मुस्लिम समाज विश्व का दूसरा सब से बड़ा धार्मिक समाज है जो डेढ़ अरब जनसंख्या के साथ विस्तृत हो रहा है। वर्तमान युग में और नये अंतर्राष्ट्रीय परिवर्तनों के दृष्टिगत, इस्लामी समाज के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में मुसलमान महिलाओं को समाज में अधिक प्रभावशाली व सार्थक भूमिका निभाने की आवश्यकता है। उनकी यह भूमिका, महिलाओं की राजनैतिक व सामाजिक गतिविधियों के नये मापदंडों का निर्धारण कर सकता है। इसी लिए किसी ऐसे आदर्श की आवश्यकता है जो समाज में उनकी भूमिका की सीमा को रेखांकित करे। इस्लाम में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा जैसी महान हस्ती की उपस्थिति, महिलाओं के बारे में इस्लाम के प्रगतिशील दृष्टिकोण की सूचक है। पैग़म्बरे इस्लाम ने, अपनी पुत्री हज़रत फ़ातेमा के जन्म के समय से ही उनके साथ अपने व्यवहार द्वारा व्यवहारिक रूप से महिलाओं के महत्व को दर्शाया और महिलाओं के बारे में उस समय अरब में प्रचलित विचाराधारा को ग़लत ठहराते हुए समाज में महिलाओं की भूमिका और सामाजिक व राजनैतिक स्तर पर उनके महत्व को स्पष्ट किया।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का जीवन एक ऐसे घर में आरंभ हुआ जो विभिन्न धारणाओं और अंधविश्वासों के विरुद्ध संघर्ष का केन्द्र था। उनके पिता पैग़म्बरे इस्लाम और पति हज़रत अली ने इस संघर्ष में अत्यधिक बलिदान दिये और इस पूरे समय में हज़रत फ़ातेमा उनके साथ रहीं जिससे उनकी सामाजिक भूमिका पूर्ण रूप से स्पष्ट हुई। वे एक ऐसे पिता की छत्रछाया में पली बढ़ी जो एक ईश्वरीय अभियान का अगुवा था इसी लिए बचपन से ही संघर्ष की कड़वाहट से वे परिचित हो गयी थीं और मक्के में जीवन विशेष कर शेबे अबूतालिब में बिताए गये तीन वर्षों के दौरान सभी कठिनाइयों को खुले मन से सहन किया जिससे भविष्य में अधिक बड़ी कठिनाइयों और समस्याओं का सामना करने के लिए वे अधिक तैयार हो गयीं।
जब पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने अभियान की घोषणा की तो उस समय उनके जीवन की रक्षा और उनकी सहायता, उन लोगों का सबसे बड़ा कर्तव्य था जिन्हें पैग़म्बरे इस्लाम की सत्यता पर विश्वास था और जिन लोगों ने उनका निमंत्रण स्वीकार किया था। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने अभियान की घोषणा से लेकर, मक्के से पलायन तक की अवधि में अत्यधिक कठिनाइयां और दुख सहन किये। क़ुरैश के सरदार, यहाँ तक कि पैग़म्बरे इस्लाम के कुछ चचा भी पैग़म्बरे इस्लाम को यातना देने पर लोगों को उसाते थे और स्वंय भी परोक्ष अपरोक्ष रूप से उन्हें सताने में संकोच नहीं करते थे। यह उस समय की बात है जब हज़रत फ़ातेमा बचपन के चरण में थीं।
कभी शत्रु पैग़म्बरे इस्लाम के सिर पर राख फेंक देते और जब वे अपने घर आते तो हज़रत फ़ातेमा आंसू भरी आंखों के साथ उनका सिर और मुख साफ़ करतीं किंतु उस समय भी पैग़म्बरे इस्लाम उन्हें संघर्ष जारी रखने और संयम का पाठ देते और कहते बेटी! दुखी मत हो और आंसू मत बहाओ क्योंकि ईश्वर तुम्हारे पिता का रक्षक है।
एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम मस्जिद में नमाज़ पढ़ रहे थे जब वे सजदे में गये तो कुछ शत्रुओं ने अबूजहल के चढ़ाने पर उन पर भेड़ की अंतड़ी फेंक दी। यह सूचना हज़रत फ़ातेमा तक भी पहुंची वे तेज़ी से मस्जिद आयीं और अपने छोटे छोटे हाथों से उसे पैग़म्बरे इस्लाम के ऊपर से हटाया और बड़ी वीरता से अबूजहल और उसके साथियों को डांटा। मक्के में पैग़म्बरे इस्लाम के विरुद्ध शत्रुओं की कार्यवाहियां दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थीं और हज़रत फ़ातेमा हर दिन, संघर्ष के नये नये आयामों से अवगत हो रही थीं यहां तक कि मक्का से पलायन का समय आ पहुंचा क्योंकि अब क़ुरैश के शत्रु, पैग़म्बरे इस्लाम और उनके अनुयाइयों को अत्यधिक यातना देने लगे थे। इस पलायन में ख़तरे भी थे। हज़रत फ़ातेमा ने दो अन्य महिलाओं के साथ, हज़रत अली अलैहिस्सलाम की अगुवाई में कड़ी धूप में मक्के और मदीने के मध्य फैले रेगिस्तान को पार किया। हज़रत फ़ातेमा, विवाह के बाद, इस्लाम की दूसरी सब से बड़ी हस्ती हज़रत अली अलैहिस्सलाम के घर आयीं। उन्हें इस्लाम और अपने पति की संवेदनशील स्थिति का भलीभांति ज्ञान था। वे ऐसे समय में हज़रत अली अलैहिस्सलाम की पत्नी बनीं जब इस्लामी सेना, हर समय सतर्क रहती थी; हर वर्ष कई युद्ध होते थे; और हज़रत अली इन युद्धों में पैग़म्बरे इस्लाम के साथ भाग लेते थे जिसके कारण वे अपने घर से महीनों दूर रहते। उनकी अनुस्पथिति में हज़रत फ़ातेमा अपने कर्तव्यों का भलीभांति पालन करतीं और उनके परिश्रम से हज़रत अली अलैहिस्सलाम भी भलीभांति अवगत थे और इससे उन्हें प्रोत्साहन मिलता था क्योंकि इस प्रकार से वह निश्चितं होकर युद्धों में भाग लेते। हज़रत फ़ातेमा को भली भांति ज्ञात था कि घर, शांति व सुख का स्थान होता है इसी लिए जब हज़रत अली युद्धों से थके हुए घर वापस आते तो हज़रत फ़ातेमा घर को इस प्रकार से तैयार रखतीं कि हज़रत अली को घर में शांति व सुख का आभास होता। इस प्रकार से हज़रत फ़ातेमा की शैली और व्यवहार से इस बात का पता चलता है कि घर में पत्नी का व्यवहार किस प्रकार से पति को संघर्ष व परिश्रम पर तैयार कर सकता है। हज़रत फ़ातेमा अपने घर की ज़िम्मेदारियां निभाने के साथ ही साथ युद्ध में मारे जाने वालों के परिजनों का भी ध्यान रखती थीं। कभी कभी तो महिलाओं का गुट बना कर युद्ध में घायलों की सहायता के लिए मोर्चे पर भी चली जातीं। ओहद नामक युद्ध में जब पैग़म्बरे इस्लाम घायल हो गये तो हज़रत फ़ातेमा वहां पहुंची और अपने पिता के मुख से रक्त साफ़ किया फिर पानी से उनके चेहरे को धोया। इसी प्रकार इतिहासकारों ने लिखा है कि हज़रत फ़ातेमा खंदक़ नामक युद्ध में पैग़म्बरे इस्लाम के पास एक रोटी लेकर गयीं जब उन्होंने पूछा यह क्या है? तो हज़रत फ़ातेमा ने कहाः हे पिता! मैंने रोटी पकायी तो मुझे आप की बड़ी याद आयी इस लिए यह आप के लिए ले आयी। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा बेटी पिछले तीन दिनों में यह पहली बार है जब मुझे खाने के जिउ कुछ मिल रहा है।
हज़रत फ़ातेमा का पूरा जीवन सत्य के लिए संघर्ष से भरा पड़ा है। इसी लिए पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद उन्होंने अपनी पूरी शक्ति से अपने पिता के अभियान की रक्षा की और लोगों को उन ख़तरों से अवगत कराया जो इस्लामी समाज के सामने थे। उनका संघर्ष लक्ष्यपूर्ण था और इस संघर्ष में उनका उद्देश्य न तो धन था न ही पद बल्कि उनकी एक ही इच्छा थी और यह कि इस्लाम, फेर बदल से सुरक्षित रहे और उसका रूप न बिगड़ने पाए। हज़रत फ़ातेमा का प्रयास