दुआएं हार गयीं और वक़्त जीत गया
तेरे फ़ेराक़ में एक और साल बीत गया
शाबान की पंद्रहवीं तारीख़ थी और शाबान का चांद अपनी आधी यात्रा पूरी कर चुका था। चांद बादलों में छिपने ही वाला था कि सुबह की मधुर समीर बहने लगी। सूर्य की पहली किरण बादलों के झुरमुट से फूटने ही वाली थी कि उन्होंने संसार में क़दम रखा। अचानक पूरा संसार प्रकाश से जगमगा उठा और मिट्टी से आसमानी सुगंध आने लगी। चारो ओर से ताज़गी और प्रफुल्लता की वर्षा होने लगी। कलिया खिल उठीं, फूल महक उठे, पक्षियो ने गीत गाने आरंभ कर दिए। मानो पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्ललम के परिवार में बसंत ऋतु का आगमन हो गया हो। नवजात शिशु ने आसमान की ओर अपनी अंगुली उठाई और कहा कि अलहमदुलिल्लाहे रब्बिल आलमीन व सलल्लाहो अला मुहम्मदिन व आलेही। अर्थात समस्त प्रशंसा अल्लाह के लिए है जो ब्रह्मांड का पालनहार है सलाम हो मुहम्मद और उनके परिजनों पर। फूल खिल उठे कलिया लहलहा उठीं चारों ओर ख़ुशियां ही ख़ुशियां, मां की तो ख़ुशियों का ठिकाना नहीं रहा। पिता के जिनकी आंखों से ख़ुशी के आंसू बह रहे थे, इस प्रकार कहते हैं ईश्वर का आभार कि उसने मुझे जीवित रखा ताकि अपने उतराधिकारी को अपनी आंखों से देखूं जो मुझ से है और जो शिष्टाचार, व्यवहार और रूप में पैग़म्बरे इस्लाम की भांति है। उसके ईश्वर पर्दे के पीछे सुरक्षित रखेगा और उसके बाद वह सबके सामने आएगा और धरती को न्याय से भर देगा जबकि वह अत्याचार से भरी हुई होगी।
15 शाबान, शुक्रवार के दिन, सन 255 हिजरी क़मरी को इराक़ के नगर सामर्रा में हज़रत इमाम हसन असकरी और नर्जिस ख़ातून कि मलिका भी जिनका एक उपनाम था, इमामत का बारहवां फूल मुसकुराया। आपके लिए यह जानना रोचक होगा कि हज़रत इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम से संबंधित बहुत से विषय और बातें असाधरण और अलग रही हैं। इनमें से एक उनका जन्म है। जन्म के समय आपकी पवित्र माता पर गर्भ के चिन्ह स्पष्ट नहीं थे। इसका भी एक रहस्य है। क्योंकि बनी अब्बास के ख़लीफ़ा पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम और उनके पवित्र परिजनों के हवाले से बयान हुए कथनों से यह जानते थे कि हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के यहां एक पुत्र जन्म लेगा जो अत्याचारी सरकारों को बुनियादों से उखाड़ फेकेगा। ऐसा व्यक्ति जो अत्याचारी सरकारों का पतन कर देगा। पथभ्रष्टता और भ्रष्टाचार के दुर्ग को तहस नहस कर देगा और धरती को न्याय से भर देगा। इसीलिए जासूसी और भेदी लोगों को इमाम हसन अस्करी अलैहिस्लाम के घर की निगरानी के लिए तैनात किया गया था ताकि वे इस पवित्र शिशु को संसार में आने से रोके और यदि शिशु जन्म ले भी ले तो उसको मार डालें। इसी कारण हज़रत इमाम मेहदी के अपनी माता के गर्भ में आने से जन्म लेने तक और जन्म के बाद की समस्त स्थितियां असाधरण थीं और लोगों की नज़रों से गुप्त थीं।
वास्तव में इमाम मेहदी अलैहिस्लाम के जन्म के दौरान ईश्वर का इरादा वही था जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के जन्म के अवसर पर व्यवहारिक हुआ। हज़रत इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम के शत्रु भी उसी फ़िरऔनी नीति और शैलियों पर चल रहे थे। फ़िरऔन के लोग हज़रत मूसा का काम तमाम करना चाहते थे और इसी काम के लिए उन्होंने जासूस छोड़ रखे थे जो बनी इस्राईल की गर्भवती महिलाओं पर दृष्टि रखते थे और जन्म लेने वाले शिशु की हत्या कर देते थे किन्तु ईश्वर ने अपने पैग़म्बर मूसा की रक्षा की और उनके जन्म को गुप्त रखा। अब्बासी ख़लीफ़ा भी हज़रत इमाम मेहदी की हत्या के प्रयास में थे और उन्होंने अपने इस अशुभ लक्ष्य को व्यवहारिक बनाने के लिए विशेष प्रकार की निगरानी करवाई किन्तु ईश्वर ने उन्हें अब तक सुरक्षित रखा और प्रलय तक सुरक्षित रखेगा, ईश्वर जिसे सुरक्षित रखना चाहे उसे कौन हानि पहुंचा सकता है।
