पुस्तक का नामः पश्चताप दया का आलंगन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान
अहलेबैत (अलैहेमुस्सलाम) की शिक्षाओ तथा क़ुरआन के छंदो द्वारा जब यह स्पषट हो गया कि प्रकट एवं गुप्त, बाहरी और आंतरिक पाप बीमारी के अलावा कुच्छ नही है तथा यह रोग उपचार योग्य है, और ईश्वर की क्षमा एवं दया के अधीन हो सकते है, पापी (दोषी) को हर प्रकार से रोग के उपचार हेतु इस घातक स्थान से बाहर आना चाहिए, तथा निसंदेह क्षमा, दया एवं कृपा के अधीन होने की आशा रखे, और ईश्वर की दया से प्रोत्साहित होकर इस सकारात्मक आशा पर भरोसा करे, सच्ची पश्चाताप और वापसी, प्रेमपूर्ण सुलह, सभी अतीत के पापो की क्षतिपूर्ति, रोग का उपचार करे तथा दिवालियापन से छुटकारा प्राप्त करे, क्योकि ऐसा करना उसकी शक्ति से बाहर नही है, और इसके अतिरिक्त पश्चाताप और बीमारी के इलाज तथा छूटे हुए वाजिब को उपलब्ध कराने का प्रयास करे, निराशा हताशा तथा अस्वस्थता, शैतानी तथा विचलनी नारे बाज़ी अवैध एवं नास्तिकता के समान है।
وَلاَ تَيْأَسُوا مِن رَّوْحِ اللَّهِ إِنَّهُ لاَ يَيْأَسُ مِن رَوْحِ اللَّهِ إِلاَّ الْقَوْمُ الْكَافِرُونَ
वला तैअसू मिर्रुहिल्लाहे इन्नहू ला ययअसो मिन रोहिल्लाहे इल्ललक़ौमुल काफ़ेरून[1]
ईश्वर की दया से निराश न हो, नास्तिक व्यक्ति को छोड़कर कोई भी ईश्वर की दया से निराश नही होता।
जारी