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Tuesday 7th of May 2024
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नमाज़ को छोड़ने वालों, नमाज़ से रोकने वालों और नमाज़ से ग़ाफिल रहने वालों की मज़म्मत

कुछ लोग न ईमान रखते हैं और न नमाज़ पढ़ते हैं।
क़ुरआन मे सूरए क़ियामत की 31वी आयत मे इरशाद होता है कि कुछ लोग ऐसें है जो न ईमान रखते हैं और न नमाज़ पढ़ते है। यहाँ क़ुरआन ने हसरतो आह की एक दुनिया लिये हुए अफ़राद के जान देने के हालात की मंज़र कशी की है।
बाज़ लोग दूसरों की नमाज़ मे रुकावट डालते हैं।
क्या तुमने उसे देखा जो मेरे बन्दे की नमाज़ मे रुकावट डालता है। अबु जहल ने फैसला किया कि जैसे ही रसूले अकरम सजदे मे जाऐं तो ठोकर मार कर आप की गर्दन तोड़ दें। लोगों ने देखा कि वह पैगम्बरे इसलाम के क़रीब तो गया मगर अपने इरादे को पूरा न कर सका। लोगों ने पूछा कि क्या हुआ? तुम ने जो कहा था वह क्यों नही किया? उसने जवाब दिया कि मैंने आग से भरी हुई खन्दक़ देखी जो मेरे सामने भड़क रही थी( तफ़सीर मजमाउल ब्यान)
कुछ लोग नमाज़ का मज़ाक़ उड़ाते हैं।
क़ुरआन मे सूरए मायदा की आयत न.58 मे इस तरह इरशाद होता है कि जिस वक़्त तुम नमाज़ के लिए आवाज़(अज़ान) देते हो तो वोह मज़ाक़ उड़ाते हैं।
कुछ लोग बेदिली के साथ नमाज़ पढ़ते हैं
क़ुरआन के सूरए निसा की आयत न.142 मे इरशाद होता है कि मुनाफ़ेक़ीन जब नमाज़ पढते हैं तो बेहाली का पता चलता है।
कुछ लोग कभी तो नमाज़ पढ़ते हैं कभी नही पढ़ते
क़ुरआन करीम के सूरए माऊन की आयत न.45 मे इरशाद होता है कि वाय हो उन नमाज़ीयो पर जो नमाज़ को भूल जाते हैं और नमाज़ मे सुस्ती करते हैं। तफ़सीर मे है कि यहाँ पर भूल से मतलब वोह भूल है जो लापरवाही की वजाह से हो यानी नमाज़ को भूल जाना न कि नमाज़ मे भूलना कभी कभी कुछ लोग नमाज़ पढ़ना ही भूल जाते हैं। या उसके वक़्त और अहकाम व शरायत को अहमियत ही नही देते। नमाज़ के फ़ज़ीलत के वक़्त को जान बूझ कर अपने हाथ से निकाल देते हैं। नमाज़ को अदा करने में सवाब और छोड़ने मे अज़ाब के क़ाइल नही है। सच बताइये कि अगर नमाज़ मे सुस्ती बरतने से इंसान वैल का हक़ दार बन जाता है तो जो लोग नमाज़ को पढ़ते ही नही उनके लिए कितना अज़ाब होगा।
कुछ लोग अगर दुनियावी आराम से महरूम हैं तो बड़े नमाज़ी हैं। और अगर दुनिया का माल मिल जाये तो नमाज़ से ग़ाफ़िल हो जाते हैँ।
अल्लाह ने क़ुरआने करीम के सूरए जुमुआ मे इरशाद फ़रमाया है कि जब वह कहीँ तिजारत या मौज मस्ती को देखते हैं तो उस की तरफ़ दौड़ पड़ते हैं।और तुमको नमाज़ का ख़ुत्बा देते हुए छोड़ जाते हैं। यह आयत इस वाक़िए की तरफ़ इशारा करती है कि जब पैगम्बरे इस्लाम नमाज़े जुमा का ख़ुत्बा दे रहे थे तो एक तिजारती गिरोह ने अपना सामान बेंचने के लिए तबल बजाना शुरू कर दिया। लोग पैगम्बरे इस्लाम के खुत्बे के बीच से उठ कर खरीदो फरोख्त के लिए दौड़ पड़े और हज़रत को अकेला छोड़ दिया। जैसे कि तारीख मे मिलता है कि हज़रत का ख़ुत्बा सुन ने वाले सिर्फ़ 12 अफ़राद ही बचे थे।


source : alhassanain.org
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