पुस्तक का नामः कुमैल की प्रार्थना का वर्णन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान
आपने इस के पूर्व लेख मे इस बात का पठन किया होगा कि कि जब तक महबूब ना चाहे उस समय तक प्रार्थना करने वाले की अर्जी सम्भव नही है, तथा जब तक ईश्वर ना चाहे तो उसका सेवक (बंदा) प्रार्थना करके अपनी आवश्यकता को पूरा कराने की विनती के लिए उसके पास नही जाता है, तथा दुआ उसकी शिक्षा है। दुआ करने वाले का जीवन उसी के आदेश से है। प्रार्थना करने वाली की जबान और हालत उसी के इरादे से है, बस सभी कार्य उसी की समंपत्ति सत्ता तथा प्रभुत्व मे है। अब इस लेख मे आप इसका अध्ययन करेगे कि (अल्लाहुम्मा इन्नी असअलोका) तथा (बेराहमतेकल लति वसेअत कुल्लो शैएन) का अर्थ क्या है।
(इन्नी असअलोका) इन्नी का अर्थ है मै (हेकड़ी), परन्तु यहाँ पर हेकड़ी फ़िरऔनियत की गंध देने वाले अर्थ मे नही है। इस मलाकूती संस्करण तथा दुआ के दूसरे वाक्यो मे प्राकृतिक, रेशनल, उच्चस्तरी, अस्तित्वि एवं स्वतंत्री हेकड़ी की ओर संकेत नही करते है, इस आध्यात्मिक स्थान मे हेकड़ी निहित गरीबी, बेचारगी, आवश्यकता एवं खाकसारी का अर्थ रखती है।
इस स्थान पर प्रार्थी (दुआ करने वाला) अपनी निहित हेकड़ी से गरीबी और अपवर्तन, ज़िल्लत और बेचारगी, बिनती और विलाप, विनम्रता और विनयशीलता तथा अपमान के अतिरिक्त कुच्छ नही देखता, और हज़रते महबूब की कृपा और दया, अनुग्रह और मोहब्बत, उपकार और न्याय तथा माफ़ी और क्षमा के अलावा निगाह नही करता, इसीलिए जरूरतमंद व्यक्ति का बिनियाज़ से आवेदन करना, तथा नाचीज़ और ख़ाकनशीन का निहित धनि एंव उच्च स्थान रखने वाला से मांगना एवं विनती करता है, तथा उसकी फ़ैली हुई दया एवं कृपा से सहायता प्रदान करने का इज़हार करता है।
(बेराहमतेकल लति वसेअत कुल्लो शैएन) महबूब (ईश्वर) की दया एवं कृपा ने सभी चीज़ो को अपनी चपेट मे ले रखा है तथा सभी चीज़ो की भीतरी और बाहरी सतह को घेर रखा है।