वहाबी समुदाय का वैचारिक संस्थापक इब्ने तैमिया एकेश्वरवाद के संबंध में विभिन्न आस्था रखता है जो कभी तो मुसलमानों की आस्थाओं से भिन्न होती है और कभी विरोधाभास रखती है। ईश्वर के बारे में उसके विचारों में से एक उसने ईश्वर को धरती के अन्य जीवों की भांति चलता फिरता और गतिशील बताया है और उसका मानना है कि ईश्वर एक स्थान से दूसरे स्थान चलता रहता है। आसमान से उतरना और चढ़ना और आकाश पर चलना तथा विभिन्न प्रकार के सिहांसनों पर बैठना, अनन्य ईश्वर के बारे में इब्ने तैमिया की रोचक बातों में से है। इब्ने तैमिया मिनहाजुस्सुन्ना नामक पुस्तक में लिखता है कि ईश्वर हर रात में आकाश से ज़मीन पर उतरता है और अरफ़े की रात में धरती से बहुत निकट हो जाता है ताकि अपने बंदों की आवाज़ सुने और निकट से उसे स्वीकार करे। ईश्वर पहले आसमान पर आकर पुकारता है कि कोई है जो मुझे पुकारे और मैं उसकी दुआओं को स्वीकार करूं।
वहाबी समुदाय के आधार पर इसी प्रकार ईश्वर के लिए विभिन्न अवसरों पर भिन्न सिंहासनों व कुर्सियों को दृष्टिगत रखा गया है। मजमूउल फ़तावा नाम पुस्तक में इब्ने तैमिया के प्रसिद्ध शिष्य इब्ने क़ैय्यिम जौज़ी के हवाले से बयान हुआ है कि हर आसमान पर ईश्वर के लिए एक सिंहासन है, जब वह पहले आसमान पर उतरता है तो उस आसमान के विशेष सिंहासन पर बैठता है और कहता है कि है कोई प्रायश्चित करने वाला ताकि उसको मैं क्षमा करूं। वह सुबह तक वहां रहता है और सुबह के समय पहले आसमान के विशेष सिंहासन को छोड़ देता है, ऊपर जाता है और दूसरी कुर्सी पर बैठता है।
मोरक्को के प्रसिद्ध पर्यटक इब्ने बतूता अपने यात्रा वृतांत में इस संबंध में वहाबी धर्म गुरुओं की ओर से रोचक कथा बयान करते हैं, वे लिखते हैं कि मैंने दमिश्क़ की जामे मस्जिद में इब्ने तैमिया को देखा जो लोगों को उपदेश दे रहा था और कह रहा था कि ईश्वर पहले आसमान पर उतरता है, जैसा कि मैं अभी नीचे उतरूंगा, फिर वह मिंबर अर्थात भाषण देने के विशेष स्थान से एक सीढ़ी नीचे उतरा। इब्ने तैमिया की इस बात पर वहां उपस्थित मालिकी पंथ के प्रसिद्ध धर्मशास्त्री इब्ने ज़ोहरा ने कड़ा विरोध किया किन्तु कुछ साधारण लोग जो इब्ने तैमिया की बातों पर विश्वास कर चुके थे, मिंबर के नीचे से उठे और इब्ने ज़ोहरा की पिटाई करने लगे। उनको हंबली न्यायाधीश की ओर से भी डांट फटकार लगाई गयी किन्तु हंबली न्यायधीश का क्रियाकलाप दमिश्क़ के शाफ़ई और मालेकी न्यायधीशों और धर्मशास्त्रियों के कड़े विरोध का कारण बना। इस आधार पर इस विषय की सूचना शासक को दी गयी और उसने भी इब्ने तैमिया को जेल में डाल देने का आदेश जारी कर दिया।
वास्तव में इब्ने तैमिया ईश्वर के लिए चलने फिरने की बात को मानते हुए भौतिक जीवों की भांति ईश्वर को भी आवश्यकता रखने वाला समझता है जो अपने बंदों से संपर्क बनाने के लिए आसमान से उतरता और चढ़ता है। यह ऐसी स्थिति में है कि गति भौतिक संसार से विशेष होती है और सर्वसमर्थ ईश्वर को अपने बंदों की बातें सुनने और उनकी दुआओं को पूरा करने के लिए इधर उधर जाने और विभिन्न सिंहासनों पर बैठने की आवश्यकता नहीं होती। सूरए क़ाफ़ की आयत क्रमांक सोलह में बल दिया गया है कि ईश्वर बंदे की गर्दन की रग से भी निकट है और सूरए बक़रह की आयत क्रमांक 115 में कहा गया है