हज़रत इमाम मेहदी अलैहिस्लाम शताब्दियों से आंखों से ओझल हैं। संभव है कि कुछ लोग इस विषय को असंभव समझें किन्तु ईश्वर की अपार शक्ति और क्षमता के दृष्टिगत जिसके नियंत्रण में मनुष्य की आयु सहित समस्त चीज़ें हैं, यह विषय पूर्ण रूप से स्वीकार करने योग्य है। अलबत्ता यह काम चमत्कार या अनुदाहरणीय कार्य नहीं है क्योंकि बौद्धिक और व्यवहारिक दृष्टि से ईश्वर किसी को साठ वर्ष की आयु देता है, और किसी को दो सौ वर्ष की आयु देता है तो किसी को सौ वर्ष की आयु प्रदान करता है। व्यवहारिक सिद्धांत के आधार पर मनुष्य की आयु भी उसके भीतर पायी जाने वाली स्थिति से संबंधित होती है और वह लंबे समय तक जीवित रह सकता है। रोचक बात यह है कि हालिया दिनों में विशेषज्ञ मनुष्य के लिए यह स्थिति उपलब्ध कराने और आनुवंशिक प्रौद्योगिकी द्वारा उसकी आयु को कई गुना बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त इतिहास पर दृष्टि डालने से यह बात पता चल जाती है कि बहुत से लोगों ने बहुत ही लंबी आयु पायी है। पवित्र क़ुरआन में भी बहुत सी आयतें हैं जिनमें पूर्व की जातियों की लंबी आयु का उल्लेख मिलता है। इन आयतों से भी हज़रत इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम की लंबी आयु के बारे में बेहतरीन तर्क प्रस्तुत किया जा सकता है। जैसा कि हज़रत नूह के बारे में सूरए अनकबूत की आयत क्रमांक 14 में आया है कि और हमने नूह अलैहिस्सलाम को उनकी जाति की ओर भेजा और वह उनके बीच पचास वर्ष कम एक हज़ार वर्ष तक रहे फिर जाति को तूफ़ान ने अपनी चपेट में ले लिया कि वे लोग अत्याचारी थे।
ईश्वर हज़रत यूनुस अलैहिस्लाम की कथा को बयान करते हुए कहता है कि फिर यदि वह ईश्वर का गुणगान करने वालों में से न होते तो प्रलय तक मछली के पेट में ही रह जाते। इस आयत से यह परिणाम निकलता है कि ईश्वर इस बात में सक्षम है कि उस स्थान पर भी जहां जीवन जारी रखने के लिए कोई साधन न हो मनुष्य को सुरक्षित रखता है। इसके अतिरिक्त हज़ार वर्ष पूर्व के लोगों की बहुत लंबी आयु हुआ करती थी और लोगों का लंबे समय तक जीवित रहना साधारण सी बात थी। स्पष्ट सी बात है कि अपार शक्ति और क्षमता का स्वामी ईश्वर अपने ख़लीफ़ा और उतराधिकारी को भी मौत से सुरक्षित रख सकता है और अपने उच्च लक्ष्यों के लिए विभूतियों भरी सैकड़ों वर्ष की आयु उसे प्रदान कर सकता है।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ईश्वर के समस्त पैग़म्बरों और दूतों का लक्ष्य लोगों का मार्गदर्शन है। अलबत्ता यह मार्गदर्शन उस समय वांछित परिणाम तक पहुंचता है जब लोगों में भी आवश्यक तत्परता पायी जाती हो। यदि लोगों में यह सहायक स्थिति मौजूद न हो तो लोगों में ईश्वरीय दूतों के होने का कोई अधिक लाभ नहीं होगा। हज़रत इमाम अली नक़ी और हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के विरुद्ध लगाए गये भीषण प्रतिबंधों के कारण इन ईश्वरीय मार्गदर्शकों के नेतृत्व और मार्गदर्शन से लाभ उठाने में रुकावटें उत्पन्न हुईं। इसीलिए ईश्वरीय तत्वदर्शिता की मांग यह थी कि बारहवें इमाम लोगों की नज़रों से तब तक ओझल रहें जब तक समाज में उनकी उपस्थिति के लिए लोगों में आवश्यक तत्परता उत्पन्न न हो । इमाम मेहदी के बारे में विभिन्न प्रश्न उठते हैं उनमें से एक यह है कि उनके नज़रों से ओझल रहने के काल में इमाम के अस्तित्व का मूल रूप से लाभ क्या है? लोगों के लिए उनका पवित्र अस्तित्व क्या प्रभाव रखता है? इन प्रश्नों के उत्तर में यह कहा जा सकता है कि इमाम का नज़रों से ओझल होना कदापि इस अर्थ में नहीं है कि उनका पावन अस्तित्व एक अदृश्य आत्मा, या स्वपन और