इन्हीं विशेषताओं और अच्छार्इयों में से निम्नलिखित बातें हैं
इस्लाम के नुसूस इस तत्व को बयान करने में स्पष्ट हैं कि अल्लाह के निकट धर्म केवल एक है और अल्लाह तआला ने नूह अलैहिस्सलाम से लेकर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तक सभी पैग़म्बरों को एक दूसरे का पूरक बनाकर भेजा, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ''मेरी मिसाल और मुझ से पहले पैग़म्बरों की मिसाल उस आदमी के समान है जिस ने एक घर बनाया और उसे संवारा और संपूर्ण किया, किन्तु उस के एक कोने में एक र्इंट की जगह छोड़ दी। इसलिए लोग उस का तवाफ -परिक्रमा- करने लगे और उस भवन पर आश्चर्य चकित होते और कहते: तुम ने एक र्इट यहाँ क्यों न रख दी कि तेरा भवन संपूर्ण हो जाता? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: तो वह र्इंट मैं ही हूँ, और मैं खातमुन्नबीर्इन (अनितम नबी) हूँ।'' (सहीह बुख़ारी 31300 हदीस नं: 3342)
किन्तु अनितम काल में र्इसा अलैहिस्सलाम उतरें गे और धरती को न्याय से भर देंगे जिस प्रकार कि यह अन्याय और अत्याचार से भरी हुर्इ है, परन्तु वह किसी नये धर्म के साथ नहीं आएं गे बलिक उसी इस्लाम धर्म के अनुसार लोगों में फैसला (शासन) करें गे जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर उतरा है, क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: ''क़ियामतक़ायम नहीं होगी यहाँ तक कि तुम्हारे बीच इब्ने मरयम न्यायपूर्ण न्यायाधीश बन कर उतरें गे, और सलीब को तोड़ें गे, सुवर को क़त्ल करें गे, जिज़्या को समाप्त करें गे, और माल की बाहुल्यता हो जाए गी यहाँ तक कि कोर्इ उसे स्वीकार नहीं करे गा।'' (सहीह बुख़ारी 2875 हदीस नं.:2344)
इसलिए सभी पैग़म्बरों की दावत अल्लाह सुब्हानहु व तआला की वह्दानियत (एकेश्वरवाद) और किसी भी साझीदार, समकक्ष और समांतर से उसे पवित्र समझने की ओर दावत देने पर एकमत है, तथा अल्लाह और उसके बन्दों के बीच बिना किसी माध्यम के सीधे उसकी उपासना करना, और मानव आत्मा को सभ्य बनाने और उसके सुधार और लोक-परलोक में उसके सौभाग्य की ओर रहनुमार्इ करना, अल्लाह तआला का फरमान है:
''उस ने तुम्हारे लिए धर्म का वही रास्ता निर्धारित किया है जिस को अपनाने का नूह को आदेश दिया था और जिसकी (ऐ मुहम्मद!) हम ने तुम्हारी ओर वह्य भेजी है और जिसका इब्राहीम, मूसा और र्इसा को आदेश दिया था (वह यह) कि धर्म को क़ायम रखना और उस में फूट न डालना।'' (सूरए-शुरा:13)
अल्लाह तआला ने इस्लाम के द्वारा पिछले सभी धर्मों को निरस्त कर दिया, अत: वह सब से अनितम धर्म और सब धर्मों का समापित कर्ता है, अल्लाह तआला इस बात को स्वीकार नहीं करे गा कि उसके सिवाय किसी अन्य धर्म के द्वारा उसकी उपासना की जाए, अल्लाह तआला का फरमान है:
''और हम ने आप की ओर सच्चार्इ से भरी यह किताब उतारी है, जो अपने से पहले किताबों की पुषिट करती है और उनकी मुहाफिज़ है।'' (सूरतुल मायदा: 48)
चूँकि इस्लाम सबसे अन्तिम आसमानी धर्म है, इसलिए अल्लाह तआला ने क़यामत के दिन तक इसकी सुरक्षा की जि़म्मेदारी उठार्इ, जबकि इस से पूर्व धर्मों का मामला इसके विपरीत था जिनकी सुरक्षा की जि़म्मेदारी अल्लाह तआला ने नहीं उठार्इ थी क्योंकि वे एक विशिष्ट समय और विशिष्ट समुदाय के लिए अवतरित किए गये थे, अल्लाह तआला का फरमान है:
''नि: सन्देह हम ने ही इस क़ुरआन को उतारा है और हम ही इसकी सुरक्षा करने वाले हैं।'' (सूरतुल हिज्र: 9)
इस आयत का तक़ाज़ा यह है कि इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अनितम पैग़म्बर हों जिनके बाद कोर्इ अन्य नबी व हज़रत पैग़म्बर न भेजा जाए, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है:
''मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तुम्हारे मर्दों में से किसी के बाप नहीं हैं, किन्तु आप अल्लाह के सन्देष्टा और खातमुल-अंबिया अनितम र्इश्दूत हैं।'' (सूर-ए-अहज़ाब:40)
इस का यह अर्थ नहीं है कि पिछले पैग़म्बरों और और किताबों की पुषिट न की जाए और उन पर र्इमान न रखा जाए। बलिक र्इसा अलैहिस्सलाम मूसा अलैहिस्सलाम के धर्म के पूरक हैं और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम र्इसा अलैहिस्सलाम के धर्म के पूरक हैं, और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर नबियों और रसूलों की कड़ी समाप्त हो गर्इ, और मुसलमान को आप से पहले के सभी पैग़म्बरों और किताबों पर र्इमान रखने का आदेश दिया गया है, अत: जो व्यकित उन पर या उन में से किसी एक पर र्इमान न रखे तो उसने कुफ्र किया और इस्लाम धर्म से बाहर निकल गया, अल्लाह तआला का फरमान है:
''जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों पर र्इमान नहीं रखते हैं और चाहते हैं कि अल्लाह और उसके रसूलों के बीच अलगाव करें और कहते हैं कि हम कुछ को मानते हैं और कुछ को नहीं मानते और इस के बीच रास्ता बनाना चाहते हैं। यक़ीन करो कि यह सभी लोग असली काफिर हैं।'' (सूर-ए-निसा: 150-151)की हदीस की सेवा में की जाने वाली प्रयासों की मात्रा का भी पता चल जाए।