हमने उद्देश्य के निर्धारण एवं जीवन में उद्देश्यों को प्राथमिकता के आधार पर सूचीबद्ध करने के बारे में बात की थी। इस चरण के बाद, महत्वपूर्ण समय शुरू होता है यानी लक्ष्य के मार्ग पर बढ़ना। जब तक शुरूआत के लिए दृढ़ निर्णय नहीं होगा तो हमारे उद्देश्य सदैव सपने एवं मनोकामना के रूप में बाक़ी रहेंगे। इसलिए हमें बुद्धि एवं समझदारी से निर्णय लेना चाहिए और उपलब्ध सुविधाओं एवं योग्यताओं के अनुसार, सही योजना के साथ अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना चाहिए। सफ़लता के लिए कोई भी चीज़ सटीक योजना की बराबर प्रभावी नहीं है। हज़रत अली (अ) का पवित्र कथन है कि योजना बनाने में समझदारी एवं गहन विचार, सुविधाओं से अधिक महत्वपूर्ण है।
योजना की विभिन्न परिभाषाएं की गई हैं। एक परिभाषा इस प्रकार है:
योजना: बुद्धिमानी पूर्वानुमान और गतिविधियों की उद्देश्यपूर्ण व्यवस्था तथा योजनाकार की इच्छा एवं बल के अनुरूप प्राथमिकता के आधार पर समयसारिणी बनाना है। दूसरे शब्दों में योजना का अर्थ है कामों को बाँटना और हर चरण में अगले काम के लिए फ़ैसला लेना। जीवन में योजना का बहुत प्रभाव होता है। योजना की स्थिति में, कर्तव्यों और गतिविधियों का पूर्वानुमान एवं गहन विचार के साथ चयन किया जाता है और इच्छाओं व ज़रूरतों का प्राथमिकता की दृष्टि से चुनाव किया जाता है। दूरसंचार के काल और ज्ञान एवं विद्या की प्राप्ति के लिए आश्चर्यचकित प्रगति एवं आर्थिक, सामाजिक व वैचारिक विकास के साथ साथ जीवन की जटिलता के कारण, मनुष्य को योजना बनाने और समयसारिणी की आवश्यकता होती है।
इस्लाम ने संपूर्ण ईश्वरीय धर्म के रूप में योजना पर बल दिया है। इस्लामी किताबों में कई कारणों से योजना को ज़रूरी क़रार दिया है। एक यह कि आयु एवं समय तेज़ी से गुज़रता है और उसका गुज़रना महसूस नहीं होता है। इसी प्रकार गुज़रा हुआ समय किसी भी तरह लौटकर नहीं आ सकता और किसी भी प्रकार उसे पलटाया नहीं जा सकता। समय को किसी भी चीज़ नहीं बदला जा सकता। इंसान के हाथ से निकल जाने वाले हर धन की भरपायी की जा सकती है, आयु और समय के अतिरिक्त कि जिनकी भरपायी नहीं की जा सकती। दूसरी ओर इस बात की ज़रूरत है कि कार्य अपने समय और निर्धारित समय में अंजाम दिए जाएं और यह योजना से ही संभव हो सकता है। पैग़म्बरे इस्लाम का पवित्र कथन है कि हर काम अपने समय पर निर्भर होता है।
योजना की स्थिति में सुविधाओं और समय का बेहतरीन उपयोग होता है। योजना के महत्वपूर्ण प्रभावों में से एक अच्छी आदतों का उत्पन्न होना है। परिणाम स्वरूप कार्य अधिक सरलता से अंजाम पाते हैं। यही कारण है कि सही योजना, मनुष्य को जीवन में वांक्षित शैली प्राप्त करने में सहायता करती है।
लोगों की बहुत सारी समस्याओं एवं पछतावों को काम को अंजाम देने से पहले सोच विचार न करने व योजना न बनाने का परिणाम माना जा सकता है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों में से एक इमाम मोहम्मद तक़ी (अ) इस बारे में सिफ़ारिश करते हैं कि सोच विचार और योजना इंसान को पछतावे से सुरक्षित रखती है।
योजना के अनुसार कार्य करने के लिए अनुशासन की ज़रूरत होती है। इस लिए योजना के बाद हमें अनुशासन का पालन करना चाहिए। इस्लामी शिक्षाओं में अनुशासन एवं योजना के महत्व के लिए इतना ही काफ़ी है कि हज़रत अली (अ) अपने जीवन के अंतिम क्षणों में इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) और हर उस व्यक्ति से कि जिस तक आपकी वसीयत पहुंचे सिफ़ारिश करते हुए कहा कि तुम्हें ईश्वरीय भय और कामों में अनुशासन की सिफ़ारिश करता हूं।
जीवन में अव्यवस्था और अनेक समस्याएं अनुशासन के अभाव के कारण उत्पन्न होती हैं। अनुशासन, जीवन शैली में चमत्कारी रूप से परिवर्तन लाता है। कार्यों में अनुशासन, व्यक्ति एवं समाज के लिए अनेक प्रकार के वरदान लाता है। अनुशासन और योजना से समय और पूंजी बरबाद होने से बचती है। मनुष्यों की ज़रूरतें इतनी विभिन्न एवं विविध होती हैं कि एक समय में उनका पूरा करना संभव नहीं होता है। इस प्रकार कि उन समस्त की प्राप्ति रात दिन के कम समय में संभव नहीं है। इस प्रकार, मनुष्य उनमें से जो महत्वपूर्ण हैं उनका चयन करने के लिए बाध्य है और उनमें से हर एक को अंजाम देने के लिए समय निर्धारित करता है ताकि समय के साथ साथ निरंतर उस पर ध्यान रखे। इस तरह से वह कामों में अव्यवस्था और उनको अंजाम न देकर स्वयं को परेशान करने से बचाता है और अपनी आयु से कि जो मूल पूंजी है सर्वश्रेष्ठ लाभ उठाता है। जो व्यक्ति अपने समय के लिए योजना तैयार करता है और व्यक्तिगत एवं सामाजिक कार्यों को निर्धारित समय में अंजाम देता है अपने और दूसरों के समय से अधिक लाभ उठाता है। अनुशासन के कारण हर काम अपने समय पर और लाभदायक होता है।
