Hindi
Sunday 13th of October 2024
0
نفر 0

आशूरा का पैग़ाम, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़बानी

आशूरा का पैग़ाम, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़बानी

इमाम हुसैन अ.स. का करबला में आ कर ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का कारण इस्लामी समाज में पैदा की गई वह गुमराहियां और बिदअतें थीं जिसकी बुनियाद सक़ीफ़ा में रखी गई थी, जिसके बाद से इस्लामी हुकूमत अपनी जगह से भटक कर बहुत से ग़लत रास्तों पर चली गई और विशेष कर इमाम अली अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद हुकूमत का पूरा सिलसिला बनी उमय्या के घराने में चला गया, कुछ इतिहास विशेषज्ञों के अनुसार बनी उमय्या का इस्लामी अक़ाएद और उसूल से कोई लेना देना नहीं था।(अल-दरजातुर-रफ़ीआ, पेज 243, शरहे नहजुल बलाग़ा, इब्ने अबिल-हदीद, जिल्द 5, पेज 257 / मुरव्वजुज़-ज़हब, मसऊदी, जिल्द 3, पेज 454)

सन 40 हिजरी के बाद से हुकूमत जब बनी उमय्या के पास आई उस समय से ले कर 20 साल तक बनी उमय्या ने दीन का ऐसा मज़ाक़ बनाया कि उसकी तस्वीर ही बदल कर रख दी, हद तो तब हुई जब बनी उमय्या ने यज़ीद को हुकूमत के लिए चुन लिया, जिसके बाद गुमराही, बिदअतें और इस्लामी क़ानून का मज़ाक़ खुले आम उड़ाया जाने लगा, ऐसा लग रहा था जैसे जेहालत का दौर इस्लाम का रूप धारण कर वापस आ गया हो। (इस बारे में अधिक जानकारी के लिए इमाम हुसैन अ.स. व जाहिलिय्यते नौ नामी किताब पढ़ी जा सकती है)

इमाम हुसैन अ.स. के अलावा भी अगर अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के घराने की कोई और शख़्सियत होती वह भी उम्मत की इस गुमराही, दीन से दूरी, बिदअत और खुले आम लोगों के हराम कामों पर चुप न बैठती, यही वजह है कि इमाम हुसैन अ.स. ने ख़त और अपनी तक़रीरों से यज़ीद के घटिया और हराम कामों पर विरोध जताया, इमाम हुसैन अ.स. का विरोध जताना ख़ुद इस बात की दलील है कि यज़ीद एक बेदीन, गुमराह और बिदअतों को फैलाने वाला इंसान था जो खुले आम हराम कामों को अंजाम देता था। इमाम हुसैन अ.स. द्वारा विरोध जताने से यह बात साबित हो जाती है कि मुसलमान हाकिम और ख़लीफ़ा के लिए कुछ शर्ते हैं जिस के बिना कोई भी ख़लीफ़ा नहीं बन सकता और बनी उमय्या के पूरे घराने में किसी में भी वह शर्तें नहीं पाई जाती थीं। इतिहास गवाह है कि बनी उमय्या के हाकिमों की केवल यही कोशिश रही है कि इस्लाम की पूरी तस्वीर ही को बदल दिया जाए, जिसका नमूना आज उन्ही की नस्लों द्वारा पूरी दुनिया में देखा जा सकता है।

इमाम हुसैन अ.स. ने मक्का पहुंचने के बाद बसरा के हाकिम को इस प्रकार ख़त लिखा कि: मैं अपना ख़त अपने क़ासिद के साथ भेज रहा हूं, मैं तुम लोगों को अल्लाह की किताब और पैग़म्बर स.अ. की सुन्नत पर अमल करने की दावत देता हूं, क्योंकि अब कुछ ऐसी परिस्थिति बन गई है जिसमें पैग़म्बर स.अ. की सुन्नत पर अमल बिल्कुल छोड़ दिया गया है और बिदअतों को बढ़ावा दिया जा रहा है, अगर तुम लोगों ने मेरी बात मान ली तो मैं तुम लोगों को सीधे रास्ते की हिदायत करूंगा। (तारीख़ुल-उमम वल मुलूक, तबरी, जिल्द 6, पेज 200)

