पुस्तक का नामः कुमैल की प्रार्थना का वर्णन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान
रहीम शब्द अर्बी विद्वानो के अनुसार सिफ़ते मुश्ब्बाह है, इस आधार पर सदैव रहीम होने को दर्शाती है, अर्थातः ऐसा ईश्वर जिसकी दया और कृपा निरंतर तथा स्थिर है।
आस्था रखने वाले लोगो का कहना है कीः रहमते रहीमिया विशेष रूप से आस्तिक (मोमिन) और इमान वालो के लिए है जो कि मार्ग दर्शन को स्वीकारने तथा ईश्वर के वैध और अवैध (हलाल और हराम) का पालन करने, अचछे कर्मो तथा नैतिक स्वभाव से आभूषित होने तथा आशीष प्राप्ती पर आभार व्यक्त करने के कारण इस योग्य हुए है।
इसलामी दस्तावेज़ात (आसारो) मे आया हैः
रहमते रहमानिया का अर्थ (सार्वजनिक रूप से सभी प्राणियो और मनुष्यो - चाहे वह मनुष्य अच्छे हो अथवा बुरे चाहे आस्तिक हो अथवा नास्तिक - को अजीविका का प्रावधान करना) है, और रहमते रहीमिया का अर्थ (मानव जाति को आध्यात्मिक कमालात का प्रदान करना) तथा (लोक एंव परलोक मे आस्तिको को क्षमा करना)।
रहमानियत और रहीमियत मे आफ़ियत का अर्थ निहित है, एक दुनयावी आफ़ियत और दूसरे परलोक की आफ़ियत। रहमते रहिमिया पूजा और अच्छे कर्मो के स्वीकर होने के कारण पक्षधरो (आज्ञाकारियो) को, बुराई को क्षमा और लुप्त होने के कारण आस्था रखने वाले विद्रोहीयो को सम्मिलित (शामिल) करती है। सामाजिक और अच्छे कर्मचारियो दासता के कारण दया एंव कृपा की प्रतीक्षा मे है, बुरे और दुष्ट लोग आवश्यकताओ मुफ़लिसि दुर्गति तथा शर्मिंदगी के कारण इस उपहार की आशा लगाए है।
जारी