पैग़म्बरे इस्लाम (सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम) की बेअसत की पैग़म्बरी की आधिकारिक ऐलान का दिन है। इस दिन अल्लाह ने अपनी कृपा व दया के अथाह समंदर के माध्यम से इंसान को लापरवाही और गुमराही के अंधेरे से निकाला। पैग़म्बरे इस्लाम (सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम) को यह महान ज़िम्मेदारी सौंपी गई। पैग़म्बरे इस्लाम (सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम) की पैग़म्बरी का आधिकारिक ऐलान इंसान इतिहास की बहुत ही निर्णायक घटना है। ऐसी महान घटना जिसके घटने से आख़री पैग़म्बर रसूले इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही सल्लम के पाक मुंह से क़ुरआने मजीद की आयतें जारी हुईं और क़ुरआने मजीद ने इस महान घटना को महान उपकार और अल्लाह की रहमत बताया है।
क़ुरआने मजीद के सूरए आले इमरान की आयत संख्या 164 में आया है कि निःसन्देह, अल्लाह ने ईमान वालों पर उपकार किया उस समय जब उसने उन्हीं में से एक को पैग़म्बर बनाकर भेजा ताकि वह उन्हें अल्लाह की आयतें पढ़कर सुनाए और उन्हें (बुराइयों से) पाक करे तथा उन्हें किताब व तत्वदर्शिता की शिक्षा दे। निःसन्देह इससे पहले वह खुली हुई गुमराही में थे।
पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही सल्लम की पैग़म्बरी का आधिकारिक ऐलान इंसानी इतिहास में नया मोड़ था, जिसे उस समय दुनिया में जारी परिवर्तनों को जानने से उनकी पैग़म्बरी का महत्त्व और ज़्यादा स्पष्ट हो जाता है।
पैग़म्बर स.अ की बेअसत के समय दुनिया पतन का शिकार और संकट में ग्रस्त थी। जेहालत, लूटपाट, अत्याचार, कमज़ोरों और वंचितों के अधिकारों की अनदेखी, गुमराही, भेदभाव, अन्याय और इंसानियत और शिष्टाचार से दूरी, उस समय के समाजों में फैला हुआ था। इसी मध्य अरब प्रायद्वीप ख़ास कर पाक शहर मक्का के हालात, सांस्कृतिक, राजनैतिक व सामाजिक निगाह से सबसे बुरी व सबसे ख़राब थे। जाहिल अरब हाथ से बनाई लकड़ी व मिट्टी की मूर्ति के आगे नतमस्तक होते थे और इन बे जान मूर्ति को ख़ुश करने के लिए बलि चढ़ाते थे और उनसे मदद मांगते थे और हर समझदार व बुद्धिमान आदमी को आश्चर्य व खेद प्रकट करने पर मजबूर कर देते थे।
अल्लाह क़ुरआने मजीद की कुछ आयतों में उस ज़माने में प्रचलित कुछ ग़ैर इंसानी संस्कारों और बुराइयों की ओर इशारा करते हुए जेहालत के ज़माने में प्रचलित ग़ैर इंसानी परंपराओं की पोल खोलता है। पैग़म्बरे इस्लाम (सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम) के हवाले से अरब दुनिया में उस ज़माने के हालात के बारे में आया है कि एक दिन क़ैस बिन आसिम पैग़म्बरे इस्लाम (सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम) के पास आया और कहता है कि या रसूल अल्लाह, मैंने जेहालत के ज़माने में अपनी आठ ज़िंदा लड़कियों को ज़िंदा ज़मीन में गाड़ दिया। जब आसिम इब्ने क़ैस अपनी आठ ज़िंदा लड़कियों को ज़िंदा ज़मीन में गाड़ने की घटना बयान कर रहा था तो पैग़म्बरे इस्लाम के चेहरे का रंग बदला और तेज़ी से उनकी आंखों से आंसू जारी हो गये और उन्होंने अपने निकट बैठे लोगों से कहा कि यह निर्दयता है और जो दूसरों पर दया नहीं करेगा, अल्लाह भी उस पर दया नहीं करेगा।