था कि इस्लाम और लोगों के अधिकारों की रक्षा हो। स्वार्थ और घंमड पैग़म्बरे इस्लाम की महान पुत्री को छूकर भी नहीं गुज़रा था। हज़रत फ़ातेमा का यह प्रयास था कि ईश्वरीय नियमों और क़ुरआन की आयतों को फेर बदल से सुरक्षित रखा जाए और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने कई चरणों में प्रयास भी किये। विरोध से लेकर भाषण और जनता को उपदेश देने जैसे इस प्रकार के सभी प्रयासों के दौरान मानसिक दबाव और शारीरिक घावों के बावजूद सत्य पर उनका अडिग रहना किसी भी अन्य समय से अधिक स्पष्ट था और उनके इस व्यवहार तथा शैली से पैग़म्बरे इस्लाम के बाद इस्लामी समाज के मार्गदर्शन की शैली और ढंग को भी भलीभांति समझा जा सकता था।
हज़रत फ़ातेमा की जीवनी पर ध्यान देने से यह स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने बुद्धिमत्ता और सूझबूझ से शत्रु के विरुद्ध संघर्ष को, युग और स्थान की सीमाओं से बाहर तक पहुंचाया और यही कारण है कि वर्तमान यु्ग में भी हम देखते हैं कि किस प्रकार से मुसलमान महिलाएं हज़रत फ़ातेमा का अनुसरण करते हुए सामाजिक व राजनैतिक मंच पर मान्यताओं की रक्षा करते हुए संघर्ष करती हैं। ईरान की इस्लामी क्रांति में महिलाओं की इस प्रकार की उपस्थिति को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है जो बाद में पूरे विश्व की मुस्लिम महिलाओं के लिए आदर्श बनी। ईरानी महिलाओं ने हज़रत फ़ातेमा जैसे आदर्श के कारण ही इस्लामी क्रांति की सफलता और रचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में सफलता प्राप्त थी। ईरानी महिलाओं ने हज़रत फ़ातेमा के व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों की पहचान और संघर्ष की उनकी शैली की जानकारी के कारण इस्लामी क्रांति के उद्देश्यों की रक्षा की। इसी प्रकार हज़रत फ़ातेमा की जीवन से मिलने वाले पाठों के बल पर ही ईरानी महिलाओं ने सद्दाम और उसके घटकों द्वारा ईरान पर थोपे गये आठ वर्षीय युद्ध के दौरान शौर्य व वीरता की अभूतपूर्ण गाथा लिखी। ईरानी महिलाएं, युद्ध के लिए अपने घर के पुरुषों को प्रोत्साहन देती थीं जो वास्तव में उनकी धार्मिक भावनाओं और धर्म पर आस्था का परिणाम था। कभी कभी तो माताओं और पत्नियों का ठोस संकल्प पुरुषों को रणक्षेत्र में जाने पर तैयार कर देता। इस प्रकार से ईरान में आठ वर्षीय युद्ध के दौरान पुरुषों और अपनी संतान को प्रोत्साहित करने में ईरानी महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
इस समय भी विश्व के कोने कोने में महिलाएं आत्मविश्वास और इस्लामी पहचान की पुनः प्राप्ति की राह में संघर्ष कर रही हैं। अमरीका से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र न्यूयॉर्क टाइम्ज़ ने मुस्लिम महिलाओं की चेनता पर अपनी एक रिपोर्ट में लिखा हैः पूरे इस्लामी जगत में उत्तरी अफ़्रीक़ा से लेकर मध्यपूर्व और दक्षिण पूर्वी एशिया तक विभिन्न संस्कृतियां किंतु एक और शक्तिशाली धार्मिक आस्था से संबंध रखने वाली महिलाओं के गुट आंदोलनों को जन्म दे रहे हैं।
विश्व की मुसलमान महिलाएं, इस्लाम को सही प्रकार से पहचान कर और हज़रत फ़ातेमा जैसे आदर्शों की उपस्थिति के कारण समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अधिक सक्रिय रूप से भूमिका निभाने में सफल हो सकती हैं।
source : irib.ir