वास्तव में हम मुसलमानों को क्या हो गया है?। बहुत आश्चर्य की बात है कि हम सारे मुसलमान एक अल्लाह की इबादत करते हैं, एक पैग़म्बर को मानते हैं, एक ही किताब पर ईमान रखते हैं तथा सभी का क़िबला भी एक है, परन्तु हम लोगों में एकता नही है, हम लोग नाइत्तेफ़ाक़ी का शिकार हैं और हमें एहसास भी नही है।
इस संक्षिप्त लेख में यह प्रयत्न किया है कि एकता के अर्थ को बयान करके उसके महत्व पर प्रकाश डाला जाये तथा उससे प्राप्त होने वाली प्रगतियों को स्पष्टीकरण किया जाये। ताकि हम लोगों में इत्तेहाद व इत्तेफ़ाक़ के साथ रहने का जज़्बा पैदा हो।
अल्लाह से यही प्रार्थना करता हूँ कि वह हम मुसलमानों को एकता के साथ रहने की तौफ़ीक़ प्रदान करे।
एकता का अर्थ
शब्दकोष में एकता का अर्थ है एक होना, एक करना, यक जहती, यक दिली आदि।[1]
एकता की परिभाषा यह है कि हम सभी मुसलमान कुछ चीज़ों में अपने अक़ीदों की सुरक्षा करते हुए आपस में एक हो जायें।
अत: अब स्पष्ट हो गया कि एकता का अर्थ यह नही है कि सारे मुसलमान शिया हो जायें या सारे मुसलमान सुन्नी हो जायें बल्कि इसका अर्थ यह है कि हम फ़िरक़े का मुसलमान अपने अपने अक़ीदे पर गामज़न रहते हुए, इस्लाम और मुसलमानों के दुश्मनों के विरुद्ध एक हो जाएँ तथा उनके प्रति ग़फ़लत से काम न लें।
एकता का महत्व
इस्लाम एक समाजिक धर्म है। और यहा कारण है कि इस धर्म में एकता व भाईचारगी की दावत दी गई है तथा घृणा एवँ नाइंसाफ़ी का विरोध किया गया है।
अल्लाह तबारत व तआला क़ुरआने मजीद में फ़रमा रहा है कि ....................
मोमिनीन आपस में एक दूसरे के भाई हैं तो तुम लोग अपने दो भाईयों के बीच मेल जोल करा दिया करो।[2]
इसी प्रकार दूसरे स्थान पर फ़रमा रहा है कि .....................................
बेशक यह तुम्हारी उम्मत एक उम्मत है और मैं ही तुम सब का पालने वाला हूँ तो फिर तुम लोग मेरी ही इबादत किया करो।[3]
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम जब मक्के से हिजरत करके मदीने तशरीफ़ ले गये तो आपने अपने अनुयाईयों के बीच भाईचारगी का अक़्द पढ़ा तथा उन्हे एक दूसरे का हमदर्द ठहराया।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) का फ़रमान है कि ....................................
सारे मुसलमान आपस में एक दूसरे के भाई हैं तथा बरतरी एवँ उत्तमता तक़वा के आधार पर है।[4]
दूसरे स्थान पर फ़रमाते हैं कि ......................................
ऐ लोगो, तुम पर ज़रुरी है कि इत्तेहाद व इत्तेफ़ाक़ के साथ रहो तथा इख़्तिलाफ़ एवँ इफ़्तेराक़ से अपने को बचाओ।[5]
आयतों एवँ रिवायतों से यह स्पष्ट हो गया कि इस्लाम धर्म में एकता एवँ इत्तेहाद का बहुत महत्व है।
एकता से संबंधित प्रगतियाँ
एकता से संबंधित प्रगतियाँ बहुत हैं, परन्तु उनमें से कुछ पर प्रकाश डालना है जो इस प्रकार है:
1. इज़्ज़त एवँ क़ुदरत में वृद्धि
इत्तेहाद एवँ एकता इज़्ज़त एवँ क़ुदरत का आधार है। जैसे जैसे एकता में दृढ़ता (इस्तेहकाम) आता चला जायेगा। उसी प्रकार क़ुदरत एवँ इज़्ज़त में वुद्धि होती चली जायेगी। एकता से क़ौम एवँ मिल्लत को शक्ति मिलती है और इज़्ज़त में बढ़ोत्तरी होती है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं कि .......................
एक इज़्ज़तदार क़ौम उस वक़्त जलील होती है जब सुस्त एवँ कमज़ोर हो जाए और क़ौम सुस्त एवँ कमज़ोर उस वक़्त होती है जब नाइत्तेफ़ाक़ी का शिकार हो जाये और नाइत्तेफ़ाक़ी उस वक़्त वुजूद में आती है जब लोगों के दिलों में बुग़्ज़ जन्म ले ले।[6]
अल्लाह तबारक व तआला फ़रमाता है कि ...................................