इस प्रकार की अन्य वस्तुओं में परिवर्तित हो गया है बल्कि वह एक प्राकृतिक जीवन जी रहे हैं। वह लोगों के बीच में हैं और एक स्थान से दूसरे स्थान आते जाते रहते हैं और संसार के विभिन्न स्थानों पर अपरिचित जीवन व्यतीत करते हैं। एक बार किसी ने हज़रत इमाम मेहदी के लंबे समय तक लोगों की नज़रों से ओझल रहने के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) से पूछा था तो उन्होंने कहा कि उस ईश्वर की सौगन्ध जिसने मुझे अपनी पैग़म्बरी प्रदान की, उसके लोगों की नज़रों से ओझल रहने के काल में लोग उससे लाभ उठाते रहेंगे, उसके ईश्वरीय नेतृत्व के प्रकाश से लाभ उठाते रहेंगे, जैसा कि बादलों में छिपने के बाद भी लोग सूरज से लाभ उठाते हैं।
सूरज का जीवन दायक प्रभाव केवल उसी समय तक सीमित नहीं रहता जब उसका प्रकाश सीधे रूप से प्रकृति और जीवन पर पड़े बल्कि गर्मी पैदा करना, वनस्पतियों का उगना और बढ़ना, जीवन और गतिविधियों के लिए आवश्यक ऊर्जा का उत्पादन जैसे बहुत से प्रभाव सूर्य के बादलों के पीछे छिपे रहने के समय भी पाये जाते हैं। इसी आधार पर इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम का अध्यात्मिक अस्तित्व भी लोगों की नज़रों से ओझल रहने के समय में भी विभिन्न प्रभाव रखता है। इन प्रभावों में से एक आशा और हज़रत इमाम मेहदी अलैहिस्लाम के प्रकट होने की प्रतीक्षा, भविष्य की ओर मार्ग प्रशस्त करने के अतिरिक्त शक्तिवर्धक और गतिप्रदान करने वाला है और लोगों को स्थाई शक्ति प्रदान कर सकता है। यह आस्था, मानवता के मोक्षदाता के प्रकट होने के समय तक विनाश और अत्याचार को रोकने का एक प्रभावी तत्व समझी जाती है। इस आधार पर वह लोग जो एक जीवित इमाम के अस्तित्व पर आस्था रखते हैं, यद्यपि वे उन्हें विदित रूप से अपने बीच नहीं देखते, स्वयं को अकेला नहीं समझते। संसार के सबसे बड़े आंदोलन के लिए तत्परता और आत्मनिर्माण के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना और दिलों में आशा की किरण को जलाए रखने में इस मनोवैज्ञानिक आस्था का प्रभाव पूर्ण रूप से समझने योग्य है।
फ़्रांस के सोरबन विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रसिद्ध प्रोफ़ेसर हेनरी कोरबन का कहना है कि मेरा मानना है कि शीया मुसलमानों का पंथ वह एक मात्र पंथ है जिसने ईश्वर और बंदों के बीच ईश्वरीय मार्गदर्शन के संबंध को सदैव सुरक्षित रखा है और निरंतर व लगातार ईश्वरीय व धार्मिक नेतृत्व को जीवित व बाक़ी रखा। वे यहूदी और ईसाई धर्मों के दृष्टिकोणों की समीक्षा करते हुए ईश्वरीय नेतृत्व को जो वर्तमान समय में वही ईश्वरीय मार्गदर्शन है, शीया मुसलमानों से विशेष मानते हैं। हेनरी कोरबन का कहना है कि यहूदियों ने पैग़म्बरी को जो मनुष्यों और ईश्वर के मध्य वास्तविक संपर्क है, हज़रत मूसा पर समाप्त कर दिया । ईसाईयों ने भी हज़रत ईसा मसीह को अपना अंतिम पैग़म्बर माना। मुसलमानों में सुन्नी समुदाय के लोग पैग़म्बरे इस्लाम को अपना अंतिम पैग़म्बर मानते हैं और उनका मानना है कि उन पर पैग़म्बरी के समाप्त होने के बाद ईश्वर और बंदों के बीच किसी प्रकार का संपर्क मौजूद नहीं है, केवल शीया मुसलमान ही हैं जो यद्यपि पैग़म्बरे इस्लाम को अंतिम ईश्वरीय दूत मानते हैं किन्तु विलायत अर्थात ईश्वरीय नेतृत्व को जो मार्गदर्शन का संपर्क और पूरक है, पैग़म्बरे इस्लाम के बाद भी सदैव जीवित और जारी मानते हैं।
हज़रत इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर हम आपकी सेवा में बधाई प्रस्तुत करते हैं और ईश्वर से यह दुआ करते हैं कि उस महान हस्ती को प्रकट होने की अनुमति प्रदान कर जिसे तूने लोगों की नज़रों से ओझल कर रखा है ताकि वह आए और इस संसार को जो अत्याचार से भर गया है न्याय से भर दे। आमीन
source : irib.ir