

أَفِيضُواْ مِنْ حَيْثُ أَفَاضَ النَّاسُ ثُمّ

6. फिर तमाम लोगों के साथ मिना की तरफ़ बढ़ जाओ। (बक़रह199)

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَقْتُلُواْ الصَّيْدَ وَأَنتُمْ حُرُمٌ

7. ईमान वालो! एहराम की हालत में शिकार मत करना( मायदह95)
ज़कात

خُذْ مِنْ أَمْوَالِهِمْ صَدَقَةً تُطَهِّرُهُمْ وَتُزَكِّيهِم بِهَا

1. पैग़मबर आप उनके माल से ज़कात ले लिजिये ताकि ये पाको पाकीज़ा हो जायें।(तौबा 103)

أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ أَنفِقُواْ مِن طَيِّبَاتِ مَا كَسَبْتُمْ وَمِمَّا يَا أَخْرَجْنَا لَكُم مِّنَ الأَرْضِ

2. अपनी पाकीज़ा कमाई में से राहे ख़ुदा में ख़र्च करो। (बक़रह267)

فَآتِ ذَا الْقُرْبَى حَقَّهُ وَالْمِسْكِينَ وَابْنَ السَّبِيلِ

3. क़राबतदार, मिसकीन और मुसाफ़िर को उसका हक़ दो। (रूम38)

إِنَّمَا الصَّدَقَاتُ لِلْفُقَرَاء وَالْمَسَاكِينِ وَالْعَامِلِينَ عَلَيْهَا وَالْمُؤَلَّفَةِ قُلُوبُهُمْ وَفِي الرِّقَابِ وَالْغَارِمِينَ وَفِي سَبِيلِ اللّهِ وَابْنِ السَّبِيلِ

4. सदक़ात, फ़क़ीरों, मिसकीनों,मक़रूज़,मोल्लिफ़तुल क़ुलूब, मुसाफ़िर ग़ुरबत ज़दा और राहे ख़ुदा के लिए है। (तौबह60)
ख़ुमुस

وَاعْلَمُواْ أَنَّمَا غَنِمْتُم مِّن شَيْءٍ فَأَنَّ لِلّهِ خُمُسَهُ وَلِلرَّسُولِ وَلِذِي الْقُرْبَى وَالْيَتَامَى وَالْمَسَاكِينِ وَابْنِ السَّبِيلِ

1. याद रखो, तुम्हारे हर फ़ायदे में अल्लाह, रसूल और रसूल के क़राबतदारों का,यतीमों का, मिसकीनों का और मुसाफिरों का ख़ुमुस वाजिब है। (अनफ़ाल41)

जिहाद

كُتِبَ عَلَيْكُمُ الْقِتَالُ وَهُوَ كُرْهٌ لَّكُمْ

1. तुम पर जिहाद वाजिब कर दिया गया अगरचे तुम्हें नागवार है।(बकरह216)

وَجَاهِدُوا فِي اللَّهِ حَقَّ جِهَادِهِ

2. अल्लाह की राह में जिहाद का हक़ अदा करो। (हज78)

وَقَاتِلُواْ فِي سَبِيلِ اللّهِ الَّذِين يُقَاتِلُونَكُمْ وَلاَ تَعْتَدُواْ

3. तुम उन लोगों से अल्लाह की राह में जंग करो जो तुम से जंग करे लेकिन ज़्यादती न करना।(बक़रह190)
अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुनकर

وَلْتَكُن مِّنكُمْ أُمَّةٌ يَدْعُونَ إِلَى الْخَيْرِ وَيَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنكَرِ

1. तुम में से एक जमाअत नेकी की दावत, अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुनकर के लिए होनी चाहिए।( आलि इमरान 104)

كُنتُمْ خَيْرَ أُمَّةٍ أُخْرِجَتْ لِلنَّاسِ تَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَتَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنكَرِ

2. तुम बेहतरीन उम्मत हो जिसे लोगों के लिए निकाला गया है। तुम अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुनकर करते हो। (आलि इमरान 110)

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