अल्लाह और उसके रसूल की पैरवी करो और आपस में झगड़ा एवँ इख़्तिलाफ़ न करो वरना सुस्त और कमज़ोर हो जाओगे।[7]
2. आर्थिक स्थिति में सुधार
जब सारे मुसलमान एकता के साथ रहेगें तो उनके अंदर मुहब्बत पैदा होगी। एक दूसरे के साथ भाई जैसा व्यवहार करेगें। अत: कठिनाईयों के अवसर पर एक दूसरे का सहयोग करेगें। इस तरह मुसलमान अपनी आर्थिक स्थिति को अच्छी से अच्छी बनाने के लिये विभिन्न सुझावों को अमली जामा पहना सकते हैं।
अ. इस्लामी देशों की बहुमुल्य संपत्तियों को सामराजी हुकूमतों की लूटमार से बचाना और उनका सही प्रयोग करना।
आ. टेकनालाँजी की कमी (महरुमियत) को दूर करना। अर्थात इसके लिये निवेश (सरमाया गुज़ारी) करना और इस्लामी देशों के विभिन्न विशेषज्ञों से सहयोग लेना। मुसलमानों की सर्वोच्च शिक्षा के लिये एक देश से दूसरे देश में आने जाने की सुविधा उपलब्ध कराना।
इ. संयुक्त इस्लामी बैंक की स्थापना की जाए और उसके ज़रिये बड़ी बड़ी कंपनियाँ बनाई जाएँ तथा उसमें मुसलमानों को रोज़गार से लगाया जाये या उन्हे बैंक से लोन देकर व्यापार कराया जाये। इस प्रकार मुसलमानों की आर्थिक स्थिति में सुधार आ सकता है।
3. शाँति में सुविधा
जब मुसलमान प्रेम के साथ अपना जीवन गुज़ारेगें तो उनकी फिक्र सही काम करेगी और उन पर उनके एहसासात ग़ालिब नही होगें। अत: एक दूसरे की दिल आज़ारी नही होगी। एक दूसरे की मुक़द्देसात की हुरमत सुरक्षित रहेगी तथा एक फ़िरक़े का दूसरे फ़िरक़े पर किचड़ उछालना, तोहमत लगाना, ग़लत प्रोपगंडा करना, एक दूसरे को काफ़िर कहना आदि बंद हो जायेगा। अत: मुसलमानों के हाथों मुसलमानों का क़त्ल नही होगा।
इसके अतिरिक्त दुश्मन, मुसलमानों के मुक़द्देसात की बे हुरमती करने की हिम्मत एवँ जुरअत नही करे सकेगें तथा उनकी तरफ़ आँख नही उठाया जायेगा। उनसे कोई नफ़रत नही करेगा और दहशतगर्द की तोहमत लगा कर उनकी क़त्ले आम नही किया जायेगा।
अत: यह स्पष्ट हो गया कि मुसलमाल केवल एकता के साये में अपना जीवन शाँति पूर्वक गुज़ार सकते हैं।
आज दुनिया में मुसलमानों की संख्या लगभग डेढ़ अरब है और 56 इस्लामी देश हैं तथा अल्लाह के फ़ज़्ल के संसार की सारी बहुमुल्य संम्पत्तियाँ उनके पास है। यदि दुनिया के सारे मुसलमान मुत्तहिद हो जायें तो एक अज़ीम शक्ति के रूप पर दुनिया में छा सकते हैं और दुश्मन इसी से भयभीत है तथा मुसलमानों को विभिन्न बहानों से मुतफ़र्रिक़ रखने के लिये हर मुम्किन कोशिश करते चले आ रहे हैं, यहाँ तक कि सालाना लाखों डालर्स इस हदफ़ के लिये ख़र्च कर रहे हैं।
अत: मुसलमानों को भी चाहिये कि वे एकता कायम करने के लिये हर मुमकिन प्रयास करें तथा हमेशा बेदार व होशियार रहें ताकि दुश्मनों की शैतानी हरकतों के शिकार न हों और अपने क़ौल एवँ अमल के ज़रिये मुसलमानों की एकता की रुकावट का सबब न बनें।
[1]. अल मुन्जिद, तर्जुम ए मुहम्मद बंदरबेगी, जिल्द 2 पेज 2152
[2]. क़ुरआने मजीद सूर ए हुजरात आयत 10
[3]. सूर ए अंबिया आयत 92
[4]. कंज़ुल उम्माल जिल्द 1 पेज 149
[5]. कंज़ुल उम्माल जिल्द 1 पेज 206
[6].
[7]. सूर ए अनफ़ाल आयत 46