अगर आप इस लेख को आत्मा या रूह से सम्बंधित मान रहे हैं तो ऐसा हरगिज नहीं है।
चूंकि मेरे सभी लेख साइंस से ही सम्बंधित हैं इसलिये मैं ऐसी कोई बात नहीं करूंगा जो साइंस के दायरे से बाहर हो। बल्कि मैं बात करने जा रहा हूं फिजिकल मौत की, जबकि इंसान में कोई हरकत बाकी नहीं रह जाती। इंसान को मौत कब आती है इस बारे में साइंस आज भी पूरी तरह इल्म नहीं रखती। यहाँ तक कि मौत की परिभाषा भी साइंस के अनुसार अधूरी है। साइंस के अनुसार मौत की परिभाषा ये है कि मौत किसी जिंदा चीज़ में जैविक प्रक्रियाओं के रुकने का नाम है। लेकिन यह देखा गया है कि जिस्म में कुछ जैविक प्रक्रियाएं मौत के बाद भी होती रहती हैं। जैसे कि बाल और नाखून का बढ़ना।
साइंस मौत के राज़ से अभी भी परदा नहीं उठा पायी है। मौत की पहचान जिस्म में मौजूद जिंदगी के कुछ लक्षणों के खत्म हो जाने से होती है जिन्हें वाइटल साइन (Vital Sign) कहते हैं। जिनमें दिमाग या दिल का काम करना शामिल है। हालांकि अक्सर दिल रुकने के बाद फिर चलता हुआ देखा गया है। और इसी तरह कोमा की हालत में दिमाग काम करना बन्द कर देता है। लेकिन उसके बाद भी कई लोगों को जिन्दा रहते हुए देखा गया है। कोमा की हालत में ब्रेन डेथ को पहचानने के लिये एक टेस्ट किया जाता है जिसे ऐप्निया (Apnoea) टेस्ट कहते हैं। इसमें मरीज़ को वेंटीलेटर पर रखकर दस मिनट तक फुल आक्सीज़न सप्लाई दी जाती है और फिर जिस्म से निकलने वाली कार्बन डाई आक्साइड का स्तर नापकर ब्रेन डेथ को पहचान लिया जाता है।
कुछ जगहों पर ब्रेन डेथ को मौत का कनफर्मेशन नहीं माना जाता। बल्कि दिल के रुकने को डेथ कनफर्मेशन माना जाता है। लेकिन दोनों ही लक्षणों को पूरा सटीक नहीं माना जाता। और जैसे जैसे मेडिकल साइंस तरक्की कर रही है मौत की परिभाषा और मुश्किल होती जा रही है।
अब आईए देखते हैं कि इस्लाम इस बारे में क्या कहता है।
मौत का जो आम कान्सेप्ट लोगों के बीच ज़ाहिर है वह है जिस्म से रूह या आत्मा का निकलना। जिस्म से जब रूह जुदा हो जाती है तो उसी वक्त इंसान मर जाता है और उसका बदन बेजान हो जाता है। लेकिन रूह कोई फिजिकल शय नहीं है और हम उसे महसूस नहीं कर सकते। इस्लाम भी यही कहता है कि रूह अल्लाह का हुक्म है। ज़ाहिर है कि साइंस का कोई एक्सपेरीमेन्ट न तो रूह को दिखा सकता है और न उसे महसूस करा सकता है। इसलिए साइंस कभी मौत की परिभाषा में रूह को शामिल नहीं कर सकती। दूसरी बात, रूह का इंसानों के लिये तो कान्सेप्ट है लेकिन जानवरों के लिये नहीं।
तो फिर हमें कोई ऐसी फिजिकल कण्डीशन दरियाफ्त करनी पड़ेगी जो साइंस के नज़रिये से काबिले कुबूल हो। इस तरह की कण्डीशन हमें मिलती है अपने ज़माने के महान इस्लामी दानिश्वर शेख सुद्दूक (अ.र.) की ग्यारह सौ साल पुरानी किताब एललुश-शराये में।
शेख सुद्दूक (अ.र.) की किताब एललुश-शराये में ‘मय्यत को गुस्ल क्यों देते हैं?’ का जवाब देते हुए इमामों की कुछ हदीसें पेश की गयी हैं।
इमाम हज़रत अली बिन हुसैन अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि कोई मखलूक उस वक्त तक नहीं
