हमारा अक़ीदह है कि अल्लाह आखोँ से हर गिज़ दिखाई नही देता, क्योँ कि आख़ोँ से दिखाई देने का मतलब यह है कि वह एक जिस्म है जिसको मकान, रंग, शक्ल और सिम्त की ज़रूरत होती है,यह तमाम सिफ़तें मख़लूक़ात की है,और अल्लाह इस से बरतरो बाला है कि उसमें मख़लूक़ात की सिफ़तें पाई जायें।
इस बिना पर अल्लाह को देखने का अक़ीदा एक तरह के शिर्क में मुलव्विस होना है। क्योँ कि क़ुरआन फ़रमाता है कि “ला तुदरिकुहु अलअबसारु व हुवा युदरिकु अलअबसारा व हुवा लतीफ़ु अलख़बीरु ” [1] यानी आँखें उसे नही देखता मगर वह सब आँखों को देखता है और वह बख़्श ने वाला और जान ने वाला है।
इसी वजह से जब बनी इस्राईल के बहाना बाज़ लोगों ने जनाबे मूसा अलैहिस्सलाम से अल्लाह को देखने का मुतालबा किया और कहा कि “लन नुमिना लका हत्ता नरा अल्लाहा जहरतन ”[2] यानी हम आप पर उस वक़्त तक ईमान नही लायेंगे जब तक खुले आम अल्लाह को न देख लें। हज़रत मूसा (अ.)उनको कोहे तूर पर ले गये और जब अल्लाह की बारगाह में उनके मुतालबे को दोहराया तो उनको यह जवाब मिला कि “लन तरानी व लाकिन उनज़ुर इला अलजबलि फ़इन्नि इस्तक़र्रा मकानहु फ़सौफ़ा तरानी फ़लम्मा तजल्ला रब्बुहु लिल जबलि जअलाहुदक्कन व ख़र्रा मूसा सइक़न फ़लम्मा अफ़ाक़ा क़ाला सुबहानका तुब्तु इलैका व अना अव्वलु अलमुमिनीनावल ”[3] यानी तुम मुझे हर गिज़ नही देख सकोगो लेकिन पहाड़ की तरफ़ निगाह करो अगर तुम अपनी हालत पर बाकी रहे तो मुझे देख पाओ गे और जब उनके रब ने पहाड़ पर जलवा किया तो उन्हें राख बना दिया और मूसा बेहोश हो कर ज़मीन पर गिर पड़े,जब होश आया तो अर्ज़ किया कि पालने वाले तू इस बात से मुनज़्ज़ा है कि तुझे आँखोँ से देखा जा सके मैं तेरी तरफ़ वापस पलटता हूँ और मैं ईमान लाने वालों में से पहला मोमिन हूँ। इस वाक़िये से साबित हो जाता है कि ख़ुदा वन्दे मुतआल को हर नही देखा जा सकता।
हमारा अक़ीदह है कि जिन आयात व इस्लामी रिवायात में अल्लाह को देखने का तज़केरह हुआ है वहाँ पर दिल की आँखों से देखना मुराद है, क्योँ कि कुरआन की आयते हमेशा एक दूसरी की तफ़्सीर करती हैं। “अल क़ुरआनु युफ़स्सिरु बअज़ुहु बअज़न ”[4]
इस के अलावा हज़रत अली अलैहिस्सलाम से एक शख़्स ने सवाल किया कि “या अमीरल मोमिनीना हल रअयता रब्बका ? ” यानी ऐ अमीनल मोमेनीन क्या आपने अपने रब को देखा है ?आपने फ़रमाया “आ अबुदु मा ला अरा ” यानी क्या मैं उसकी इबादत करता हूँ जिसको नही देखा ? इसके बाद फ़रमाया “ला तुदरिकुहु अलउयूनु बिमुशाहदति अलअयानि,व लाकिन तुदरिकुहु अलक़लूबु बिहक़ाइक़ि अलईमानि”[5]उसको आँखें तो ज़ाहिरी तौर परनही देख सकती मगर दिल ईमान की ताक़त से उसको दर्क करता है।
हमारा अक़ीदह है कि अल्लाह के लिए मख़लूक़ की सिफ़ात का क़ायल होना जैसे अल्लाह के लिए मकान,जहत, मुशाहिदह व जिस्मियत का अक़ीदह रखना अल्लाह की माअरफ़त से दूरी और शिर्क में आलूदह होने की वजह से है। वह तमाम मुकिनात और उनके सिफ़ात से बरतर है, कोई भी चीज़ उसके मिस्ल नही हो सकती।
[1] सूरए अनआम आयत न. 103
[2] सूरए बक़रह आयत न. 55
[3] सूरए आराफ़ आयत न. 143
[4]यह जुम्ला बहुत मशहूर है और यह इब्ने अब्बास से नक़्ल हुआ है,लेकिन यह मतलब नहजुल बलाग़ा के ख़ुत्बा न. 18 में हज़रत अली अलैहिस्सलाम से एक दूसरे तरीक़े से नक़्ल हुआ है “इन्न अलकिताबा युसद्दिक़ु बअज़ुहु बअज़न.....” और ख़ुत्बा न. 103 में बयान हुआ है कि “व यनतिक़ु बअज़ुहु बिबअज़िन व यशहदु बअज़ुहु अला बअज़िन ”
[5]नहजुल बलाग़ा ख़ुत्बा न.179
source : http://al-shia.org