उस ज़माने में अरब में जितनी गुमराही फैली हुई थी शायद दुनिया के किसी दूसरी जगह पर उस तरह गुमराही फैली हो। यही कारण है कि इस्लाम धर्म के आने से पहले उस ज़माने को जेहालत का ज़माना कहते हैं और उस समय के लोगों को बद्दू अरब कहा जाता है। उस ज़माने के अरब न केवल पढ़ते लिखते नहीं थे बल्कि हर तरह के इल्म व तकनीक से दूर थे और इल्म व तर्क से परे भविष्यवाणी करते थे और उल्टी सीधी बातों का अनुसरण करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम (सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम) ऐसे ही लोगों को सुधारने के लिए भेजे गये थे ताकि न केवल उस ज़मीन पर बल्कि पूरे इतिहास में पूरी दुनिया के लिए मुक्ति की नौका हों। अब जब हम पैग़म्बरे इस्लाम (सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम) के संदेश से थोड़ी सा परिचित हो गये तो हमारे लिए यह वास्तविकता स्पष्ट हो जाती है कि उनकी दावत आरंभ से ही इल्म और तर्क पर आधारित रहा था। क़ुरआने मजीद और पैग़म्बरे इस्लाम ने सभी से यह मांग की है कि मनन चिंतन करें और उसी को स्वीकार करें जिसकी इल्म व तर्क पुष्टि करें।
इस बात के दृष्टिगत कि पैग़म्बरे इस्लाम उस जाति के मध्य ज़िंदगी व्यतीत कर रहे थे जिनका ज़िंदगी कुरीतियों से भरा हुआ था किन्तु पैग़म्बरे इस्लाम के लिए सबसे गौरव की बात भी यही थी कि उन्होंने भ्रांतियों और कुरीतियों से संघर्ष किया क्योकि तौहीद की विचार के फैलने के लिए आवश्यक था कि इल्म और तर्क की छत्रछाया में जेहालत से संघर्ष किया था। निसंदेह पैग़म्बरे इस्लाम के लक्ष्यों में से एक ग़लत रीतियों का विरोध और तर्क व इल्म को प्रचलित करना था।
पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी पूरी ताकत लगा दी ताकि लोग वास्तविकता तक पहुंचे न कि भ्रांतियों और कुरीतियों में पड़े रहें। इतिहास में है कि उनके इकलौते बेटे हज़रत इब्राहीम का जब स्वर्गवास हुआ तो वह बहुत रोये। उनके स्वर्गवास के दिन सूरज ग्रहण लग गया और कुरीतियों का शिकार लोग इस घटना को दुख की महान निशानी समझ बैठे और उन्होंने कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम के बेटे की मौत के कारण सूरज ग्रहण लगा है। जब पैग़म्बरे इस्लाम ने यह बातें सुनी तो मिंबर पर आये और कहने लगे कि सूरज और चांद दोनों ही अल्लाह की महान निशानियां हैं और उसके आदेशों का कहना मानते हैं और कभी भी किसी के जीने या मरने से इनको ग्रहण नहीं लगता।
हालांकि यह घटना, पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी के हवाले से लोगों की आस्थाओं को मज़बूत करती लेकिन वह हरगिज इस बात से राज़ी नहीं हुए कि उनकी हैसियत ग़लत रीति के माध्यम से लोगों के दिलों में मज़बूत हो। पैग़म्बरे इस्लाम नहीं चाहते थे कि लोगों की कुरीतियों सहित उनकी कमज़ोरियों से उनके मार्गदर्शन के लिए फ़ायदा उठाएं बल्कि वह चाहते थे कि वह पूरी जागरूकता और पूरे इल्म से इस्लाम को स्वीकार करें क्योंकि अल्लाह क़ुरआने मजीद में पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहता है कि लोगों को तत्वदर्शिता और उपदेश के माध्यम से अल्लाह की ओर बुलाओ।
मनन चिंतन उन विषयों में से था जिस पर पैग़म्बरे इस्लाम ने बहुत ज़्यादा बल दिया था। वह कहते थे कि अल्लाह ने अपने बंदों को इल्म से बढ़कर कोई चीज़ प्रदान नहीं की है।