सेल का डिवीजन होता रहता है और इस तरह ये अपनी तादाद बढ़ाकर एक गुच्छे की शक्ल में आ जाते हैं। और गोश्त के टुकड़े की तरह दिखने लगते हैं। जिसे हम एम्ब्रायो (Embryo) नाम से पुकारते हैं। जैसे जैसे एम्ब्रायो का साइज़ बढ़ता है वैसे वैसे गर्भाशय का साइज़ भी बढ़ने लगता है। ताकि एम्ब्रायो पूरी सुरक्षा के साथ अपना विकास करता रहे। एक खास बात जो साइंस मालूम कर चुकी है वह एम्ब्रायो में मौजूद प्रिमिटिव स्ट्रीक (Primitive streak) के बारे में है। प्रिमिटिव स्ट्रीक एम्ब्रायो में चौदहवें दिन डेवलप होती है और यहीं से पूरी तरह फाइनल हो जाता है कि बच्चे में क्या क्या क्वालिटीज़ होंगी। प्रिमिटिव स्ट्रीक गैस्ट्रूलेशन (Gastrulation) की साइट को बताती है और मूल परतों (Germ Layers) के बनने की शुरूआत करती है। आम अलफाज़ में कहा जाये तो जिस तरह किसी खूबसूरत पेंटिंग को बनाने के लिये पहले उसका स्केच तैयार किया जाता है उसी तरह बच्चे के डेवलपमेन्ट से पहले प्रिमिटिव स्ट्रीक एक स्केच की तरह बन जाती है। अब इसी स्केच के ऊपर बच्चे के जिस्म के अलग अलग अंग तैयार होने शुरू होते हैं। जिन्हें तीन हिस्सों में बाँटा गया है। जिनके नाम क्रमशः एण्डोडर्म, मीज़ोडर्म तथा एक्टोडर्म हैं।
एण्डोडर्म से आगे फेफड़े, हाजमे का सिस्टम, लीवर, पैन्क्रियास, थायराइड इत्यादि बनते हैं।
मीज़ोडर्म से आगे हड्डियों का ढांचा, हड्डियों को गति देने वाली मसेल्स, दिल व सरक्यूलेटरी सिस्टम और स्किन का भीतरी हिस्सा बनता है।
एक्टोडर्म से आगे दिमाग व नर्वस सिस्टम, बाल, बाहरी स्किन वगैरा चीज़ें बनती हैं।
बच्चे का जिस्म जैसे जैसे बढ़ता है उसकी प्रिमिटिव स्ट्रीक उसके मुकाबले में महीन होती जाती है और एक बेकार की चीज़ लगने लगती है। लेकिन एक बात तय है कि यह प्रिमिटिव स्ट्रीक कभी भी जिस्म से अलग नहीं होती। और इसमें उस व्यक्ति के जिस्म का पूरा नक्शा स्टोर रहता है। इसी स्ट्रीक में वह नुत्फा या उसके लक्षण मौजूद होते हैं जो बच्चे के बाप से माँ के पेट में पहुंचा था। इससे नतीजा यही निकलता है कि इंसान जब तक कि वह जिन्दा है उसके जिस्म में प्रिमिटिव स्ट्रीक और उसके अन्दर नुत्फा मौजूद रहता है। और अगर यह नुत्फा किसी वजह से बाहर निकल जाये तो उसी वक्त इंसान की मौत हो जाती है। फिलहाल मेडिकल साइंस इस खोज तक नहीं पहुंच पायी है।
चूंकि प्रिमिटिव स्ट्रीक में उस व्यक्ति के जिस्म का पूरा नक्शा स्टोर रहता है। और अगर यह नक्शा वैज्ञानिक ढूंढने में कामयाब हो जायें तो उस इंसान के जिस्म को फिर से पैदा कर सकते हैं। तो अब हमें कुरआन की इन आयतों को झुठलाना नहीं चाहिए।
(बनी इस्राइल : 49-51) और ये लोग कहते हैं कि जब हम (मरने के बाद सड़ गल कर) हड्डियां रह जायेंगे और रेज़ा रेज़ा हो जायेंगे तो क्या नये सिरे से पैदा करके उठा खड़े किये जायेंगे? (ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम (मरने के बाद) चाहे पत्थर बन जाओ या लोहा या कोई और चीज़ जो तुम्हारे ख्याल में बड़ी (सख्त) हो और उसका जिन्दा होना दुश्वार हो तो वो भी ज़रूर जिन्दा होगी। तो ये लोग अनकरीब ही तुमसे पूछेंगे कि भला हमें दोबारा कौन जिन्दा करेगा तुम कह दो कि वही (खुदा) जिसने तुमको पहली मर्तबा पैदा किया।
(रोम : 19) वह जिन्दा को मुर्दे से निकालता है और मुर्दे को जिन्दा में से निकाल लाता है और ज़मीन को उस की मौत के बाद जिंदगी बख्शता है। उसी तरह तुम लोग भी (मौत की हालत से) निकाल लिये जाओगे
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