पैग़म्बरे इस्लाम सदाचारियों के इमाम और मार्गदर्शन के सूरज हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम की विशेषताओं को बयान करते हुए फरमाते हैं” पैग़म्बर बाल्याकाल में सर्वोत्तम सृष्टि और बुढापे में लोगों में महानतम हस्ती थे। उनके व्यवहार पवित्र लोगों में सबसे पवित्रतम और उनकी दया सबसे अधिक समय तक जारी रहने वाली चीज़ है”
हज़रत अली अलैहिस्सलाम एक अन्य स्थान पर पैग़म्बरे इस्लाम की पावन सृष्टि की ओर संकेत करते हुए इस प्रकार कहते हैं ”पैग़म्बर का कुटुम्ब सबसे पवित्र कुटुम्ब है। वह दया, बड़प्पन और पवित्रता के केन्द्र व स्रोत में बड़े हुए हैं। अच्छे लोगों के दिल उनके प्रेमी बन गये और नज़रें उनकी ओर केन्द्रित हो गयीं। ईश्वर ने उनकी विभूति से द्वेष को दफ्न कर दिया और शत्रुता की आग को बुझा दिया”
हज़रत अली अलैहिस्सलाम इसी संबंध में फरमाते हैं” अब जब कि ईश्वर ने अपनी कृपा से हम पर भलाई की है और पैग़म्बर के प्रेम को हमारे हृदय में डाल दिया है, हमें अच्छे व भले लोगों की पंक्ति में करार दिया है और उसने यह कृपा व दया हम पर की है कि हमारे मुर्दा दिल को उनके प्रेम से ज़िन्दा कर दिया है और हमारे दिल के नयनों को उनके आध्यात्मिक चेहरे से प्रकाशित कर दिया है”
पैग़म्बरे इस्लाम की प्रशिक्षा किस प्रकार हुई और उनका महान व्यक्तित्व किस प्रकार अस्तित्व में आया इस संदर्भ में हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने भाषण नम्बर १९७ में फरमाते हैं” ईश्वर ने अपने सबसे बड़े फरिश्ते जीब्राईल को पैग़म्बर की प्रशिक्षा के लिए नियुक्त किया ताकि रात दिन उनका मार्गदर्शन, बड़प्पन व महानता और ब्रह्मांड के सर्वोत्तम शिष्टाचार की ओर करे”
पैग़म्बरे इस्लाम बाल्याकाल से ही किसी मूर्ति के समक्ष नहीं झुके। पैग़म्बरे इस्लाम न केवल किसी मूर्ति की पूजा नहीं की बल्कि बाल्याकाल और जवानी में उन्होंने किसी प्रकार की कोई छोटी बड़ी ग़लती भी नहीं की। पैग़म्बरे इस्लाम के काल में मक्का नगर की दो विशेषताएं थीं। पहली विशेषता यह थी कि यह नगर मूर्तिपूजा का केन्द्र था और दूसरी विशेषता यह थी कि यह नगर व्यापार और व्यापारिक गतिविधियों का गढ़ था। अतः मक्का अरब पूंजीपतियों के एकत्रित होने के स्थान में परिवर्तित हो गया था। इसी तरह यह नगर विलासपूर्ण जीवन के केन्द्र में परिवर्तित हो गया था और इस नगर में जुआ खेला जाता और शराब पी जाती थी पंरतु पैग़म्बरे इस्लाम अपने पूरे जीवन में एक क्षण के लिए भी इस प्रकार के कार्यों व बैठकों के निकट नहीं हुए। स्पष्ट है कि महान ईश्वर की ओर से जिसे मानवता का सबसे बड़ा शिक्षक व प्रशिक्षक नियुक्त किया गया है उस पर महान ईश्वर की विशेष कृपा दृष्टि होनी चाहिये। अतः पैग़म्बरे इस्लाम को महान ईश्वर की विशेष कृपादृष्टि पाप्त थी और वह मानवीय परिपूर्णता के लिए सर्वोत्तम आदर्श थे।
