आज ज़िलहिज्जा महीने की १० तारीख है। आज इस्लामी जगत में बक़रीद मनाई जा रही है। बकरीद महान ईश्वर की इच्छा के समक्ष नतमस्तक होने की ईद है। बकरीद महान ईश्वर से सामिप्य का उत्सव मनाने की ईद है और ईद का यह अर्थ सांसारिक बंधनों से मुक्ति के बिना संभव नहीं है।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इस्लाम धर्म के जीवनदायक आदेशों और शिक्षाओं के पीछे बहुत से शिक्षाप्रद रहस्य नीहित हैं। हज में भी कुछ एसे कार्यक्रम व संस्कार हैं जिनमें हर एक में विशेष रहस्य नीतित हैं। हज का एक संस्कार ईद के दिन कुर्बानी करना है। कुर्बानी के रहस्य के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। शायद कहा जा सकता है कि कुर्बानी करने का एक उद्देश्य महान ईश्वर के मार्ग में धन और भौतिक संभावनाओं को खर्च करने की परीक्षा लेना है। बकरीद में इंसान लालच की गर्दन मार देता है और अपने धन- सम्पत्ति के एक भाग को खर्च करके महान ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने का प्रयास करता है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जिस तरह से सूरे हज की आयत नंबर ३७ में आया है कि कुर्बानी किये हुए मांस और खून से ईश्वर को कोई लाभ नहीं पहुंचेगा बल्कि यह चीज़ तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय और सदाचारिता का कारण है। वास्तव में यही तक़वा और सदाचारिता है जो इंसान के विकास एवं उन्नति का कारण बनेगी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस कार्य का मूल्य दर्शाने के लिए फरमाते हैं” अगर लोग यह जानते कि ईद के दिन कुरबानी करने का क्या पुण्य है? तो ऋण लेकर कुर्बानी कराते क्योंकि कुर्बानी के खून के पहली बूंद से कुर्बानी करने वाले के समस्त पाप क्षमा कर दिये जाते हैं”
हज करने वाला आज के दिन हर सांसारिक बंधन की कुर्बानी कर देता है ताकि हल्का होकर ईश्वरीय मार्ग में कदम बढाये। तो हर इंसान को चाहिये कि वह यह देखे कि उसके अंदर कौन सी चीज़ है जो दुनिया से दिल लगा बैठने और ईश्वर से दूरी का कारण बनी है। महान ईश्वर की बंदगी के मार्ग में बहुत से खतरे और परीक्षाएं मौजूद हैं। इस ईश्वरीय परीक्षा में हज़रत ईस्माइल की कुर्बानी है। हज़रत ईस्माइल हज़रत इब्राहीम के प्राणप्रिय पुत्र हैं और वह हज़रत इब्राहीम के बूढा हो जाने पर पैदा हुए थे और महान ईश्वर ने ही उनके पैदा होने की शुभ सूचना दी थी।
सूरे साफ्फात की १००वीं आयत में आया है कि इब्राहीम ने ईश्वर से एक भले बेटे की विनती की थी और ईश्वर ने भी वर्षों की प्रतीक्षा के बाद इब्राहीम को इस्माईल प्रदान किया”
जब हज़रत इस्माईल बालिग़ हो गये तो उनके पिता हज़रत इब्राहीम ने स्वप्न में देखा कि वह महान ईश्वर के आदेश से अपने बेटे को कुर्बान कर रहे हैं। यह स्वप्न उन्होंने कई बार देखा। चूंकि पैग़म्बरों का स्वप्न सच्चा होता है वह खयाल नहीं होता है इसलिए हज़रत इब्राहीम ने अपने स्वप्न से यह निष्कर्ष निकाला कि उन्हें अपने बेटे की कुर्बानी करनी चाहिये। इसके बाद उन्होंने अपने स्वप्न को अपने बेटे हज़रत इस्माईल से बताया। हज़रत इस्माईल पूरी निष्ठा के साथ इस प्रकार उत्तर दिया। हे पिता आप को जो कुछ आदेश मिला है उसे अंजाम दीजिये ईश्वर ने चाहा तो आप मुझे धैर्य करने वालों में पायेंगे।