फ़िर आप ने उस ख़त में यह भी फ़रमाया कि अब हक़ पर बिल्कुल अमल नहीं हो रहा है। इमाम हुसैन अ.स. ने इराक़ के रास्ते में "ज़ी हसम" नामी जगह पर एक ख़ुतबे में इरशाद फ़रमाया कि: जो हो रहा है सामने है, हक़ीक़त में समाज बहुत बदल गया है, बुराइयां खुले आम हो रही हैं और नेक कामों को कोई पूछने वाला नहीं रह गया, नेकियों का हाल तो बिल्कुल किसी बर्तन के पानी को पूरा गिरा देने के बाद कुछ बूंदें रह जाने के जैसा है, लोग अपमान जनक ज़िंदगी जी रहे हैं, ज़िंदगी एक बंजर और पथरीली चरागाह की तरह हो गई है जिसमें न घास है न ही कुछ और खाने की चीज़। क्या तुम लोग देख नहीं रहे कि हक़ पर अमल करने वाला कोई नहीं है और बातिल को हर तरफ़ से बढ़ावा दिया जा रहा है, ऐसी अपमानजनक ज़िंदगी जीने से बेहतर सम्मानजनक मौत है, मैं इन ज़ालिमों और अत्याचारियों के साथ ज़िंदगी जीने को अपने लिए अपमान समझता हूं। (तोहफ़तुल उक़ूल, हसन इब्ने अली इब्ने शोबा, पेज 245 / तारीख़ुल-उमम वल मुलूक, तबरी, जिल्द 6, पेज 239)

बनी उमय्या के हाकिमों ने अपनी घटिया सियासत के चलते लोगों की दीनदारी की ऐसी कायापलट की कि नैतिकता नाम की कोई चीज़ बाक़ी नहीं बची थी, रूहानियत दम तोड़ रही थी, इमाम अ.स. ने "ज़ी हसम" में दिये गये ख़ुत्बे में फ़रमाया: लोग दुनिया के ग़ुलाम हैं, दीन केवल उनकी ज़बानों पर है, जब उनके पेट भरे रहते हैं तो दीन याद रहता है जैसे ही थोड़ी मुश्किल आती है दीनदार ढूंढ़ने से भी नहीं मिलता।

आशूरा और करबला का पैग़ाम केवल उसी दौर के लिए नहीं था, बल्कि हर आने वाली नस्ल के लिए था, जब भी जहां भी हक़ पर अमल न हो, बातिल से लोग दूरी न बनाएं, बिदअतों को बढ़ावा दिया जा रहा हो, अल्लाह के हुक्म को रौंदा जा रहा हो, पैग़म्बर स.अ. की सुन्नत को मिटाने की कोशिश हो, उस दौर का हाकिम लोगों पर ज़ुल्म और अत्याचार कर रहा हो, समाज में जेहालत फैल रही हो और फ़ितना और फ़साद तेज़ी से अपनी जगह बना रहा हो वहां करबला और आशूरा के पैग़ाम को ज़िंदा करना ही हुसैनियत है।

लब्बैक या हुसैन अ.स

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

इमाम जाफ़र सादिक़ फ़रमाते हैं:
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ...
इमाम मूसा काज़िम (अ.ह.) के राजनीतिक ...
सबके लिए दुआ करने का फ़ायदा
इमाम हुसैन(अ)का आन्दोलन
अल्लाह के इंसाफ़ का डर
हज़रत फातेमा मासूमा का शुभ जन्म ...
हज़रत इमाम हसन अस्करी (स) के उपदेश
शब्दकोष में शिया के अर्थः
इमाम हसन अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म ...

 
user comment