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काबे के पालनहार की सौगंध मैं सफल हो गया-हज़रत अली (अ)

काबे के पालनहार की सौगंध मैं सफल हो गया-हज़रत अली (अ)

उस निर्धारित रात में नैतिक गुणों के बादशाह हज़रत अली अलैहिस्सलाम रह रह कर अपने कमरे से बाहर निकलते और आकाश को देखते थे। कभी पापों की क्षमा-याचना का स्मरण करते तो कभी सूरए यासीन की तिलावत करते। उस दिन हज़रत अली की उपासना दूसरी रातों से भिन्न थी। उस रात हज़रत अली कहते थेः अल्लाहुम्मा बारिक लिय अलमौत अर्थात ईश्वर मृत्यु को मेरे लिए भाग्यवान बना

सत्य के इच्छुक लोगों के अगुवा सुबह की नमाज़ के लिए जाने की तय्यारी में हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम तेज़ी से मस्जिद की ओर बढ़ते हैं। मस्जिद में पहुंचते और अंधेरे में कुछ रकअत नमाज़ पढ़ते हैं और फिर मस्जिद की छत पर जाकर अज़ान देते हैं। वह अज़ान कि ईमान व सदाचारिता से भरे स्वर ने जिसकी शोभा बढ़ा दी है।

हज़रत अली अब नमाज़ के लिए खड़े हैं किन्तु इस नमाज़ की अवस्था बिल्कुल ही अलग है। निर्धारित क्षण आ पहुंचता है। संसार का सबसे दुष्ट व्यक्ति इब्ने मुलजिम मुरादी जो रुढ़िवाद की सभी सीमाओं को पार कर चुका है, हज़रत अली के निकट पहुंच कर विष में बुझी अपनी तलवार को उनके पवित्र सिर पर इतनी ज़ोर से मारता है कि वह माथे तक उतर जाती है। ऐसा प्रहार जिससे इस्लामी जगत हज़रत अली के पवित्र अस्तित्व से वंचित और पूरी मानवता इस महान मार्गदर्शक के शोक में शोकाकुल हो जाती है।

उन शुद्ध क्षणों में कि जब हज़रत अली ईश्वर की याद में लीन थे, ख़ून में नहा कर इस संसार से मुक्ति का मज़ा चखते हैं। अब वे अति दुष्ट लोगों द्वारा पहुंचाए जा रहे दुख से मुक्त हो गए थे। उन्हें दिया गया वचन पूरा हो गया था। संसार के सबसे दुष्ट व्यक्ति के प्रहार के पश्चात अपने सिर को उठाया और आकाश की ओर देखते हुए ज़ोर से कहाः काबे के पालनहार की सौगंध मुझे मुक्ति मिल गयी।

आश्चर्य की बात यह है कि इब्ने मुल्जिम की सत्य विरोधी तलवार के सिर पर लगने के पश्चात ईश्वरीय संदेश वही लाने वाले फ़रिश्ते ने इस स्थिति में कि अभी हज़रत अली अलैहिस्सलाम जीवित थे, उनकी शहादत की घोषणा की और आकाशों में फ़रिश्ते रोने पीटने लगे। काली आंधियां चलने लगीं और हज़रत जिबरईल निरंतर चिल्ला कर यह कह रहे थेः ईश्वर की सौगंध मार्गदर्शन के स्तंभ गिर गए। ईश्वर की सौगंध आकाश के तारों पर धुंधियारी छा गयी। ईश्वर से भय के चिन्ह गिरा दिए गए। महान पैग़म्बर के चचेरे भाई और उनके द्वारा चुने गए सच्चे उत्तराधिकरी अली मुर्तज़ा की हत्या कर दी गयी।

संपूर्ण मनुष्य के नमूने व इस्लाम की महान हस्ती हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत की बरसी पर सत्य के खोजी न न्याय के इच्छुक सभी लोगों की सेवा में संवेदना व्यक्त करते हैं।