इसके बाद हज़रत इब्राहीम ने अपने प्राणप्रिय पुत्र हज़रत इस्माईल की भेंट चढाने का फैसला किया हालांकि शैतान ने हज़रत इब्राहीम को बहकाने की बहुत चेष्टा की परंतु हज़रत इब्राहीम पूरे विश्वास के साथ हज़रत इस्माईल को भेंट चढाने के लिए रवाना हो गये। जब बाप- बेटे उस स्थान पर पहुंच गये जहां भेंट पढ़ानी थी तो हज़रत इस्माईल ने अपना सिर ज़मीन पर रख दिया और इस बात की प्रतीक्षा करने लगे कि उनके पिता उनकी भेंट चढायें। हज़रत इब्राहीम ने तेज़धार चाकू हज़रत इस्माईल की गर्दन पर रखा। उन्होंने बहुत प्रयास किया परंतु हज़रत इस्माईल की गर्दन नहीं कटी। इस कठिन परीक्षा में हज़रत इब्राहीम सफल हुए क्योंकि उन्होंने ईश्वर को प्रसन्नता के लिए अपने त्यारे बेटे से हाथ उता लिया वह शैतान के उकसावे एवं बहकावे में नहीं आये वह अपनी सबसे अधिक पसंद चीज़ की कुर्बानी करने के लिए मैदान में पहुंच गये और उन्होंने महान ईश्वर के निकट उच्च स्थान प्राप्त कर लिया। इस आधार पर महान ईश्वर की ओर से आवाज़ आई कि इब्राहीम पर ईश्वर का सलाम हो। हम इस प्रकार भला कार्य करने वालों को पारीतोषिक देंते हैं”
बकरीद में हज़रत इब्राहीम और हज़रत इस्माईल के महाबलिदान की घटना की याद ताज़ा हो जाती है। इस ईद से समस्त लोगों को यह शिक्षा मिलती है कि महान ईश्वर पर ईमान लाने वाले व्यक्ति को चाहिये कि वह अपनी कथनी और करनी के अतिरिक्त पूरा अस्तित्व ईश्वरीय आदेश के समक्ष नतमस्तक कर दे। इसी कारण हज संस्कार में समस्त हाजी लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक का वाक्य बार बार दोहराते हैं इस प्रकार वे महान ईश्वर के प्रति अपनी बंदगी की घोषणा करते हैं। वे इस वाक्य को दोहरा कर शाब्दिक दृष्टि से हज़रत इब्राहीम के साथ हो जाते हैं। जिस तरह हज़रत इब्राहीम ने कहा था कि निःसंदेह मेरी नमाज़, मेरी उपासना, मेरा जीवन और मेरी मौत सब ईश्वर के लिए है कि वह विश्व वासियों का पालनहार है”
कुर्बानी करने के कुछ नियम हैं। कुर्बानी करने का एक नियम है कि कुर्बानी करने वाले को मुसलमान होना चाहिये और इस कार्य का आरंभ महान ईश्वर के पावन नाम से होना चाहिये। इसी प्रकार कुर्बानी करते हुए मुंह क़िबले की ओर होना चाहिये। इन समस्त कार्यों का एक लक्ष्य व अर्थ है और वह महान ईश्वर की बंदगी है। क़िबले की ओर मुंह करके कुर्बानी करने से हमें यह सीख मिलती है कि परिपूर्णता के मार्ग में चलने से पहले क़िबले का निर्धारण होना चाहिये। यानी हमारा मुख और हमारे जीवन का लक्ष्य महान ईश्वर होना चाहिये और दूसरी चीज़ नहीं। जो चीज़ें शक्ति और ग़लत इच्छाओं की प्रतीक हैं उन सबसे दूरी करनी चाहिये। जो व्यक्ति कुर्बानी करना चाहता है उसे मुसलमान होना चाहिये यानी वह इस चरण पर