सैद्धांतिक रूप से हर वैचारिक व्यवस्था में इल्म की मदद ली जानी चाहिए। अगर हम अल्लाह के एक होने, पैग़म्बरों के वुजूद, वह्यि और इन जैसे विषयों को साबित करना चाहें तो हमें बौद्धिक तर्कों की मदद लेनी पड़ेंगी। ग़लत आस्था से सही आस्था को पहचानने के लिए इल्म ही है जो इंसान की मदद करता है धार्मिक शिक्षाओं की छाया में वास्तविकता तथा भ्रांति के मध्य सीमा को निर्धारित करता है। क़ुरआने मजीद के मशहूर मुफ़स्सिर सैयद अल्लामा तबातबाई क़ुरआने मजीद की शिक्षाओं में इल्म की जगह के महत्त्व के बारे में कहते हैं कि अगर इलाही किताब में संपूर्ण मनन चिंतन करें और उसकी आयतों को ध्यानपूर्वक पढ़ें तो हमें तीन सौ से ज़्यादा आयतें मिलेंगी जो लोगों को मनन चिंतन और इल्म के इस्तेमाल की दावत देती हैं, या पैग़म्बरों को वह तर्क सिखाएं हैं जिससे सच को साबित करने और झूठ को ख़त्म करने के लिए इस्तेमाल किया गया है। अल्लाह ने क़ुरआने मजीद की एक भी आयत में अपने बंदों को यह आदेश नहीं दिया है कि बिना समझे अल्लाह या उसकी ओर से आई हर चीज़ पर ईमान लाओ या आंखें बंद करके आगे बढ़ते रहें।
मनन चिंतन के दावत के सथ पैग़म्बरे इस्लाम (सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम) ने इल्म हासिल करने पर बहुत ज़्यादा बल दिया है। उनका कहना था कि इल्म हासिल करो चाहे तुम्हें चीन ही क्यों न जाना पड़े। वह इल्म को हासिल करने पर इतना ज़्यादा बल देते थे कि उनके हवाले से बयान हुआ है कि एक जंग में उन्होंने मुश्रिक बंदियों की आज़ादी के लिए यह शर्त रखी कि वह मुसलमानों को शिक्षा दें। मौजूदा समय में यह बहुत ही आश्चर्य ही बात है कि आज कुछ गुमराह लोग इस्लाम धर्म के नाम पर और पैग़म्बरे इस्लाम की परंपराओं को ज़िंदा करने के बहाने कुछ स्कूलों पर हमले करते हैं और इस्लाम के नाम पर घिनौने अपराध करते हैं। हाल ही में नाईजेरिया के चरमपंथी संगठन बोको हराम ने स्टूडेंट्स के एक बोर्डिंग स्कूल पर धावा बोलकर ढाई सौ से ज़्यादा लड़कियों का अपहरण कर लिया। इन लड़कियों का केवल यह अपराध है कि यह स्टूडेंट्स हैं। दुनिया का कौन आदमी या कौन सी इल्म उनके इस घृणित काम को इस्लाम धर्म और पैग़म्बरे इस्लाम का अनुसरण कह सकता हैं। इस खेदजनक घटना से इस्लाम धर्म का कुछ लेना देना नहीं है बल्कि यह इस्लाम धर्म के झूठे दावेदारों की पोल खोल देता है।
मुसलमानों के लिए यह गर्व की बात है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने ज़िंदगी के हर पाक क्षण, लोगों के कल्याण और उनके विकास के लिए इल्म संबंधी प्रयास और उनके जेहालत के अंधेरे से निकालने पर गुजारे। तौहीद की दावत, भ्रांतियों से दूरी, आज़ादी की दावत, न्याय की स्थापना के लिए कोशिश, गुलामी व बंदी प्रभा से संघर्ष, अत्याचारियों से संघर्ष, मज़लूम लोगों का समर्थन, इल्म व तकनीक की ओर प्रेरित करना, इंसानी प्रतिष्ठा और उसके नैतिक मूल्यों पर ध्यान देना, इल्म का सम्मान, मतभेद व जेहालत का विरोध, पैग़म्बरे इस्लाम (सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम) की व्यापक शिक्षाओं के भाग हैं जिनमें मुसलममानों और दुनिया की दूसरी क़ौमों के लिए कीमती प्वाइंट मौजूद हैं।
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