वर्षों नहीं बल्कि शताब्दियों से विद्वान, बुद्धिजीवी और शोधकर्ता हज़रत अली के बारे में कहते व लिखते आ रहे हैं। उनकी प्रशंसा में शेर कविताएं कही हैं। यह अकेली हस्ती है जिसका जन्म पवित्र काबे में हुआ और उसी समय से उन्होंने ईश्वर की प्रशंसा व स्तुति शुरु की। वे इस्लाम पर ईमान लाने वाले पहले पुरुष और नमाज़ में पैग़म्बरे इस्लाम का सबसे पहले अनुसरण करने वाले थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम दस वर्ष की आयु में पैग़म्बरे पैग़म्बरे इस्लाम के साथ मक्के के बाहर मरुस्थल में जाना और लोगों की दृष्टि से दूर अनन्य ईश्वर की उपासना करना आरंभ कर दिया था यहां तक कि ईश्वर की उपासना नमाज़ की स्थिति में मस्जिद में शहीद हो गए। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सभी गुणों को एक वाक्य में इस प्रकार व्यक्त करते हैः अली ईश्वर के प्रेम में लीन व व्याकुल हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने एक और स्थान पर अपना उत्तराधिकारी हज़रत अली के ईमान की इन शब्दों में प्रशंसा की हैः यदि सभी आकाश व धरती तराज़ू के एक पलड़े में और अली के ईमान को दूसरे पलड़े में रखा जाए तो अली का पलड़ा भारी रहेगा।

सुन्नी समुदाय के प्रसिद्ध धर्मगुरु व इतिहासकार इब्ने अबिल हदीद हज़रत अली की उपासना की इन शब्दों में प्रशंसा करता हैः वह सबसे अधिक उपासना करने वाले थे, सबसे अधिक नमाज़ पढ़ते और रोज़ा रखते थे। लोगों ने नाफ़ेला और मध्यरात्रि के बाद की विशेष नमाज़ पढ़ना उनसे सीखा। उस हस्ती के बारे में आपका क्या विचार है जिसके माथे पर घट्टे पड़ गए थे। जितना अधिक आप उनकी प्रार्थनाओं पर चिंतन करेंगे और पवित्र ईश्वर के सम्मान, उसके रोब के सामने बेबसी और उसकी प्रतिष्ठा के सामने दीनता पर आधारित उसकी विषय वस्तु तथा ईश्वर के सामने उनके आत्मसमर्पण से अवगत होंगे उतना ही आपको उनके कर्म की शुद्धता की पहचान प्राप्त होगी। उस समय यह समझ में आएगा कि ये उपासना किसी मन और किस ज़बान से अदा की गयी हैं।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम का जोश, उनकी उपासना, न्याय की स्थापना व सत्य की प्राप्ति के लिए उनके समस्त प्रयास का स्रोत ईश्वर की पहचान है। उन्हें आत्मपहचान हुयी जिसकी छत्रछाया में उन्होंने सबसे अधिक लाभदायक पहचान अर्थात ईश्वर की पहचान प्राप्त की। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैः संसार अपनी समस्त धूम-धाम के साथ मनुष्य के योग्य नहीं है और मनुष्य का स्थान इससे कहीं ऊंचा है कि वह अपने आप को इस संसार के हाथों बेच दे क्योंकि इस संसार से असली गंतव्य तक पहुंचने के माध्यम के रूप में लाभ उठाना चाहिए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम आत्म पहचान, ईश्वर की पहचान और सृष्टि की पहचान के साथ कहते हैः मैंने कोई ऐसी चीज़ नहीं देखी कि जिसके पहले, जिसके बाद और जिसके साथ ईश्वर को न देखा हो। अंतर्दृष्टि

सृष्टि की ऐसी पहचान के कारण हज़रत अली लंबे समय तक उपासना व प्रार्थना किया करते थे। ऐसी प्रार्थना जो ज्ञान व ईश्वर से प्रेम में डूबी हुयी है। ईश्वर की याद में डूबी हुयी ये प्रार्थनाएं ज़मीन के विकास, ईश्वर के मार्ग में संघर्ष, पीड़ित को अधिकार को दिलाने के लिए दृढ़ता, न्याय पर आधारित अद्वितीय प्रशासन की स्थापना के उनके प्रयास में बाधा नहीं बनतीं। बल्कि वे इन सबको बहुत मूल्यवान उपासना मानते हैं। वे हर क्षण ईश्वर की याद से अचेत नहीं रहते थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के भाषणों व कथनो पर आधारित किताब नहजुल बलाग़ा में ईश्वर से भय रखने वालों की शुद्ध उपासना के रहस्य को यूं बयान करते हैः उन्होंने ईश्वर की पहचान की मिठास को चखा और उसकी श्रद्धा भरे जाम से तृप्त हुए कि जिसके परिणाम में उन्होंने उसका आज्ञापानन व बंदगी की यहां तक कि उनकी कमर झुक गयी है।

