तीसरी हिजरी कमरी साल के शाबान महीने की तीन तारीख थी। इसी दिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम के छोटे बेटे हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ। अस्मा बिन्ते उमैस ने नवजात बच्चे को एक सफेद कपड़े में लपेट कर पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में ले गईं। पैग़म्बरे इस्लाम ने बड़ी ही खुशी के साथ अपने नाती को अपनी गोद में लिया और उसके दाहिने कान में अज़ान और बायें कान में एक़ामत कही। पैग़म्बरे इस्लाम जब नवजात बच्चे का नाम रखना चाहते थे तो उस समय अल्लाह के ख़ास फरिश्ते हज़रत जिब्राईल उतरे और पैग़म्बरे इस्लाम से कहा अल्लाह आपको सलाम कहता हैं और फरमाता है" अली का आपसे वही रिश्ता है जो रिश्ता हारून का मूसा से था। तो इस बच्चे का नाम हारून के छोटे बच्चे के नाम पर रख दीजिये जो कि शब्बीर था और चूंकि आपकी ज़बान अरबी है तो इस नवजात का नाम हुसैन रख दीजिये जिसका मतलब शब्बीर है। इस आधार पर पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का नाम हुसैन रख दिया।
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इंसानों को प्रतिष्ठा व इज़्ज़त का रास्ता दिखाकर इतिहास में चमक रहे हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अत्याचार के मुकाबले में पूरी इंसानियत को आज़ादी का सबक़ दिया है, उसे इंसानियत कभी भुला नहीं सकती और हर इंसान इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से ख़ास लगाव रखता है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम वह महान हस्ती हैं जिन्होंने बहादुरी, न्याय, प्यार, त्याग और बलिदान का जो बेजोड़ उदाहरण पेश किया है वह पूरी इंसानियत के लिए आदर्श है। दूसरे शब्दों में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का सदाचरण हर इंसान के लिए आदर्श है चाहे उसका सम्बंध किसी भी धर्म, जाति या समुदाय से हो। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जो महाआंदोलन किया उसका आधार कुरआन की शिक्षाएं थीं। जिन हस्तियों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को पाला पोसा, उनमें से हर एक सभी के लिए पूरी तरह से आदर्श है। पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. पर जब वह्यि यानि अल्लाह का संदेश उतरता था तो अपने प्यारे नाती को भी उससे लाभ पहुंचाते थे। उनकी मां हज़रत फातेमा ज़हरा और बाप हज़रत अली अलैहिस्सलाम थे।
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