पुस्तक का नामः कुमैल की प्रार्थना का वर्णन
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारीयान
जिस सूर्य के कारण अधिकांश शक्ति प्राप्त होती है यह कुल्लो शैइन का एक छोटा सा नमूना है।
सूर्य की गर्मी इतनी अधिक है कि अत्यधिक भड़कती हुई अग्नि भी उसके सामने ठंडी है, सूर्य की गर्मी लगभग 6093 सेंटीग्रेट है और उसके भीतर की गर्मी तो इसकी तुलना मे और अधिक है।
सूर्य प्रत्येक सेकंण्ड मे 12400,000 टन अनर्जी वायु मे फैलाता है, यदि सूर्य के एक मिनट की गर्मी को कोयले द्वारा प्राप्त करना चाहे तो लगभग 679,000,000,00 टन कोयला जलाने की आवश्यकता होगी।
उस एक सैकंण्ड मे प्राप्त होने वाली सूर्य की शक्ति का भार लगभग 4000,000 टन होता है और यह मात्रा एक वर्ष मे लगभग 126,144,000,000,000 टन हो जाती है, यदि यह बात तय है कि जलती हुई आग का ईंधन समाप्त हो जाए तो अग्नि शांत हो जाती है, जब सूर्य कोई ईंधन नही लेता तथा प्रत्येक वर्ष इतनी अधिक मात्रा मे शक्ति ख़र्च करता है तो उसको समाप्त हो जाना चाहिए था?!! यदि सूर्य का निर्माण केवल कोयले से होता तो 600 वर्ष पश्चात समाप्त हो जाता।
प्रिय पाठको! इस प्रश्न का उत्तर केवल सिफते “जबारूत” के माध्यम से ही प्राप्त हो सकता है, उसने सूर्य को गैस के एक महान पर्वत के समान बनाया है जोकि गैस के सुकड़ने और फैलने के कारण अपनी खोई हुई शक्ति को दूबारा लौटा देता है।
यह बात उत्तर और दक्षिण के बड़े बड़े बुद्धिजीवियो की खोज का परिणाम है जिसके समबंध मे पुस्तक के हज़ारो पृष्ठ लिखे जा चुके है जो कि एक साधारण वाक्य मे हम तक पहुंचा है।
हा! वही जो चीज़ो की खोई हुई शक्ति एंव क्षमता को लौटाया करता है, तथा सूर्य की खोई हुई शक्ति को वापस पलटाना उसकी “जबारूती” विशेषता का एक उदाहरण है।