हज़रत अली प्रार्थना को बंदगी के सबसे सुदंर रूप में पेश करते हैं। वे नहजुल बलाग़ा के भाषण क्रमांक 234 में उपासना के प्रभाव के बारे में कहते हैः जब व्यक्ति नैतिक बुराइयों व मानसिक रोगों का शिकार होता है तो ईश्वर अपने मोमिन बंदे की नमाज़, रोज़े और ज़कात के माध्यम से इन समस्याओं से बचाता है। ये उपासनाएं हैं जो हाथ-पैर को पाप से रोकती हैं, आंखों को सांसारिक चकाचौंध से बचाती है बल्कि उसमें बंदगी का भाव लाती है, आत्मा को राम करती है, हृदय में विनम्रता लाती है। ईश्वर की याद मनुष्य के मन में धार्मिक चेतना जगाती है। सदकर्मों के प्रति रुचि बढ़ती है और बुराई, पाप व भ्रष्टाचार की ओर रुझान को कम करती है।

एक बार एक युद्ध में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पैर में तीर लग गया। वह तीर पैर की हड्डी तक पहुंच गया था जिससे हज़रत अली को बहुत पीड़ा होती थी। चिकित्सकों ने जितना प्रयास किया किन्तु वे उस तीर को नहीं निकाल सके। एक चिकित्सक ने कहा कि जब तक मांस और त्वचा को नहीं चीरा जाएगा तीर नहीं निकल सकता। हज़रत अली के निकटवर्तियों में से कुछ लोगों ने जिन्हें हज़रत अली अलैहिस्सलाम की विशेषताओं की पहचान थी और वे जानते थे कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम किस सीमा तक ईश्वर की उपासना में लीन हो जाते हैं कहाः यदि ऐसा है तो इतना धैर्य रखिए कि अली नमाज़ पढ़ने लगें उस समय तीर को निकालिए क्योंकि वे नमाज़ में ईश्वर की याद में इस प्रकार लीन हो जाते हैं मानो इस संसार में नहीं हैं। कुछ घंटों के पश्चात नमाज़ का समय आ पहुंचा। उस समय हज़रत अली अलैहिस्सलाम ईश्वर की उपासना में लीन हो गए। चिकित्सक ने हज़रत अली के शरीर से तीर को निकाला और उसे हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ओर से किसी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त न किए जाने पर आश्चर्य हुआ।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की प्रसिद्ध दुआओं में से एक दुआए कुमैल है। इस दुआ में हज़रत अली के मन में ईश्वर की पहचान गहराई व उसके प्रति समर्पण को किसी सीमा तक समझा जा सकता है। हज़रत अली जैसी महान हस्ती ईश्वर के सामने स्वयं को मामूली समझती  और उसकी कृपा को पूरे अस्तित्व के लिए आवश्यक समझती थी। जैसा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैः हे पूज्य, मेरे मालिक! हे पालनहार, तेरी अनन्यता को मानने, तुझे सच्चे मन से स्वीकार करने और तेरी बारगाह में मेरी विनीत प्रार्थना के पश्चात क्या संभव है कि तू मुझे नरक व उपेक्षा की आग से जलाए। कदापि ऐसा नहीं है। तू इससे कहीं बड़ा है कि जिसे तूने पाला है उसे तबाह कर दे। या जिसे तूने अपने निकट किया हो, उसे भगा दे। या जिसे स्थान दिया है उससे छीन ले। या जिसकी तून सहायता की और जिसे अपनी कृपा का पात्र बनाया, उसे विपत्ति के हवाले कर दे।

महापुरुष व परिपूर्णतः तक पहुंचने वाले व्यक्ति सभी नैतिक व मानवीय गुणों से संपन्न होते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का व्यवहार व बातचीत सत्य पर आधारित है और हर बुराइयों का दूर है। सीधे मार्ग के पथिक के रूप में हज़रत अली सभी नैतिक गुणों के प्रतीक हैं। उन्होंने सत्य को पहचाना और अपनी आयु के सभी क्षण सत्य के साथ गुज़ारे और जो कुछ कहते थे उस पर अमल करते थे।

अंततः ईश्वर का यह इरादा कि हज़रत अली (अ) की शहादत उनकी महानता का कारण बने। यद्यपि उनकी शहादत के कारण न्याय ने अपने ईमानदार व मज़बूत ध्वजवाहक को खो दिया किन्तु हज़रत अली का ख़ून, न्याय के इच्छुक मानव समाज की नसों में दौड़ रहा है और न्याय की प्राप्ति का ध्वज अभी भी फहरा रहा है। बंदगी व समर्पण के प्रतीक हज़रत अली की शहादत पर एक बार फिर आपकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं।


source : irib.ir
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