लेखक: आयतुल्लाह हुसैन अनसारियान
किताब का नाम: शरहे दुआ ए कुमैल
हे कुमैल, निश्चित रुप से भगवान ने अपने नबी (दूत) को, पैग़म्बर (ईश्वरीय दूत) ने मुझे साहित्य सिखाया और मै विश्वासियो को साहित्य सिखाता हूँ। मैने साहित्य को बड़ो के हेतु विरासत के रुप मे रख दिया है।
हे कुमैल, कोई ऐसा ज्ञान नही है जिसको मैने खोला नहो और कोई ऐसी वस्तु नही है, जिसका अंत इमाम क़ायम[१] (अ.स.) नकरे।
हे कुमैल, ईश्वरीय दूत तथा निर्दोष नेता (आइम्मए मासूमीन) सभी एक पीढ़ी और पवित्र वंशावली से है कि जो एक दूसरे से सम्बंधित है, परमात्मा श्रोता एंव अवगत है।
हे कुमैल, ज्ञान को मेरे अतिरिक्त किसी दूसरे से प्राप्त नकरो, ताकि हम मे तुम्हारी गणना हो।
हे कुमैल, तुम्हारा प्रत्येक कार्य को अनुभूति की आवश्यकता है (इस आधार पर प्रत्येक कार्य मे ज्ञान तथा अनुभुति के साथ प्रवेश करो)
हे कुमैल, भोजन करते समय (बिस्मिल्लाह) कहो ताकि बिस्मिल्ला कहने से कोई वस्तु (भोजन) हानि नपहुचाए तथा परमात्मा के नाम से प्रत्येक दर्द का निवारण है।
जारी