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कुमैल को अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) की वसीयत 9

  • प्रकाशन तिथि:   2013-01-23 23:37:09
  • दृश्यों की संख्या:   158

पुस्तक का नामः दुआए कुमैल का वर्णन

लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान

 

हे कुमैल, विलायत तथा मित्रता के माध्यम से स्वयं को बचाओ ताकि शैतान तुम्हारे धन एवं संतान मे भाग न ले।

हे कुमैल, तुम्हारे पाप निश्चित रूप से पुण्यो से अधिक, परमात्मा के प्रति लापरवाही लगन से अधिक, तथा परमात्मा की अशीष तुम्हारे कार्यो से अधिक है।

हे कुमैल, तुम ईश्वर की आशीष से बाहर नही हो, जबकि तुम को आफ़ीयत प्रदान की है (अर्थात यह सभी अशीषे ईश्वर की आफ़ीयत है) इस आधार पर किसी भी समय ईश्वर की प्रशन्सा, उसके धन्यवाद (शुक्र) करने मे तथा उसको पवित्र जानने मे और उसको याद करने मे लापरवाही न करो।

हे कुमैल, प्रयत्न करो कि तुम उन व्यक्तियो मे से न हो जिनके संमबंध मे ईश्वर कहता हैः (उन्होने ईश्वर को भुला दिया है, तो ईश्वर ने स्वयं उनको भुला दिया[१]) उनकी ओर विश्वासघात का संकेत किया गया है बस वो लोग विश्वासघाती है।

जारी



[१]  نَسُوا أللہَ فَأنسَاھُم أنفُسَھُم أُولَئِکَ ھُمُ الفَاسِقُونَ

नसुल्लाहा फ़अनसाहुम अनफ़ोसहुम ऊलाएका होमुल फ़ासेक़ून (सुरए हश्र 59, छंद 19)

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