कृपया प्रतीक्षा करें

हज़रत अब्बास इमाम सादिक़ (अ) और इमाम ज़माना (अ) की निगाह में

 

 इमामे सादिक़ (अ) जो कि स्वंय इस्लामी दुनिया में बिना किसी मदभेद के सबसे बड़े ज्ञानी माने जाते हैं जिनके ज्ञान का चर्चा उनके युग से लेकर आज तक बड़े बड़े विद्वानों की ज़बानों से सुनाई देता है, आप सदैव ही हज़रत अब्बास वफ़ा के शाहकार और कर्बला के प्यासों की आशा की तारीफ़ किया करते थे और सदैव की आपको अच्छे शब्दों में याद करते हुए दिखाई देते हैं। और आशूर के दिन हज़रत अब्बास की वीरता और उनके किये हुए कार्यों को बयान करते हुए दिखाई देते हैं।

आपने हज़रत अब्बासे के बारे में बहुत कुछ फ़रमाया है और आपके इन्ही कथनों में से एक यह है जो आपने बनी हाशिम के चाँद के लिये फ़रमायाः

मेरे चचा अब्बार बिन अली, साहेबे बसीरत और मज़बूत ईमान वाले थे। आपने अपने भाई इमाम हुसैन के साथ जिहाद किया, और इस परीक्षा में सफ़ल रहे और शहीद इस दुनिया से गए। (1)

ध्यान देने वाली बात यह है कि आपके इस कथन में आपने हज़रत अब्बास के लिये तीन बातें कहीं है और यह वही गुण हैं जिनको इमाम सादिक़ (अ) ने अपने चचा अब्बास में देखा और प्रभावित हुएः

 

1.    होशियारी या बसीरत

 

इन्सान के अंदर होशियारी या बसीरत उस समय तक पैदा नहीं हो सकती है कि जब तक उसकी राय सही और उसकी सोंच हिदायत पर न हो और यह बसीरत इन्सान को उस समय तक प्राप्त नहीं होती है जब कि इन्सान की नियत में सच्चाई न हो और उसने अहंकार और शारीरकि इच्छाओं को त्याग कर उन पर कंट्रोल न कर लिया हो।

बसीरत हज़रत अब्बास का बहुत सी स्पष्ट गुण था, यह आपकी बसीरत ही थी जिसने आपको समय के  इमाम, इमाम हुसैन (अ) की रकाब में खड़ा कर दिया और आप इज़्ज़त और सम्मान की उस चोटी पर पहुंच गये कि आज आपका नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है।

तो अब रहती दुनिया तक जब तक इन्सानी गुणों का महत्व बाक़ी रहेगा और लोग उनका सम्मान करते रहेंगे, जो जब जब भी हज़रत अब्बास का नाम आएगा तो इन्सानों की पेशानी सम्मान में झुक जाया करेगी।

इसी चीज़ के महत्व को बयान करते हुए इमाम सादिक़ (अ)  ने फ़रमाया थाः कि मेरे चचा साहेबे बसीरत थे।

 

2.    मज़बूत ईमान

 

 हज़रत अब्बास की दूसरी विशेषता जिसने इमाम सादिक़ (अ) का ध्यान अपनी तरफ़ ख़ींचा वह अपका पक्का ईमान था, आपके मज़बूत ईमान की निशानियों में से एक अपने भाई इमाम हुसैन (अ) की तरफ़ से जिहाद करना था कि जिसका मक़सद ईश्वर की प्रसन्नता के प्राप्त करना था। जैसा कि जब हम कर्बला में आपके रजज़ों को पढ़ते हैं तो उनसे पता चलता है कि इस वीर बहादुर सेनापति के अंदर दुनियावी और माद्दी चाहत एक ज़र्रे के बराबर भी नहीं था और यह आपके मज़बूत ईमान की सबसे बड़ी दलील है।

 

3.    इमाम हुसैन (अ) के साथ जिहाद

 

