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इमाम हुसैन अ. की इबादत

इब्ने सब्बाग़ मालिकी बयान करते हैं कि "जब इमाम हुसैन अ. नमाज के लिए खड़े होते थे तो आपका रंग पीला पड़ जाता था। आपसे पूछा गया कि नमाज के समय ऐसा क्यों होता है? तो आपने कहा: तुम्हें नहीं पता कि मैं किस महान हस्ती के सामने खड़ा हो रहा हूँ!!!
इमाम हुसैन अ. की इबादत

 इब्ने सब्बाग़ मालिकी बयान करते हैं कि "जब इमाम हुसैन अ. नमाज के लिए खड़े होते थे तो आपका रंग पीला पड़ जाता था। आपसे पूछा गया कि नमाज के समय ऐसा क्यों होता है? तो आपने कहा: तुम्हें नहीं पता कि मैं किस महान हस्ती के सामने खड़ा हो रहा हूँ!!!

इमाम हुसैन अ. की इबादत

1.    इब्ने सब्बाग़ मालिकी बयान करते हैं कि "जब इमाम हुसैन अ. नमाज के लिए खड़े होते थे तो आपका रंग पीला पड़ जाता था। आपसे पूछा गया कि नमाज के समय ऐसा क्यों होता है? तो आपने कहा: तुम्हें नहीं पता कि मैं किस महान हस्ती के सामने खड़ा हो रहा हूँ!!!

(अल-फ़ुसूलुल मुहिम्मा पेज 183)

2.    ज़मख़्शरी लिखते हैं कि "हुसैन इब्ने अली अ. को लोगों ने काबे का तवाफ़ करते देखा आप मक़ामे इस्माइल की तरफ़ गए, नमाज़ पढ़ने के बाद आपने मक़ामे इस्माइल पर अपना मुँह रख कर रोना शुरू कर दिया। आप रोते जाते और कहते जाते थे "परवरदिगार! तेरा नाचार बंदा तेरे दरवाज़े पर आया है। तेरा सेवक तेरे दरवाज़े पर है, एक भिखारी तेरे दरवाज़े पर आया है, इन वाक्यों को बार बार दोहराते हुए आप ख़ान-ए-काबा से बाहर चले गए। रास्ते में आपकी निगाह उन गरीबों व फ़क़ीरों पर पड़ी जो रोटी के टुकड़े खाने में व्यस्त थे। हज़रत ने उन लोगों को सलाम किया। उन्होंने आपको अपने साथ खाने की दावत दी।

आप उनके साथ बैठ गए और कहा अगर यह सदक़े (दान) की रोटियाँ न होतीं तो मैं तुम्हारा साथ जरूर देता है और आपने कहा "उठो और मेरे घर चलो तब आपने उन्हें खाना और कपड़ा दिया। (रबीइव अबरार पेज 210)

3.    अब्दुल्लाह इब्ने उबैद इब्ने उमैर कहते हैं कि "हुसैन इब्ने अली अ. ने पच्चीस हज पैदल चल के अंजाम दिए हालांकि आपके बेहतरीन घोड़े आपके साथ चलते थे।" (सिफ़तुस सिफ़वा भाग 1 पेज 321)

4.    इब्ने अब्दुल बिर्र कहते हैं कि "हुसैन अ. सज्जन और दीनदार थे, नमाज़, रोज़ा और हज बहुत ज़्यादा अंजाम देते थे" (अल इस्तीआब भाग 1 पेज 393)

5.    तबरी ने ज़ह्हाक इब्ने अब्दुल्लाह मशरक़ी के हवाले से लिखा है कि जब करबला में 9 मुहर्रम को रात हुई तो हुसैन और उनके साथियों ने पूरी रात रोते हुए और गिड़गिड़ाते हुए नमाज़, इबादत, तौबा और दुआ में गुज़ारी।" (तारीख़े तबरी भाग 5 पेज 421)


source : wilayat.in
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