पुस्तक का नामः पश्चताप दया का आलंगन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान
इस से पहले भाग मे कहा था कि वह आशा जो अपने से समबंधित साधनो एवं उपकरणो से ख़ाली हो तो वह व्यर्थ और बेकार की आशा है, यह आशा उस कृषक की आशा के समान है जिसने भूमि पर न कोई काम किया और न ही बीज रोपण किया। अक महत्वपूर्ण रिवायत मे इस प्रकार की आशा को नकारात्मक आशा बताया गया है। यह लेख उन लोगो से उनसे समबंधित है जो हर प्रकार के पाप मे संक्रमित होते है।
जो लोग हर प्रकार के पाप मे संक्रमित होते है तथा कहते है कि ईश्वर से दया, क्षमा और कृपा की आशा करते है और यह आशा उनकी मृत्यु तक रहती है, ऐसे व्यक्तियो के समबंध मे इमाम सादिक (अलैहिस्सलाम) -शिया समप्रदाय के छटे इमाम – से प्रश्न किया, तो इमाम सादिक (अ.स.) ने उत्तर दियाः ये इस प्रकार के लोग है कि जो तमन्नाओ मे गिरफ़्तार है न कि आशा करते है, यदि कोई व्यक्ति किसी चीज़ को प्राप्त करने का इच्छुक है, तो उसे प्राप्त करने हेतु आवश्यक प्रयत्न करता है, और जिस चीज़ से भयभीत होता है उस से दूर रहता है।[1]
इमाम सादिक (अ.स.) के कथन के अनुसार, ईश्वर से दया की आशा करना पापो को छोड़ना, अच्छे कर्म करना, अनैतिकता को त्यागने के साथ ईश्वर की दया और कृपा को आकर्षित करे, और नरक का भय तथा सज़ा के कारणो को अपने जीवन से समाप्त करे।
[1] عن أبي عبد الله (عليه السلام) قال : قلت له : قوم يعملون بالمعاصي و يقولون نرجو فلا يزالون كذلك حتى يأتيهم الموت . فقال : هؤلاء قوم يترجحون في الأماني كذبوا ليسوا براجين إن من رجا شيئا طلبه و من خاف من شيء هرب منه
अन अबिअब्दिल्लाह (अलैहिस्सलाम) क़ालाः क़ुलतो लहूः क़ोमुन यामलूना बिलमआसी व यक़ूलूना नरजू फ़ला यज़ालूना कज़ालिक हत्ता यातेयाहोमुल मौतो। फ़क़ालाः हाऊलाए क़ौमुन यतरज्जहूना फ़िल अमानी कज़्ज़बू लैसू बेराजीना इन मन रजआ शैआ तलबहू व मिन ख़ाफ़ा मिन शैइन हरबा मिनहो।
काफ़ी, भाग 2, पेज 68, खौफ तथा रजा का अध्याय, हदीस 5; तोहफ़ुल ओक़ूल, पेज 362; बिहारुल अनवार, भाग 67, पेज 357, अध्याय 59, हदीस 4