हमारा अक़ीदह है कि अल्लाह इस पूरी कायनात का ख़ालिक़ है, सिर्फ़ हमारे वुजूद में,तमाम जानवरों में,नबातात में,आसमान के सितारों में,ऊपर की दुनिया में ही नही बल्कि हर जगह पर तमाम मौजूदाते आलम की पेशानी पर उसकी अज़मत,इल्म व क़ुदरत की निशानियाँ ज़ाहिर व आशकार हैं।
हमारा अक़ीदह है कि हम इस दुनिया के राज़ों के बारे में जितनी ज़्यादह फ़िक्र करेंगे उस ज़ाते पाक की अज़मत,उसके इल्म और उसकी क़ुदरत के बारे में उतनी ही ज़्यादह जानकारी हासिल होगी। जैसे जैसे इँसान का इल्म तरक़्क़ी कर रहा है वैसे वैसे हर रोज़ उसके इल्म व हिकमत हम पर ज़ाहिर होते जा रहे हैं, जिस से हमारी फ़िक्र में इज़ाफ़ा हो रहा है,यह फ़िक्र उसकी ज़ाते पाक से हमारे इश्क़ में इज़ाफ़े का सरचश्मा बनेगी और हर लम्हे हमको उस मुक़द्दस ज़ात से करीब से करीबतर करती रहेगी और उसके नूरे जलालो जमाल में गर्क़ करेगी।
क़ुरआने करीम फ़रमाता है कि “व फ़ी अलअर्ज़ि आयातुन लिल मुक़ीनीना * व फ़ी अनफ़ुसिकुम अफ़ला तुबसिरूना” यानी यक़ीन हासिल करने वालों के लिए ज़मीन में निशानियाँ मौजूद हैं और क्या तुम नही देखते कि ख़ुद तुम्हारे वुजूद में भी निशानियाँ पाई जाती हैं ?[1]
“इन्ना फ़ी ख़ल्क़ि अस्समावाति व अलअर्ज़ि व इख़्तिलाफ़ि अल्लैलि व अन्नहारि लआयातिन लिउलिल अलबाबि *अल्लज़ीना यज़कुरूना अल्लाहा क़ियामन व क़ुउदन व अला जुनुबिहिम व यतफ़क्करूना फ़ी ख़ल्कि अस्समावाति व अलअर्ज़ि रब्बना मा ख़लक़ता हाज़ा बातिला ”[2] यानी बेशक ज़मीन व आसमान की ख़िलक़त में और दिन रात के आने जाने में साहिबाने अक़्ल के लिए निशानियाँ है। उन साहिबाने अक़्ल के लिए जो खड़े हुए,बैठे हुए और करवँट से लेटे हुए अल्लाह का ज़िक्र करते हैं और ज़मीनों आसमान की ख़िलक़त के राज़ों के बारे में फ़िक्र करते हैं (और कहते हैं)ऐ पालने वाले तूने इन्हे बेहुदा ख़ल्क़ नही किया है।
[1] सूरए ज़ारियात आयत न. 20-21
[2] सूरए आलि इमरान आयत न. 190-191
source : http://al-shia.org