सलाम हो अली के सुपुत्र अबल फ़ज़्लिल अब्बास पर जिन्होंने सत्य के ध्वज को ऊंचा रखने के मार्ग में अपने प्राण की आहूति दी और इतिहास में अमर हो गए।
सलाम हो उस पर जो सद्गुण व उदारता का सोता था।
वर्ष 26 हिजरी क़मरी में चार शाबान को मदीना नगर में एक ऐसे शिशु ने इस संसार में क़दम रखा जिसका भव्य जीवन व शहादत मानव इतिहास के महाकाव्य में अमर हो गया। जिस समय इस शिशु के शुभ जन्म की सूचना हज़रत अली अलैहिस्सलाम को दी गई वे तुरंत घर की ओर बढ़े और शिशु को अपनी गोद में ले लिया, चेहरे को चूमा और कानों में आत्मा को ताज़गी प्रधान करने वाली अज़ान कही तथा उसके शुभ जन्म के उपलक्ष्य में वंचितों को दान दक्षिणा दी।
पिता ने इस बच्चे के प्रतापी चेहरे में ईश्वर को पसंद विशेषताएं विशेष रूप से वीरता की झलक देखी इसलिए उसका नाम अब्बास रखा। यह बच्चा बड़ा होकर बुराइयों से संघर्ष में मशहूर हुआ और अत्याचार के सामने कदापि नहीं झुका।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने सुपुत्र हज़रत अब्बास के पालन पोषण पर पूरा ध्यान रखते थे और इस बात का व्यापक प्रयास किया कि उनके मन में ईश्वर पर विश्वास और मानवीय मूल्यों के पालन की भावना बैठ जाए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का अपने अन्य पुत्रों की भांति हज़रत अब्बास के साथ बहुत प्रेमपूर्ण व मैत्रीपूर्ण व्यवहार था। वे कठिनाइयों के समय उन्हें ढारस बंधाते और अपने सुपुत्र के पवित्र मन में ज्ञान की ज्योति जलाते थे। इसलिए इस हाशमी युवा का व्यक्तित्व एक आकर्षक, सदाचारी, विद्वान, वीर, और दानी व्यक्ति के रूप में सामने आया और उनके व्यक्तित्व में उनके पिता की चारित्रिक विशेषताएं प्रतिबिंबित हुईं।
हज़रत अब्बास अपने सदाचारी पिता की छत्रछाया में जो इस धरती पर ईश्वर की ओर से उसके अस्तित्व का तर्क थे, पले बढ़े और उन्होंने उनसे ज्ञान व अंतर्दृष्टि की बातें सीखीं ताकि आने वाले समय में सदाचारिता का आदर्श बनें। हज़रत अब्बास ने पैग़म्बरे इस्लाम के नाति हज़रत इमाम हसन व हज़रत इमाम हुसैन अलैहेमस्सलाम से जो जन्नत के युवाओं के सरदार हैं,सदाचारिता व मानवीय मूल्य सीखे।
विशेष रूप से हज़रत अब्बास इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ रहे और उनके व्यक्तित्व का उन पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि हज़रत अब्बास के विचार व स्वाभाव लगभग इमाम हुसैन के जैसे थे। इमाम हुसैन भी जो अपने भाई अब्बास की खरी श्रृद्धा व बलिदान की भावना को भलिभांति समझ चुके थे उन्हें अपने निकटवर्तियों में वरीयता देते और उन्हें बहुत मानते थे। इस प्रकार हज़रत अब्बास पैग़म्बरे इस्लाम के नातियों की संगत में रह कर आध्यात्मिक विकास की उस चोटी पर पहुंचे कि स्वंय उनकी भी महान सुधारकों में गिना जाने लगा। वे अपने जैसे मनुष्य की मुक्त के लिए अदम्य साहस व बलिदान द्वारा उन लोगों की पंक्ति में शामिल हो गए जिन्होंने इतिहास की धारा को बदल दिया।
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