व्यक्तिगत एवं सामाजिक व्यवहार में अनुशासन, मनुष्य के विचारों में भी अनुशासन का कारण बनता है। जो व्यक्ति अपने समस्त कामों में अनुशासन का पालन करता है तो विभिन्न प्रकार के उसके विचार भी व्यवस्थित हो जाते हैं। मनुष्य इन विशिष्ट एवं लोकप्रिय विशेषताओं से उत्कृष्टता की सीढ़ियों पर तेज़ी से चढ़ता है। ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी वैचारिक अनुशास को व्यवहारिक अनुशासन का परिणाम मानते हैं और इस संदर्भ में कहते हैं कि अगर हम अपने जीवन में अपने व्यवहार और कामों में अनुशासन का पालन करेंगे तो परिणाम स्वरूप हमारे विचारों में भी अनुशास पैदा होगा, जब विचार में अनुशासन आ जाएगा तो निश्चित रूप से मनुष्य को पूर्ण ईश्वरीय वैचारिक अनुशासन प्राप्त हो जाएगा।
अब जब कि हम ने इमाम ख़ुमैनी को याद किया है तो यह बताना ज़रूरी है कि महान व्यक्तियों की सफ़लता का एक रहस्य योजना एवं अनुशासनात्मक जीवन है। इमाम ख़ुमैनी कि जिनका जीवन इस्लामी संस्कृति, पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके परिजनों के आचरण से प्रभावित थे कामों में अनुशासन के कारण अपने आसपास वालों पर उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में प्रभाव डालते थे। उनके एक शिष्य का कहना है कि:
मैं लगभग दस वर्षों तक नजफ़ में इमाम ख़ुमैनी की सेवा में था, उनके कार्यों के देखता था, वास्तव में हमारे लिए आदर्श थे। वास्तव में आश्चर्यजनक था, यहां तक कि पढ़ने और क़ुराने मजीद की तिलावत, अच्छे कामों यहां तक कि हज़रत अली (अ) के मज़ार के दर्शन करने और प्रार्थना हेतु कि जिनके लिए कोई निर्धारित समय नहीं होता है, समय निर्धारित किया हुआ था और हर काम को उसी समयसारिणी के अनुसार अंजाम देते थे। इस प्रकार कि हर उस व्यक्ति के लिए कि जो कुछ समय के लिए ही उनसे परिचित होता था, स्पष्ट हो जाता था कि किस समय किस काम को अंजाम देने में व्यस्त हैं। यद्यपि उनकी सेवा में उपस्थित न हो और उनसे कई किलोमीटर दूर हो। इमाम ख़ुमैनी इतने अनुशासित थे कि नजफ़ में एक दुकानदार उनके आने और जाने से अपनी घड़ी का समय ठीक करता था। यह कार्य इमाम ख़ुमैनी के कामों को देखने वालों के लिए पाठ हो सकता था कि वे इमाम ख़ुमैनी की इस आदत से सीख लें।
जो मनुष्य अनुशासित होता है, अपने समस्त कामों में अनुशासन लाकर अपनी और दूसरों की आयु का सम्मान करता है और अपनी आयु का एक क्षण भी व्यर्थ करने से बचता है। जो व्यक्ति जीवन, व्यवहार और यहां तक कि अपने विचार को अनुशासित कर देता है और इस विशिष्ट विशेषता से सुसज्जित हो जाता है तो वह दूसरों के लिए आदर्श बन जाता है, और इस प्रकार वह उन्हें अपने कामों में अनुशासन के लिए प्रेरित करता है।
इस लिए उद्देश्य के निर्धारण के बाद जीवन शैली में परिवर्तन के लिए, योजना एवं अनुशासन जीवन को दूसरे ही रंग में रंग देता है, जिसका परिणाम शांति और मनुष्य के मन से बेचैनी एवं व्याकुलता को दूर कर देता है तथा कामों को व्यवस्थित कर देता है। इस आशा के साथ कि हम सब योजना एवं अनुशासन द्वारा अपने और दूसरों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।
हज़रत अली जीवन में अनुशास एवं योजना के महत्व के दृष्टिगत सिफ़ारिश करते हैं कि अपने जीवन को चार भागों में बांटने का प्रयास करो, एक भाग, ईश्वर से दुआ करने के लिए, एक भाग रोज़गार के लिए और एक भाग अपने भाईयों एवं विश्वास पात्रों के लिए कि जो तुम्हें तुम्हारी कमियों से अवगत कराते हैं और तुम्हारे साथ प्रकट एवं आंतरिक रूप से सच्चाई और ईमानदारी से व्यवहार करते हैं और एक भाग हलाल मनोरंजन से विशेष करो, इस भाग से शेष तीन भागों के लिए शक्ति प्राप्त कर लोगे।