पुस्तक का नामः कुमैल की प्रार्थना का वर्णन
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारीयान
हज़रत मुहम्मद सललल्लाहोअलैहेवाआलेहिवसल्लम का कथन हैः
إِنَّ رَبَّکُم یَقُولُ کُلَّ یَوم: أَنَا العَزِیزُ فَمَن أَرَادَ عِزَّ الدَارَینِ فَلیُطِعِ العَزِیزَ
इन्ना रब्बाकुम यक़ूलो कुल्ला यौमिनः अनल अज़ीज़ो फ़मन अरादा इज़्ज़द्दारैने फ़लयोतेइल अज़ीज़ा[1]
प्रतिदिन तुम्हारा पालनहार कहता हैः केवल मै अज़ीज़ हूं, जो व्यक्ति संसार मे इज़्ज़त और सम्मान चाहता है उसे अज़ीज़ की आज्ञाकारिता करना चाहिए।
और अमीरुलमोमीन अली अलैहिस्सलाम का कथन हैः
إِذَا طَلَبتَ العِزَّ فَاطلُبہُ بِالطَاعَۃِ
ऐज़ा तलबतलइज़्ज़ा फ़तलुबहो बित्ताअते[2]
जब भी इज़्ज़त और सम्मान के इच्छुक हो तो उसे आदेश का पालन करके प्राप्त करो।
अज्ञानी एंव ग़लत विचार करने वाला मनुष्य इज़्ज़त एंव सम्मान को धन, सम्पत्ति, गोत्रा (जाति), धर्म तथा सांसारिक शक्तियो मे समझता और खोजता है, जब कि इन मे से कोई भी वस्तु मानवता के लिए इज़्ज़त और सम्मान का उपहार नही लाती।
इमामे सादिक़ अलैहिस्सलाम का कथन हैः
مَن أَرَادَ عِزّاً بِلاَ عَشِیرۃ وَغِنی بِلَا مَال وَ ھَیبَۃ بِلَا سُلطَان فَلیُنقَل مِن ذُلِّ مَعصِیَۃِ اللہِ إِلَی عِزّ طَاعَۃِ اللہِ
मन अदारा इज़्ज़न बिला अशीरतिन वा ग़ेनन बिला मालिन वा हैबतन बिला सुलतानिन फ़लयुन्क़ल मिन ज़ुल्ले मासियतिल्लाहे ऐला इज़्ज़े ताअतिल्लाहे[3]
जो व्यक्ति गोत्रा एंव जाति के बिना इज़्ज़त और सम्मान चाहता है, धन और सम्पत्ति के बिना किसी का मोहताज नही होना चाहता और शासन के बिना हैबत चाहता है, उसे चाहिए कि ईश्वर की अनाज्ञाकारिता त्याग कर उसके आदेशो का पालन करे।
जारी
[1] मजमाउल बयान, भाग 8, पेज 628 बिहारुल अनवार, भाग 68, पेज 120, अध्याय 63
इसी संदर्भ की एक दूसरी रिवायत का मुस्तदरकुल वसाइल, भाग 11, पेज 260, अध्याय 18, हदीस 12930 मे वर्णन हुआ है।
[2] ग़ेररूलहिकम, हदीस 4056
विभिन्न रिवायतो मे इज़्ज़त एंव सम्मान के कारणो का उल्लेख हुआ है उनमे से ईश्वर की आज्ञाकारिता और उसके आदेशो का पालन करना महत्वपूर्ण है। हालांकि इसके अलावा भी दूसरे कारण जैसेः लोभ का ना होना, इनसाफ़, हक़ का प्रतिबद्ध होना, क्षमा एंव माफ़ करना, विनम्रता, भरोसा रखना, वीरता, जबान का सुरक्षित रखना, आखो का नीचे झुकाना, धैर्य रखना, क़नाअत ... इत्यादि का उल्लेख हुआ है, इनमे से प्रत्येक विशेष स्थान और आदेश रखता है।
[3] अलख़ेसाल, भाग 1, पेज 169, हदीस 222; बिहारुल अनवार, भाग 68, पेज 178, अध्याय 64, हदीस 26; थोड़े से अंतर के साथ इसी संदर्भ की हदीस दूसरे सोत्रो मे अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम से आई है। अमाली (तूसी), पेज 524, मजलिस (बैठक) 18, हदीस 1161; मुसतदरकुल वसाइल, भाग 11, पेज 258, अध्याय 18, हदीस 12924; बिहारुल अनवार, भाग 68, पेज 169, अध्याय 64, हदीस 29