इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस्लामी क्रांति की सफलता की चालीसवीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में एक अहम बयान जारी किया है।
इस्लामी क्रांति की सफलता की चालीसवीं वर्षगांठ और अपने जीवन के नए चरण में इस्लामी गणतंत्र के प्रवेश के उपलक्ष्य में आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने एक अहम बयान जारी किया है जिसमें 11 फ़रवरी की रैलियों में जनता की गौरवपूर्ण व दुश्मन की साज़िशों को विफल बनाने वाली उपस्थिति का आभार प्रकट किया गया है। बयान में पिछले चालीस बरसों में इस्लामी क्रांति द्वारा तैय किए गए गौरवपूर्ण मार्ग की विशेषताओं और इस्लामी क्रांति की महान विभूतियों का उल्लेख किया गया है और भविष्य की ओर वास्तविकतापूर्ण दृष्टि व लक्ष्यों की ओर दूसरा बड़ा क़दम उठाने में युवाओं की बेजोड़ भूमिका पर बल दिया गया है। वरिष्ठ नेता ने भविष्य का निर्माण करने वाले सशक्त युवाओं को संबोधित करते हुए सात मूल अनुच्छेदों में इस महान जेहाद में उनके द्वारा उठाए जाने वाले आवश्यक क़दमों का उल्लेख किया है।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अपने संदेश में कहा है कि ईरानी राष्ट्र सशक्त लेकिन दयालु, कृपालु यहां तक कि मज़लूम भी है। उन्होंने कहा कि ईरान की इस्लामी क्रांति ने किसी भी युद्ध में यहां तक कि अमरीका व सद्दाम से युद्ध में भी पहली गोली फ़ायर नहीं की है और हर बार उसने दुश्मन के हमले के बाद अपनी रक्षा की है लेकिन फिर उसने दुश्मन को करारा जवाब दिया है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस संदेश में कहा है कि देश की सुरक्षा, अखंडता व सीमाओं की रक्षा, आधारभूत आर्थिक व नागरिक ढांचों का निर्माण, चुनाव जैसे राजनैतिक मामलों में जनता की व्यापक भागीदारी, लोगों की चेतना का स्तर बढ़ाना, देश की सार्वजनिक संभावनाओं का न्यायोचित बंटवारा, देश के सार्वजनिक वातावरण में नैतिक मूल्यों की मज़बूती और दुनिया भर की साम्राज्यवादी शक्तियों विशेष रूप से अमरीका के मुक़ाबले में डटना, इस्लामी क्रांति की उपलब्धियों का मात्र एक भाग है।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अपने संदेश में इस बात का उल्लेख करते हुए कि शक्तिशाली ईरानी को आज भी इस्लामी क्रांति के आरंभिक दौर की तरह साम्राज्यवादियों की ओर से उत्पन्न की जाने वाली चुनौतियों का सामना है, कहा कि अगर उस समय अमरीका की ओर से चुनौती देश से विदेशी पिट्ठुओं को भगाने, ज़ायोनी शासन के दूतावास को बंद करने या जासूसी का अड्डा बन चुके अमरीका के दूतावास पर क़ब्ज़े को लेकर थी तो आज यह चुनौती ज़ायोनी शासन की सीमाओं पर ईरान की सशक्त उपस्थित, पश्चिमी एशिया के क्षेत्र से अमरीका के अवैध प्रभाव को समाप्त करने और पूरे क्षेत्र में फ़िलिस्तीनी संघर्षकर्ताओं और हिज़बुल्लाह समेत प्रतिरोधक बलों के समर्थन को लेकर है।