कि और अल्लाह के लिए पूरब भी है और पश्चिम भी इसीलिए तुम जिधर भी रुख़ करोगे वहीं ईश्वर मौजूद है वह छाया हुआ भी है और ज्ञानी भी है। इस आधार पर यह परिणाम निकाला जा सकता है कि ईश्वर हर स्थान पर मौजूद है और उसे सुनने और हर कार्य के लिए इधर उधर जाने की आवश्यकता नहीं है। यह उपस्थिति सर्वसमर्थ ईश्वर की उसी शक्ति और ज्ञान से उत्पन्न हुई है जिसके बारे में पवित्र क़ुरआन ने बारम्बार बल दिया है। उदाहरण स्वरूप सूरए बक़रह की आयत क्रमांक 284 में आया है कि ईश्वर समस्त वस्तुओं पर सक्षम है। वास्तव में क्षमता और ज्ञान ईश्वर की प्रसिद्ध विशेषताओं में है जिसे पवित्र क़ुरआन में क़ादिर, आलिम, क़दीर व अलीम जैसे शब्दों के साथ बारम्बार प्रस्तुत किया गया है। इस दशा में इब्ने तैमिया से पूछना चाहिए कि क्या वास्तव में संसार का रचयिता भौतिक जीवों की भांति अपने बंदों से संपर्क बनाता है या यह संपर्क, बिना शब्द के मनुष्य के हृदय और आत्मा द्वारा होता है?
इब्ने तैमिया ने अपने मन में ईश्वर के लिए एक सिंहासन या गद्दी की कल्पना कर ली है और उसका यहां तक मानना है कि पैग़म्बरे इस्लाम अपने रचयिता के बग़ल में एक कुर्सी पर विराजमान होंगे जबकि पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम अपनी समस्त शान और वैभव के बावजूद स्वयं को ईश्वर का एक निचले दर्जे का बंदा कहने पर गर्व करते हैं और पवित्र क़ुरआन भी सूरए कहफ़ की आयत क्रमांक 110 में पैग़म्बरे इस्लाम (स) को संबोधित करते हुए कहता है कि आप कह दीजिए के मैं तुम्हारे ही जैसा एक मनुष्य हुं किन्तु मेरी ओर ईश्वर का विशेष संदेश वहि आता है कि तुम्हारा ईश्वर एक अकेला है इसीलिए जो भी उससे भेंट की आशा लगाए हुए है उसे चाहिए कि भला कर्म करे और किसी को अपने ईश्वर की उपासना में भागीदार न बनाए।
इब्ने तैमिया और उसका शिष्य इब्ने क़ैय्यिम जौज़ी इन सब बातों से भी आगे बढ़ गये और उन्होंने अपनी पुस्तकों में ईश्वर को एक नरेश की भांति बताया। मजमूउल फ़तावा नामक पुस्तक में इनके हवाले से आया है कि परलोक के दिनों में शुक्रवार के दिन ईश्वर अपनी शक्ति के विशेष स्थान अर्थात अर्श से नीचे उतरेगा और सिंहासन पर बैठेगा। ईश्वर का सिंहासन प्रकाशमयी मिंबरों के बीच होगा और ईश्वरीय दूत इन मिंबरों पर बैठ हुए होंगे। सोने के बने सिंहासन इन मिंबरों को घेरे हुए होंगे और शहीद और ईश्वर के सच्चे बंदे इस पर बैठे हुए होंगे। ईश्वर बैठक के आयोजन और सभा में उपस्थित लोगों से विस्तृत बात चीत करके सिंहासन से उठेगा और बैठक को छोड़कर अपने विशेष स्थान अर्श की ओर ऊपर रवाना हो जाएगा।
यह बात रोचक है कि वहाबी इस प्रकार की अस्पष्ट और निराधार बातों को बिना किसी आयत या हदीस के प्रमाण के प्रस्तुत करते हैं और विदित रूप से केवल अपनी कल्पनाओं के ताने बाने बुनते रहते हैं। न तो पवित्र क़ुरआन में और न ही सहाए सित्ता जैसी सुन्नियों की मान्यता प्राप्त पुस्तकों में इस प्रकार की बातें प्रस्तुत की गयी हैं। इस बारे में केवल यह कहा जा सकता है कि ईश्वर के बारे में इस प्रकार की अवास्तविक बातें इब्ने तैमिया और उसके अनुयाइयों के मस्तिष्क की उपज है। उन्होंने ईश्वर को बंदों की भांति बताने और उसके लिए शरीर की बात मानकर ईश्वर के श्रेष्ठ व उच्च स्थान को घटा दिया है। सुन्नी समुदाय के प्रसिद्ध धर्मगुरू इब्ने जोहबुल का कहना है कि इब्ने तैमिया जिस प्रकार से दावा करता है कि यह बात ईश्वर, उसके दूतों और ईश्वरीय दूतों के साथियों ने कही है, जबकि उसकी कही हुई बातों को इनमें से किसी ने कदापि नहीं कही है।
