आतंकवाद के विरूद्ध वैश्विक संघर्ष के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आरंभ कल तेहरान में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के संदेश से हुआ। यह सम्मेलन आतंकवाद से संघर्ष के बारे मे विचार-विमर्श के केन्द्र में परिवर्तित हो चुका है। इस सम्मेलन के प्रथम दिन इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और इराक़ के राष्ट्रपतियों से अलग-अलग भेंटवार्ताएं कीं। इन भेंटवार्ताओं में उन्होंने क्षेत्र में शांति को क्षेत्रीय राष्ट्रों की संयुक्त इच्छा बताते हुए इस वास्तविकता को स्पष्ट किया कि क्षेत्र में अमरीका की सैनिक उपस्थिति ही क्षेत्रीय अशांति एवं समस्याओं का मूल कारण है। अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करज़ई के साथ भेंट में वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने यह बात भी स्पष्ट की है कि अमरीकी, अफ़ग़ानिस्तान में स्थाई छावनी के चक्कर में हैं जो बहुत ही ख़तरनाक बात है। उन्होंने कहा कि जब तक अमरीकी सैनिक अफ़ग़ानिस्तान में उपस्थित रहेंगे उस समय तक वास्तविक शांति स्थापित नहीं हो सकती। इराक़ के राष्ट्रपति जलाल तालेबानी के साथ भेंट में भी वरिष्ठ नेता ने इसी बिंदु की ओर संकेत किया कि इराक़ और क्षेत्र की समस्त समस्याओं का मूल कारण अतिग्रहणकारी अमरीकियों की उपस्थिति है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की ओर से क्षेत्र में आतंकवाद के मुख्य कारकों पर बल दिया जाना दो महत्वपूर्ण विषयों का परिचायक है। एक यह कि आतंकवाद से संघर्ष के लिए क्षेत्रीय देशों को पहले आतंकवाद जैसे अभिशाप की वास्तविकता और इसको अस्तित्व देने वालों को पहचानने की आवश्यकता है। इसी आधार पर उन्होंने आतंकवाद के विरूद्ध वैश्विक संघर्ष के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन को भेजे अपने संदेश के एक भाग में आतंकवाद की स्पष्ट परिभाषा किये जाने पर बल दिया। वरिष्ठ नेता ने इस महत्वपूर्ण बिंदु को भी स्पष्ट किया कि क्षेत्रीय देशों के बीच एकता, संयुक्त धमकियों के मुक़ाबले में उनकी नीतियों के सुदृढ़ होने का कारण बनेगी। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी के साथ भेंट में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने पाकिस्तान की एकता पर बल देते हुए कहा कि अमरीका इस बात के प्रयास में है कि वह पाकिस्तान में मतभेद उत्पन्न करके अपने अवैध हितों की पूर्ति करे। वास्तव में क्षेत्र में अमरीका का सैनिक हस्तक्षेप चरमपंथ और आतंकवाद में विस्तार का कारण बना है जिसके परिणाम स्वरूप क्षेत्रीय देशों में एक दूसरे के प्रति अविश्वास की भावना पाई जाती है जिसे पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान तथा इराक़ और सीरिया के तनावपूर्ण संबन्धों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। अमरीका आतंकवाद की अवास्तविक परिभाषा प्रस्तुत करके जहां क्षेत्र में मतभेद फैलाना और संकट उत्पन्न करना चाहता हैं वहीं आतंकवाद को अच्छे और बुरे दो भागों में बांट कर आम जनमत के ध्यान को आतंकवाद के मुख्य कारकों से दिगभ्रमित करने के प्रयास में भी व्यस्त है।
(हिन्दी एरिब डाट आई आर के धन्यवाद के साथ)