महान हस्तियां उच्च लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए नाना प्रकार की कठिनाइयां सहन करती हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने भी ईश्वरीय धर्म के प्रचार- प्रसार के लिए नाना प्रकार की कठिनाइयां सहन कीं। पैग़म्बरे इस्लाम रणक्षेत्र में उस साहस व बहादुरी का परिचय देते थे कि कोई भी इस्लामी योद्धा शत्रु से उतना निकट नहीं होता था जितना कि पैग़म्बरे इस्लाम हुआ करते थे। जब घमासान का युद्ध होता था और इस्लामी योद्धाओं में प्रतिरोध की क्षमता नहीं होती थी तो वे पैग़म्बरे इस्लाम की शरण में जाते थे और वहां से वे बहादुरी, साहस और प्रतिरोध की भावना प्राप्त करने के बाद शत्रुओं पर आक्रमण करते थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा में पैग़म्बरे इस्लाम की बहादुरी व साहस की भावना के बारे में फरमाते हैं” जब युद्ध की आग धहकती थी तो हम पैग़म्बर की शरण में जाते थे और उनकी छत्रछाया में रहते थे जबकि उस समय हममें से कोई भी पैग़म्बर की भांति शत्रु के निकट नहीं होता था”
नहजुल बलाग़ा को संकलित करने वाले दिवंगत सैयद रज़ी हज़रत अली अलैहिस्सलाम के इस कथन की व्याख्या में कहते हैं” हज़रत अली की बात का अर्थ यह है कि जब शत्रुओं का भय दिलों पर छा जाता था तो मुसलमान पैग़म्बरे इस्लाम की शरण में चले जाते थे ताकि ईश्वर पैग़म्बरे इस्लाम के माध्यम से उन्हें सुकून दे और उन्हें विजयी बनाये और वे पैग़म्बरे इस्लाम की छत्रयात्रा में सुरक्षित रहें। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के छोटे से वाक्य में एक सुन्दर साहित्यिक बिन्दु यह है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम घमासान युद्ध की उपमा, आग के दहकने से देते और कहते हैं कि उस कठिन परिस्थिति में पैग़म्बरे इस्लाम समस्त इस्लामी योद्धाओं से अधिक शत्रुओं से निकट होते थे और हम पैग़म्बरे इस्लाम की शरण में जाते थे।
पैग़म्बरे इस्लाम जहां ईश्वरीय धर्म इस्लाम के प्रचार- प्रसार के लिए प्रयास करते थे वहीं रणक्षेत्र में सबसे पहले अपने निकट संबंधियों को भजते थे। यह कार्य पैग़म्बरे इस्लाम की सच्चाई, निष्ठा और त्याग को दर्शाता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम मोआविया के नाम अपने एक पत्र में लिखते हैं” जब युद्ध अपने चरम पर होता था तो पैग़म्बर अपने परिजनों को रणक्षेत्र में भेजते थे ताकि उनके माध्यम से भालों और तलवारों से अपने अनुयाइयों की रक्षा कर सकें। जैसाकि पैग़म्बरे के चाचा के बेटे उबैदा बिन हारिस बदर में और पैग़म्बर के चाचा हमज़ा सैयदुस्शोहदा ओहद और पैग़म्बर के चाचा के बेटे जाफर बिन अबीतालिब मौता नामक युद्ध में शहीद हो गये”
यद्यपि ईश्वरीय धर्म और उसके संदेशों के प्रचार- प्रसार के लिए समस्त ईश्वरीय दूतों व पैग़म्बरों ने अनथक किया और इस मार्ग में उन्हें बहुत अधिक कठिनाइयों व समस्याओं का सामना करना पड़ा परंतु जितना कष्ट पैग़म्बरे इस्लाम ने उठाया उतना किसी ने भी नहीं उठाया और उसकी तुलना किसी और पैग़म्बरे से नहीं की जा सकती। इसके प्रमाण के रूप में स्वयं पैग़म्बरे इस्लाम के उस कथन को पेश किया जा सकता है जिसमें वे कहते हैं” किसी पैग़म्बर को उतना कष्ट नहीं पहुंचाया गया जितना मुझे पहुंचाया गया” हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस स्थिति का अपने भाषण नम्बर १९४ में बहुत सुन्दर ढंग से चित्रण करते हुए फरमाते हैं” पैग़म्बर ने ईश्वर के मार्ग में हर कठिनाई को गले लगाया और हर समस्या का सामना किया एक समय में उनके निकट संबंधियों ने उनसे शत्रुता की और शत्रुता व द्वेष के कारण दूसरों से जा मिले। अरब क़बीले पैग़म्बर से लड़ने के तैयार हो गये और चारों ओर से उनसे लड़ने के लिए एकत्रित हो गये। दूरस्थ और भूलाये जा चुके क्षेत्रों से भी अरब कबीलों ने आकर उनसे शत्रुता की”
हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के लिए दुआ करने के समय अपने भाषण नंबर ७२ में कहते हैं” हे ईश्वर अपने सबसे अच्छे और विभूतिपूर्ण सलाम व दुरूद को अपने बंदे व दूत मोहम्मद से विशेष कर कि वह अंतिम पैग़म्बर, बंद द्वारों को खोलने वाले और तर्क के साथ सत्य व हक़ को स्पष्ट करने वाले हैं। वह असत्य की सेना को भगाने वाले और पथभ्रष्ठ व गुमराह लोगों के वैभव का अंत कर देने वाले हैं। जिस तरह उन्होंने पैग़म्बरी के भारी दायित्व को अपने कांधे पर उठाया और तेरे आदेश के लिए प्रतिरोध किया और शीघ्र ही तेरे मार्ग में क़दम बढ़ाया यहां तक कि एक क़दम भी पीछे नहीं हटे और उनके इरादे में किसी प्रकार का विघ्न उत्पन्न नहीं हुआ और वहि अर्थात ईश्वरीय संदेश को लेने में दृढ व शक्तिशाली थे। वे तेरे वचनों के रक्षक थे और उन्होंने तेरे आदेश को लागू करने के लिए प्रयास किया यहां तक कि सत्य के प्रकाश को स्पष्ट और अज्ञानियों के लिए पथ को रौशन कर दिया और जो दिल पापों व बुराइयों में डूबे हुए थे उनका मार्ग दर्शन किया और न्याय की पताका लहरा दी”
इस्लाम और पवित्र कुरआन की शिक्षाओं में इस बात पर बल देकर कहा गया है कि मनुष्य की आत्मा जितना अधिक सांसारिक मोहमाया से मुक्त होगी वह उतना ही आत्मिक व आध्यात्मिक परिपूर्णता से निकट है। इस्लाम जहां मनुष्यों को सीमा से अधिक सांसारिक मोहमाया और बंधनों में पड़ जाने से मना करता है वहीं वह दुनिया से कटकर रहने से भी मना करता है। वह संतुलन की सुरक्षा को भलाई व मोक्ष तक पहुंचने का मार्ग मानता है। पैग़म्बरे इस्लाम इसके सर्वोत्तम उदाहरण हैं। अतः हज़रत अली अलैहिस्सलाम जीवन के समस्त क्षेत्रों में पैग़म्बरे इस्लाम को आदर्श के रूप में बयान करते हुए फरमाते हैं” निःसंदेह पैग़म्बर तुम्हारे लिए संपूर्ण आदर्श हैं कि जीवन का रास्ता उनसे सीखो और दुनिया की बुराइयों तथा दोषों की पहचान में वे बहुत अच्छे मार्गदर्शक हैं”
हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम की ज़ाहेदाना जीवन शैली अर्थात दुनिया से मुंह मोड़ लेने की विशेषता के बारे में फरमाते हैं” वह दुनिया से भूखे पेट गये और स्वस्थ शरीर व आत्मा के साथ स्वर्ग में प्रवृष्ठ हुए उन्होंने वैभवशाली घर का निर्माण नहीं किया यहां तक कि दुनिया को विदा कह दिया और अपने पालनहार के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया। ईश्वर ने पैग़म्बर को भेजकर हम पर कितना बड़ा एहसान व उपकार किया है और इस प्रकार की बड़ी अनुकंपा हमें प्रदान की है। एसा मार्गदर्शक जिसका हमें अनुसरण करना चाहिये और एसा पथप्रदर्शक कि हमें उसके मार्ग को जारी रखना चाहिये”