पहुंचा हो कि महान ईश्वर की इच्छा के समक्ष नतमस्तक हो और वह यह सोचे कि मुझे हज़रत इब्राहीम की भांति बनना चाहिये और समय आने पर अपनी प्रियतम चीज़ को ईश्वर की प्रसन्नता के लिए कुर्बान कर देगा। अगर त्याग व बलिदान की यह भावना उसके अंदर नहीं पैदा हुई तो कुर्बानी करने से वह लाभ नहीं उठा सकेगा जो उठाना चाहिये। क्योंकि इस प्रकार की कुर्बानी ह़ज़रत हाबील और उनके भाई काबील की कुर्बानी की भांति हो जायेगी। हज़रत आदम के दो बेटों हज़रत हाबील और काबील ने महान ईश्वर की सेवा में अपनी अपनी कुर्बानी पेश की। हज़रत हाबील की कुर्बानी को महान ईश्वर ने स्वीकार कर लिया क्योंकि वह पूरी तरह महान ईश्वर के आदेश के समक्ष नतमस्तक थे जबकि काबिल की कुर्बानी स्वीकार नहीं की गयी। ईदे कुर्बान या बकराईद एक प्रकार से हज़रत इब्राहीम और हज़रत इस्माईल के त्याग व बलिदान की याद दिलाती है। हर काल के समस्त लोगों को चाहिये कि वे हज़रत इब्राहीम और हज़रत इस्माईल की कुर्बानी से पाठ लें और अपने प्रियतम चीज़ को महान ईश्वर की राह में कुर्बान करने के लिए तैयार रहें। क्योंकि इंसान का अपने आंतरिक शत्रु से अर्थात अपनी ग़लत व अवैध इच्छाओं से मुकाबला विदित शत्रु के मुकाबले से बहुत सख्त है। इस कुर्बानी एवं जेहाद में अपनी अवैध आंतरिक इच्छाओं की भेंट चढ़ा देनी चाहिये। बनी इस्राईल के संबंध में आया है कि जब उन्होंने उद्दंडता की तो महान ईश्वर का आदेश आया कि स्वयं की हत्या करो। पवित्र कुरआन के कुछ व्याख्याकर्ताओं ने कहा है कि स्वयं की हत्या करने का अर्थ अपनी ग़लत आंतरिक इच्छाओं की हत्या है। इस आधार पर परिज्ञान की दृष्टि से कुर्बानी करने का अर्थ गलत आंतरिक इच्छाओं की कुर्बानी दे देना है।
बकराईद के दिन का एक कार्य दूसरों को खाना खिलाना है। इस कार्य का लक्ष्य भी इंसान की इच्छाओं को सुधारना है। जब हाजी ईश्वर के प्रेम में दूसरों को खाना खिलाता है तो वास्तव में वह कंजूसी जैसे अवगुणों की हत्या करता है और ग़लत आंतरिक इच्छा से उसे तथा समाज को जो क्षति पहुंचने वाली थी उससे वह स्वयं को सुरक्षित कर लेता है। आज बकराईद है महान ईश्वर से सामिप्य का दिन है। हमें चाहिये कि अपने दिलों को महान ईश्वर की ओर कर लें ताकि महान ईश्वर की विभूति एवं उसके मार्गदर्शन से लाभ उठायें। एक बार फिर बकरीद के शुभ अवसर पर आप सबकी सेवा में हार्दिक बधाई प्रस्तुत करते हैं और बकराईद के संबंध में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्लाम के कथन को पेश करते हैं।
इमाम फरमाते हैं” हे ईश्वर आज के दिन मैं तुझसे मार्गदर्शन चाहता हूं उसके बाद तू मोहम्मद और उनकी संतान पर दुरूद व सलाम भेज मेरा मार्गदर्शन कर, मैं तेरी दया चाहता हूं तो मोहम्मद और उनकी औलाद पर दुरुद स सलाम भेज और मुझ पर दया कर। मैं तुझसे आजीविका चाहता हूं मेरे दयालु पालनहार विभूतियों व अनुकंपाओं का स्वामी मोहम्मद व आले मोहम्मद पर सलाम भेज और जो कुछ मैंने तुझसे मांगा है तू उसे मुझे प्रदान कर हे कृपालुओं के कृपालु”