किसी भी इंसान की समाजी ज़िन्दगी में जो चीज़ सबसे ज़्यादा असर अंदाज़ होती है वह उस इंसान का माज़ी का किरदार है। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की एक ख़ासियत यह थी कि वह दुनिया के किसी भी मदर्से में पढ़ने के लिए नही गये। आपका किसी मदर्से में न पढ़ना इस बात का सबब बना कि जब आपने लोगों के सामने कुरआन की आयतों की तिलावत की तो वह ताज्जुब में पड़ गये और उनसे मुहब्बत करने लगे। अगर आप दुनिया के किसी मदर्से में पढ़े होते, तो लोग यही समझते कि यह इनकी मदर्से की तालीम का कमाल है।
आपकी दूसरी सिफ़त यह है कि आपने उस माहोल में, जिसमें कुछ लोगों को छोड़ कर, सभी बुतों के सामने सजदा करते थे, कभी किसी बुत के सामने सिर नही झुकाया। लिहाज़ जब आपने बुतों और बुत पूजने वालों की मुख़ालेफ़त की तो कोई आप से यह न कह सका कि आप हमें क्योँ मना कर रहे हों, आप भी तो कभी इनके सामने सिर झुकाते थे।
आपकी एक खासियत यह थी कि आपने मक्के जैसे शहर में, जवानी की पाक व पाकीज़ा ज़िंदगी गुज़ारी और किसी बुराई में नही पड़े। जबकि उन दिनों मक्का शहर बुराईयों का गढ़ था।
बेसत से पहले, आप मक्के में सादिक़, अमीन और आक़िल माने जाते थे। आप लोगों के दरमियान मुहम्मद अमीन के नाम से मशहूर थे। सदाक़त व अमानत में लोग, आप पर बहुत ज़्यादा भरोसा करते थे। बहुत से कामों में आपकी अक़्ल पर एतेमाद किया जाता था। अक़्ल, सदाक़त व आमानत आपके ऐसे सिफ़ात थे जिनमें आप बहुत मशहूर थे। यहाँ तक कि जब लोग आपको अज़ीयतें देने लगें और आपकी बातों का इंकार करने लगे, तो आपने लोगों से पूछा कि क्या तुमने आज तक मुझसे कोई झूट सुना है ? सबने कहा, नही, हम आपको सच्चा और अमानतदार मानते हैं।
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