एक और वह गुण जिसको इमाम सादिक़ (अ) ने अपने चचा, कर्बला के विजेता हज़रत अब्बास के बारे में बयान किया है वह सैय्यदुश शोहदा पैग़म्बर के नवासे और जन्नत के जवानों के सरदार की रकाब में जिहाद करना है।

 भाई के मक़सद के लिये जिहाद यह वह सबसे बड़ा सम्मान था जो हज़रत अब्बास (अ) ने प्राप्त किया और उसको बेहतरीन अंदाज़ में पूरा किया और अपनी वीरता और बहादुरी से दिखा दिया की वह वास्तव में सेनापति कहलाये जाने के हक़दार थे। (2)

 

हज़रत अब्बास (अ) इमाम महदी (अ) की निगाह में

 

दुनिया के सबसे बड़े सुधारक, ईश्वर की वह हुज्जत जो इस संसार से अत्याचार और ज़ुल्म का नाम व निशान मिटाएगी, वह इमाम जिसकी आज सारी दुनिया प्रतीक्षा कर रही है, आप अपने स्वर्णीय कथन में हज़रत अब्बास के बारे में इस प्रकार फ़रमाते हैं

सलाम हो अबुल फ़ज़्ल पर, अब्बास अमीरुल मोमिनीन के बेटे, भाई से सबसे बड़े हमदर्द जिन्होंने अपनी जान उन पर क़ुरबान कर दी, और गुज़रे हुए कल (दुनिया) से आने वाले कल (आख़ेरत) के लिये लाभ उठाया, वह जो भाई पर फ़िदा होने वाला था, और जिसने उनकी सुरक्षा की और उन तक पानी पहुंचाने की सारी कोशिश की और उनके दोनों हाथ कट गये, ईश्वर उनके हत्यारों यज़ीद बिन रेक़ादऔर हैकम बिन तुफ़ैल ताईपर लान करे। (3)

 

इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम अपने चचा हज़रत अब्बास (अ) के गुणों को इस प्रकार बयान करते हैं

 

1.    बहुत की कठिन समय में अपने भाई सैय्यदुश शोहदा के साथ हमदर्दी और उनके साथ खड़े रहने, जिसको आज भी तारीख़ में याद किया जाता है और हज़रत अब्बास की वफ़ादारी को क़सीदा पढ़ा जाता है।

2.    आख़ेरत का ध्यान रखना और उसके लिये तक़वे का चुनाव, और मार्गदर्शक इमाम की सहायता।

3.    जन्नत के जवानों के सरदार इमाम हुसैन (अ) के लिये अपने भाईयों और उनके बच्चों की जान की क़ुरबानी देना।

4.    अपने मज़लूम भाई की अपने ख़ून से सुरक्षा।

5.    अहलेबैते हरम और इमाम हुसैन (अ) तक पानी पहुंचाने की कोशिश करना, ऐसे कठिन समय में जब यज़ीद की एक बड़ी सेना इमाम हुसैन तक पानी पहुँचने में रुकावट थी। (4)

 

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1.    ज़ख़ीरतुद दारीन, पेज 123 उमदतुम मतालिम के रिफ़्रेंस के साथ

2.    ज़ख़ीरतुद दारीन, पेज 123 उमदतुम मतालिम के रिफ़्रेंस के साथ

3.    ज़ख़ीरतुद दारीन, पेज 123 उमदतुम मतालिम के रिफ़्रेंस के साथ

4.    अलमज़ार मोहम्मद बिन मशहदी

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

 

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उपयोगकर्ता टिप्पणियाँ (1)
zaidi ( 27 آبان 1393 )
بسلام و خسته نباشید این مقاله ای که شما زدید خیلی عالی است خدا شما را اجر دهد، ولی اگر اسم نویسنده که زحمت نوشتن این مقاله را کشیده است به جای اینکه آن را کوچک کنید و پایین مقاله بعد از حواله جات بنویسید، اگر همان بالا می نوشتی کار شما هم استندارد می شد و هم بدون اشکال. تا حالا دیده اید که اسم نویسنده در آخر باشد؟؟؟؟؟ والسلام
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