लेखक: आयतुल्लाह हुसैन अनसारियान
किताब का नाम: शरहे दुआ ए कुमैल
परमेश्वर की दया और अनुग्रह सभी जीवो के प्रति विशेष रूप से मनुष्य को सम्मिलित है और उसकी दया विस्तृत और उसका लुत्फ़, मेहेरबानी एवम करम सभी के लिए है। उसकी दरगाह निराशा, बुख्ल और बहिष्करण का स्थान नही है।
अनुग्रह, क्षमा, जूद और करम स्थायी है सबको देने के लिए उसका हाथ खुला और
ईश्वरदूत दाऊद को संबोधित करते हुए कहा:
(पृथ्वी पर रहने वालो को बताएँ मुझ से मित्रता क्यो नही करते जबकि मै मित्रता के योग्य (लायक़) हूँ ? मै ऐसा परमेश्वर हूँ कि मेरे यहा लोभ नही, ज्ञानी हूँ अज्ञान नही, धैर्य है विवश्ता नही, मेरी विशेषताओ एवम कथन मे परिवर्तन नही, मेरी कृपा समावेशी है, फ़ज़ल व करम से मुहँ से नही मोडता, अनंत काल (अज़ल) मे अपने ऊपर कृपा को आवश्यक किया, प्यार की पुनरावृत्ति को भसम किया, अपने दासो (बन्दो) के ह्रदयो मे ज्ञान का प्रकाश डाला, मै उसका मित्र हूँ जो मेरा मित्र है (मै अपने मित्र का मित्र हूँ), मै उसका साथी हूँ जो एकान्त (तनहाई) मे मुझे याद करता है, मै उसे याद रखता हूँ जो मुझे याद रखता है।
दाऊद, जो मुझे खोजता है, वह मुझे प्राप्त करलेता है, और जिसने मुझे पालिया वह इस के योग्य है कि मुझे नखोए।
दाऊद, हमारे आशीर्वादो का दूसरो से धन्यवाद करते है; बलाऔ का निपटान हम से है उसकी दुसरो से आशा करते है; शरण हमारे पास है उससे दूर भागते है और दूसरो की शरण प्राप्त करते है; अनंत: वापस आजाओगे।)[1]
जारी