वहाबियों की रोचक आस्थाओं में से एक यह है कि वे क़िब्ले को ईश्वर के शारीरिक रूप से उपस्थित होने का स्थान मानते हैं और उनका मानना है कि नमाज़ के समय ईश्वर हर नमाज़ियों के सामने खड़ा होता है और उनसे कहता है कि नमाज़ियों को क़िब्ले की ओर नहीं थूकना चाहिए क्योंकि ईश्वर उसके सामने खड़ा होता है और इस कार्य के कारण ईश्वर को परेशानी और कष्ट होती है। यहां पर यह बात कहना चाहिए कि क़िब्ले की ओर मुंह करके खड़े होना, समन्वय और नमाज़ के समय मोमिनों के ध्यान के उद्देश्य से है। न यह कि ईश्वर उस दिशा में मौजूद है। ईश्वर हर स्थान पर मौजूद है और हर वस्तु से अवगत है। पवित्र क़ुरआन ने भी बहुत सी आयतों में इस बात पर बल दिया है कि (व हुआ अला कुल्ले शैइन क़दीर) अर्थात वह समस्त वस्तुओं पर सक्षम है। एक असीमित और अनंत अस्तित्व, समस्त चीज़ों से अवगत है और उसके नियंत्रण में संसार की पूरी वस्तुएं हैं। यदि ईश्वर के लिए किसी विशेष स्थान को मान लिया जाए, इस बात के अतिरिक्त कि उसे समय और काल के लिए आवश्यकता रखने वाला बताएं तो हमने ईश्वर को एक स्थान और समय में सीमित कर दिया। दूसरी ओर वहाबी कठमुल्लाओं द्वारा ईश्वर को किसी विशेष स्थान और समय में सीमित करने का यह अर्थ होता है कि ईश्वर इस समय दूसरे स्थान पर मौजूद नहीं है और यह ईश्वर की क्षमता में कमी का चिन्ह है क्योंकि ईश्वर असीमित और अनंत अस्तित्व है जिसमें कोई भी कमी या अक्षमता नहीं पाई जाती।
इब्ने तैमिया ने ईश्वर के बारे में और भी बहुत सी बातें बयान की हैं और अपनी दुसाहसी बातों से उसने ईश्वर की शान को कम करने का भरसक प्रयास किया किन्तु ईश्वर इन जैसे तुच्छ लोगों की बातों से बहुत ही उच्च है। पवित्र क़ुरआन एक स्पष्ट गवाह है जो वास्तविकता को चिंतन मनन करने वालों और ज्ञानी लोगों के समक्ष स्पष्ट करता है। सूरए शूरा की आयत क्रमांक गयारह में आया है कि कोई भी वस्तु ईश्वर जैसी नहीं है। शीया मुसलमानों के प्रसिद्ध वरिष्ठ धर्मगुरू और पवित्र क़ुरआन के व्याख्याकार आयतुल्लाह मकारिम शीराज़ी इस आयत की व्याख्या करते हुए लिखते हैं कि वास्तविकता में यह बात ईश्वर की समस्त विशेषताओं को पहचानने का मुख्य आधार है कि जिस पर ध्यान दिए बिना ईश्वर की किसी भी विशेषता पर विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि ईश्वर की खोज करने वालों के मार्ग में पड़ने वाली सबसे ख़तरनाक ढाल यही ईश्वर को बंदे जैसा बताने की ढाल है। इसी विषय के कारण लोग अनेकेश्वरवाद की खाई में गिर जाते हैं। दूसरे शब्दों में ईश्वर ऐसा अस्तित्व है जो हर दृष्टि से अनंत और असीमित है तथा उसके अतिरिक्त हर चीज़ की एक सीमा और एक अंत है। उदाहरण स्वरूप हमारे लिए बहुत से कार्य सरल हैं और कुछ कठिन, कुछ वस्तुएं हमसे निकट हैं तो कुछ दूर क्योंकि हमारा अस्तित्व सीमित है किन्तु उस अस्तित्व के लिए जो हर दृष्टि से असीमित है, सदैव बाक़ी व जारी रहने वाला है, सदैव से है और सदैव रहेगा, यह अर्थ कल्पना योग्य नहीं है।
source : irib.ir