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Friday 17th of May 2024
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हज़रत ज़ैनब

असर दुआ को मिला है जनाबे ज़ैनब से
बहुत क़रीब ख़ुदा है जनाबे ज़ैनब से

 


अली की बेटी ने कलमे की आबरू रख ली
सदाए सल्ले अला है जनाबे ज़ैनब से

 


ज़माना लाख बुझाए बुझ नहीं सकता
चिराग़े दीं की ज़िया है जनाबे ज़ैनब से

 


न हो शिफ़ाअते बिन्ते अली तो कुछ भी नहीं
हयाते अरज़ो समां है जनाबे ज़ैनब से

 


सरों को चादरें बख़्शीं हैं बे रिदा हो कर
वक़ारे फ़र्क़ों रिदा है जनाबे ज़ैनब से

 


अंधेरे शाम की तक़दीर हो नहीं सकते
चिराग़े शाम जला है जनाबे ज़ैनब से

 


वह हाथ गर्दने शब्बीर पर नहीं कांपा
जो हाथ कांप रहा है जनाबे ज़ैनब से

 


जनाबे ज़हरा से बेशक चली है नस्ले नबी
नबीं का दीन चला है जनाबे ज़ैनब से।

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